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पञ्चदशं पर्व श्रुत्वैते धृष्टद्युम्नाद्याश्चिन्तयन्ति स्वमानसे । अहो एते महामा याचयन्ते यतो स्थान् ॥१३९ धृष्टद्युम्नेन पाञ्चाली स्वरथे स्थापिता तदा । युधिष्ठिरो रथस्थोऽभाधथा सौधर्मदेवराट् ।। अर्जुनोऽपि सगाण्डीवः श्वेतवाजिरथे स्थितः । संनद्धो बलसंधानः शुशुभे स उपेन्द्रवत । द्रुपदो विपदा दातुं वैरिणां संपदाकुलः । स्वर्णवर्मसुसंपन्नो रेजें मुकुटमण्डितः ॥ १४२ तावता दुधरं सैन्यं परकीयं समागतम् । वीक्ष्य भीमः समुन्मूल्य महीरुहं दधाव वै ॥१४३ परेतराडिव क्रुद्धो जघानाग्रे स्थितान्नृपान् । हयान् हेपारवापनान्स गजान्गर्जनोद्यतान्॥१४४ स्थान्संचूर्य चक्रौधै रहितान्विदधे स च । तत्र कोऽपि नरो नासीयो भीमेन हतो न हि ॥ स्वयं गर्जति गम्भीरगिरा भीमो गजेन्द्रवत् । परांस्तर्जति निष्कम्पो भूपान्कौणपवत् कृती॥ एवं रणागणे रम्ये रेमे भीमो मृगेन्द्रवत् । दलयनिखिलं सैन्यं तृणलूश्च यथा तृणम् ॥१४७ मध्यस्थवर्तिनो भूपास्तदा दृष्ट्वा च पावनिम् । रममाणं शशंसुस्ते जयकारप्रदायिनः ॥१४८ भीमेन भज्यमानं तद्वीक्ष्य दुर्योधनो नृपः । उत्तस्थे तूर्यनादेन त्रासयनिखिलान्पूिन ॥१४९ कर्णोऽपि स्वगणैः सार्ध डुढोके च धनंजयम् । क्षिपन्विशिखसंघातान्विधानिव सुसजितान् ॥
तब धृष्टद्युम्नने अपने रथपर पांचालीको-द्रौपदीको बैठाया, रथमें बैठे हुए युधिष्ठिर सौधर्मेन्द्रके समान शोभने लगे। गांडीव धनुष्यको लेकर अर्जुन शुभ्र घोडे जोडे हुए रथपर बैठा। वह युद्ध के लिये उद्युक्त हुआ। शत्रु-सैन्यके ऊपर उसकी दृष्टि लगी थी। वह उपेन्द्रके समान। प्रतीन्द्रके समान अथवा कृष्णके समान शोभने लगा ॥ १३८-१४१ ॥ वैभवसंपन्न, सोनेका कवच पहना हुआ, मुकुटसे शोभनेवाला द्रुपदराजा वैरियोंको विपत्ति देनेके लिये शोभने लगा अर्थात् सज्ज हुआ ॥ १४२ ॥ इतनेमें शत्रुओंका दुर्धर सैन्य लडनेके लिये आगया। उसे देखकर भीम वृक्ष उखाडकर उसके ऊपर आक्रमण करने लगा। आगे आये हुए राजाओंको भीम क्रुद्ध यमके समान मारने लगा, उसने हिसनेवाले घोडौंको, गर्जन करनेमें तत्पर हाथियोंको चूर कर दिया और रथोंको चक्ररहित कर दिया। उस सैन्यमें ऐसा कोई मनुष्य नहीं था जिसे भीमने नहीं मारा। सबको भीमका कुछ न कुछ प्रसाद मिलाही । भीम गजेन्द्रके समान गंभीर ध्वनिसे गर्जना करने लगा। निष्कम्प ऐसा पुण्यवान् भीम शत्रुराजाओंको यमके समान भय दिखाने लगा, दण्डित करने लगा। जैसे घास काटनेवाला पुरुष घासको काटता है, वैसे समस्त शत्रुसैन्य नष्ट करनेवाला भीम सिंहके समान रम्य रणाङ्गणमें रममाण हुआ। जो राजा मध्यस्थ थे, वे युद्धमें रममाण हुए भीमको देखकर जयजयकार करते हुए उसकी प्रशंसा करने लगे ॥ १४३-१४८ ॥ भीमके द्वारा अपना सैन्य नष्ट किया जा रहा है, ऐसा देखकर दुर्योधन संपूर्ण शत्रुओंको वाद्योंकी ध्वनियोंसे भयभीत करता हुआ युद्धके लिये उद्युक्त हुआ ॥१४९॥ कर्णने भी अपने सैन्यके साथ अर्जुनपर आक्रमण किया। सुसज्जित विघ्नके समान बाण उसने अर्जनपर छोडे । पर्याप्त उन्नतिक धारक कर्णने अनेकोंको बाणोंसे शीघ्र
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