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________________ ३१८ पाण्डवपुराणम् दुर्योधनादयो भूपाः क्रुद्धा रणसमुद्धताः । अदापयन् रणातिथ्यसूचकं दुन्दुर्मि भृशम्।।१२९ श्रुत्वा भेरीस्वनं भूपा निर्ययुः साधनावृताः । दन्तावलबलोपेता वाहवाहनसंस्थिताः ।। १३० रथस्थिति मजन्तश्च केचित्कोदण्डपाणयः । खड्गखेटककुन्तायाः पत्यश्च मदोद्धताः ॥१३१ केचिदचुस्तदा क्रुद्ध्वा गृह्यतां गृह्यतां त्वरा । कन्या निर्धाव्यतां धृष्टो वाडवो यो मदोद्धुरः।। मार्यतां द्रुपदो मानी समापाद्यापदां पदम् । इति शत्रुस्वरं श्रुत्वा चकम्पे द्रुपदात्मजा ॥१३३ प्रविष्टा शरणं तस्य नरस्य स्वेदिला सती । तादृक्षां तां समावीक्ष्याचख्यौ पवननन्दनः ॥ मा बिभेषि भव स्वस्था पश्य मे भुजयोलम् । करोमि क्षणतो दूरं वैरिणः पर्वतं गतान्॥१३५ तदा कलकलो जज्ञे बलयोरुभयोरपि । कोदण्डचण्डबाणेन क्षुभ्यतो रणसंस्थयोः ॥१३६ समग्रं परसैन्यं तु संप्राप्तं शमनोपमम् । द्रपदाद्याः समावीक्ष्याभूवन्संनद्धमानसाः ॥१३७ द्रुपदं प्रार्थयामास युधिष्ठिरद्विजोत्तमः । सास्त्रशस्त्रसमूहेन देहि पश्चरथान्युतान् ॥ १३८ राजाका उपर्युक्त भाषण सुनकर दूसरोंका अभिप्राय जाननेवाला दूत वहांसे लौटकर राजाओंके पास तत्काल गया, और उसने उनको द्रुपद राजाने कही हुई विज्ञप्ति निवेदन की। उसे सुनकर रणोद्धत दुर्योधनादिक राजा क्रुद्ध हो गये, और रणकी पाहुनगतकी सूचना करनेवाला नगारा उन्होंने खूब बजवाया। नगारेका ध्वनि सुनकर सैन्यसे युक्त राजा लडनेके लिये निकले। उनके साथ हाथीयोंका सैन्य था तथा घोडे, रथ आदिक वाहन भी थे। कई वीर रथपर बैठकर लडने के लिये निकले । और कई हाथमें धनुष्य लेकर निकले। कई तरवार, ढाल, भाला लेकर निकले। कितनेक मदोद्धत पैदलके साथ निकले ॥ १२८-१३१ ॥ उस समय कई वीर कुपित होकर इस कन्याको त्वरासे पकडो पकडो और इस धीट मदोन्मत्त ब्राह्मणको यहांसे निकालदो ऐसा कहने लगे ॥ इस मानी द्रुपदको आपत्तिका स्थान बनाकर मार डालो। इस प्रकारकी शत्रुओंकी घोषणा सुनकर द्रुपदराजाकी कन्या द्रौपदी थर थर कँपने लगी ॥१३२-१३३।। वह स्वेदयुक्त होकर शरणके लिये अर्जुनके पास आई। उसे भयसे कँपती हुई देखकर पवननंदन-वायुपुत्र भीमसेन कहने लगा, कि हे द्रौपदी तुम मत डरो । स्वस्थ-शांत हो जावो । तुम मेरे बाहुओंका बल देखो। मैं एकक्षणमें इन शत्रुओंको पर्वतके पास भगा देता हूं ॥१३४-१३५॥ उस समय रणमें खडे हुए और धनुष्यसे निकले हुए प्रचण्ड बाणसे क्षुब्ध हुए दोनों सैन्योंमेंभी कलकल उत्पन्न होने लगा। यमके समान शत्रुओंका संपूर्ण सैन्य आया हुआ देखकर द्रुपदादिक राजा सन्नद्धचित्त हुए। उन्होंने लडनेका निश्चय किया ॥ १३६-१३७ ॥ . [पाण्डवोंका कौरवादिकोंसे युद्ध ] श्रेष्ठ ब्राह्मण युधिष्ठिरने अस्त्रसहित, शस्त्रसमूहसे युक्त पांच रथ हमें दीजिये, ऐसी द्रुपदको प्रार्थना की। उसका भाषण सुनकर धृष्टद्युम्नादिक अपने मनमें विचार करने लगे, कि ये रथ मांगते हैं अतः मालूम होता है ये महापुरुष हैं महाशूर हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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