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पश्चदशं पर्व
३१३ नागवल्लीदलं लात्वा कश्चिच्चिच्छेद भूपतिः। ईपस्मितेन रागाढ्यान्दशनान्दर्शयन्स्फुटम्।।७६ पादाङ्गुष्ठेन सौवर्ण लिखति स्म वरासनम् । कश्चित्सव्याधिमादाय वामोरूपरि संदधे ॥७७ विधत्ते जृम्भणं कश्चित्कश्चिद्धत्ते स्म शेखरम्। मूर्ध्नि कश्चिभिजं चाङ्गमङ्गदेन न्यपीडयत् ॥ कश्चिच्च पाणिना श्मश्रु चालयामास सर्वतः । कश्चित्स्वमुद्रिकोझासिकरान्संदर्शयत्यहो॥ एवं स्थितेषु भूपेषु स्वनो वीणामृदङ्गजः। वंशजश्च विशेषेणाविरासीत्पटहादिजः ॥८० सुलोचना ततो धात्री स्वर्णयष्टिकरा सुवाक् । दर्शयामास भूपालान् द्रौपद्यै मश्चकस्थितान् ॥ अधीशोऽयमयोध्यायाः सूर्यवंशशिरोमणिः । सुरसेनः सुनासीर इव भाति बुधेश्वरः॥८२ वाणारसीपतिश्चायं विपक्षक्षपणोद्यतः । अयं चम्पापुरीनाथः कर्णः स्वर्णसमानरुक् ।।८३ अयं दुर्योधनो धीमान् हस्तिनागनरेश्वरः । दुःशासनोऽयं तद्भाता दुर्मर्षणमहीपतिः ॥८४ इमे यादवभूपाला इमे मगधमण्डनाः । इमे जालन्धराधीशा इमे बाल्हीकभूभुजः ॥८५ एतेषु सत्सु भूपेषु न जाने को महीपतिः। धनुरादाय बाणन न जाने किं करिष्यति ॥८६
दिखाता हुआ कोई राजा नागवल्लीका दल हाथसे लेकर तोडने लगा। किसी राजाने अपना दाहिना चरण बाँये पांवपर धारण किया और पांवके अंगुठेसे वह सुवर्णके उत्तम आसनपर कुछ लिखने लगा ।। ७५-७७ ॥ कोई राजा द्रौपदीको देखकर जंभाई लेने लगा और किसी राजाने अपने मस्तकपर किरीट धारण किया अर्थात् वह उसे ठीक बैठाने लगा। कोई राजा अपने शरीरको अंगदसे पीडित करने लगा ॥७८॥ कोई अपने हाथसे अपनी मूळे इधर उधर मरोडने लगा। कोई राजा अपनी अंगुठियोंसे चमकनेवाले हाथ लोगोंको दिखाने लगा। ऐसी राजाओंकी नानाविध चेष्टायें हो रही थीं । उस समय वीणा और मृदंगका मधुर शब्द तथा बासरियोंका और पटह आदि वाद्योंका ध्वनि होने लगा ।। ७९-८० ॥
[स्वयंवरागत राजाओंका परिचय ] तदनंतर जिसके हाथमें सोनेकी छडी है और जो मधुर भाषण बोलती है ऐसी सुलोचनाने द्रौपदीको मंचकोंपर बैठे हुए राजाओंको दिखाया। वह अयोध्यादिक देशोंके राजाओंका वर्णन करने लगी। यह सूरसेन राजा अयोध्या देशका अधिपतिस्वामी है, सूर्यवंशका यह शिरोमणि है। जैसा सुनासीर-इंद्र बुधेश्वर-देवोंका अधिपति शोभता है वैसा यह सुरसेन राजा इंद्रके समान शोभता है, क्योंकि यह भी बुधेश्वर-विद्वज्जनोंका स्वामी है ॥ ८१-८२ ॥ शत्रुओंका नाश करनेमें उद्यत रहनेवाला यह वाराणसी देशका स्वामी है और सुवर्णके समान कांतिवाला यह कर्णराजा चम्पापुरीका स्वामी है। यह बुद्धिमान दुर्योधन राजा हस्तिनापुर नगरीका स्वामी है। यह इसका भाई दुःशासन है और यह दुर्मर्षण नामक राजा है ॥ ८३-८४ ॥ ये यादववंशीय राजा हैं । ये मगधदेशके अलंकारभूत राजा हैं। ये जालन्धर देशके स्वामी हैं और ये बाल्हीक देशके राजा हैं। मैं नही जानती कि इन राजाओंमें कौन राजा धनु
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