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________________ पञ्चदशं पर्व ३१५ गाण्डीवकार्मुकोत्पन्नज्वलज्ज्वालाकरालितः । सोऽपि स्थातुमशक्तात्मा पतितस्तु पलायितः ॥ एवं कर्णादयो भूपास्तज्ज्वाला सोदुमक्षमाः । मुमुचुर्मानमुद्रां ते तदा स्वस्थानमास्थिताः ॥९८ युधिष्ठिरस्तदावादीत्खानुजन्मानमर्जुनम् । धनुःसंधानमाधातुमेतेषां कोऽपि न क्षमः ॥९९ अत उत्तिष्ठ संधेहि धनुःसंधानमुद्धरम् । गाण्डीवजीवनं त्वां हि विना कोन करिष्यति ॥ इत्युक्ते पार्थिवः पार्थः कृतसिद्धनमस्क्रियः । अग्रज प्रणिपत्याशु समुत्तस्थे विशुद्धधीः ॥१०१ द्विजवेषधरं पाथ रूपनिर्जितमन्मथम् । द्रौपदी वीक्ष्य दूरस्था हता कामस्य सायकैः ॥ १०२ सर्वानुल्लङ्घ्य भूपालान्स स्थितो धनुषः पुरः । तदा शरासनं शान्तं जातं ज्वालातिगं शुभम् ॥ अहो पुण्यवतां प्रायः प्रयोगाच्छान्तता भवेत् । शूराणामपि सांनिध्यात्तेषां किं कथ्यते बुधैः।। स गाण्डीवं सुकोदण्डं करे कृत्वा धनुर्धरः । मौामारोप्य पूतात्मा स्फालयामास तद्गुणम् ।। तदास्फालनशब्देन बाधियं भूमिपाः श्रुतौ । दधुर्कोटकसंघाता अचलन्त इतस्ततः ॥१०६ गजाश्च दिग्गजाश्चान्ये गर्जन्तो ध्वनिकर्णनात् । जगर्जुः प्रतिशब्देन समुत्क्षिप्तकरास्तदा ।। तदास्फालनशब्दं च श्रुत्वा द्रोणो रुरोद च । इत्ययं सोऽर्जुनः किं वा मृतोऽपि समुपस्थितः असमर्थ होकर गिर पडा और वहांसे भाग गया । ९५-९७ ॥ इस प्रकार कर्णादिक भूपाल उसकी ज्वाला सहने में असमर्थ हो गये और वे मानमुद्रा छोडकर खस्थानपर जाकर बैठ गये ॥ ९८॥ [अर्जुनके द्वारा राधावेध ] उस समय युधिष्ठिरने अपने छोटे भाई अर्जुनको इस प्रकार कहा- "हे अर्जुन इन आये हुए राजाओंमें कोई भी इस प्रचंड धनुष्यको सज्य करनेमें समर्थ नहीं है। इस लिये तू ऊठ। इस प्रचण्ड धनुष्यको सज्य कर । तेरे विना इस समय कौन गाण्डीवको जीवित करेगा। अर्थात् गाण्डीवसे राधानासाका मौक्तिक वेध तू ही कर सकेगा" ॥ ९९-१०० ॥ अग्रज युधिष्ठिरंने ऐसा भाषण करनेपर पार्थ-राजा अर्जुनने सिद्धपरमेष्ठिको नमस्कार किया। वह निर्मलबुद्धिवाला अर्जुन अपने ज्येष्ठ भ्राताको-धर्मराजको नमस्कार कर अपने स्थानसे ऊठा ॥१०१॥ स्वसौन्दर्यसे. जिसने मदनको जीता है ऐसे ब्राह्मणवेषी अर्जुनको देखकर दूर खडी हुई द्रौपदी कामके बाणोंसे विद्ध हो गयी। सर्व राजाओंको उलंघकर वह अर्जुन धनुष्यके आगे खडा हुआ । तब वह शुभ धनुष्य ज्वालारहित और शान्त हुआ। विद्वान् लोग ऐसा कहते हैं, कि अहो जो पुरुष पुण्यवान् होते हैं प्रायः उनके संयोगसे शांतता होती है। फिर वे पुण्यवान्पुरुष यदि शूर हो तो उनके विषयमें कहनाही क्या है ॥ १०२-१०४ ॥ पवित्र धनुर्धर अर्जुनने गाण्डीव नामक धनुष्य हाथमें धारण कर उसे उसने दोरीपर चढाया और उसके गुणका उसने आस्फालन किया अर्थात् टंकारशब्द किया। उस समय उस टंकारशब्दसे राजाओंके कानोंमें बधिरपना आगया। तथा घोडोंके समूह इतस्ततः दौडने लगे। हाथी अपनी शुण्डाओंको उठा कर गर्जना करने लगे ॥१०५ --१०७॥ धनुष्यके आस्फालनका शब्द सुनकर द्रोणाचार्य यह वही अर्जुन है ऐसा प्रत्यभिज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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