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पाण्डवपुराणम्
गाण्डीवकार्मुकं ज्यायामारोप्य यो विधास्यति । राधानासास्थमुक्ताया वेधं च स वरोऽनयोः॥ इति कन्याप्रतिज्ञायाः शुश्रुवुर्घोषणां घनाम् । अभ्येत्य चापमावेष्ट्य द्रोणकर्णादयस्तथा ।। ६७ चापं द्रष्टुमपि स्पष्टं न क्षमास्ते महीभुजः । स्पर्शनाकर्षणे तेषां कुतस्त्या शक्तिरिष्यते ॥ ६८ तावता द्रौपदी कन्या नानाभूषणभूषिता । दुकूलपरिधानेन छादयन्ती निजां तनूम् ॥६९ श्लक्ष्णकञ्चुकसंछन्नस्तनकुम्भभराश्रिताम् । रणन्नूपुरनादेन जयन्ती कामभामिनीम् ॥७० लसन्नासापुटाग्रस्थ स्वर्णमुक्ताफलान्विता । उपमण्डपसद्देहमागता तान्दिदृक्षया ॥७१ तावन्नृपाः सुमञ्चस्था वीक्षन्ते स्म सुकन्यकाम् । लसल्लावण्यलीलाढ्यां वेष्टितां स्वसखीजनैः ॥ वात्रीहस्तसुविन्यस्तमणिमालां मलापहाम् । कटाक्षक्षेपमात्रेण क्षिपन्तीं भूरिभूमिपान् ॥७३ ते तां वीक्ष्य समुत्क्षिप्तमदना आहुरुद्धियः । सुरूपा सुभगाकारा नास्त्यन्या चेदृशी क्वचित् कश्चिन्मित्रेण वै सत्रं चित्रालापं सुनर्मणा । कुर्वाणः कन्यकां कम्रां कटाक्षेण स्म वीक्षते ॥
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इन दोनोंने अपने उत्तम, सुपुष्ट शब्दों के द्वारा मेघगर्जनाको तिरस्कृत करनेवाली घोषणा इस प्रकार से जाहीर की, "जो वीरपुरुष गाण्डीवनामक धनुष्यको दोरीउपर चढाकर राधाके नाक में स्थित मोतीको विद्ध करेगा वह द्रौपदी और विद्याधर - कन्याका वर होगा | कन्याओंकी प्रतिज्ञा की यह कडी घोषणा खडे हुए द्रोणकर्णादिकोंने सुनी और धनुष्यको घेरकर खडे हुए। वे कर्णादिक नृपाल स्पष्टतासे धनुष्यको देखनेमेंभी समर्थ नहीं हुए, तो उसको स्पर्श करना और उसका ध्वनि सुनने में उन्हें शक्ति कहांसे आवेगी ॥। ६५-६८ ॥
[ स्वयंवरमंडपमें द्रौपदीका आगमन ] उस समय बहुमूल्यदुकूलवस्त्र के परिधानसे द्रौपदीने अपना शरीर आच्छादित किया था । और अनेक अलंकारों से वह भूषित हुई थी । सुन्दर नाकके अग्रभागमें सुवर्णमें जडे हुए मोतिओंको उसने धारण किया था अर्थात् नाकमें 'नथ' नामक अलंकार उसने धारण किया था । वह सुंदर और सूक्ष्म कञ्चुकीसे आच्छादित हुए स्तनकुम्भोका भार धारण करनेवाली, रुणझुण शब्द करनेवाले नूपुरके नादसे कामदेवकी स्त्रीको - रतिको जीतनेवाली थी । इसप्रकार सज धजकर वह राजाओंको देखनेकी इच्छासे मंडपके समीप उत्तम गृहमें आगई । ।। ६९–७१ ।। उस समय मचकोंपर बैठे हुए राजाओंने सुंदर लावण्यकी लीलासे परिपूर्ण और सखी - जनसे वेष्टित राजकन्याको देखा । द्रौपदीने मलरहित मणियोंकी माला धायके हाथमें दी थी। कटाक्ष फेंकने से ही बहुत राजाओं को घायल करनेवाली द्रौपदीको देखकर वे मदनपीडित हुए और उनकी बुद्धि उच्छृंखल हुई || ७२–७३ ॥
[ राजाओंकी नानाविध चेष्टा ] इस द्रौपदीकन्या के समान अन्य कोई स्त्री सुरूप, सुंदर आकारवाली नहीं है ॥ ७४ ॥ कोई राजा अपने मित्रके साथ हंसीसे नानाविध भाषण करते करते सुंदर कन्याको कटाक्षसे देखने लगा || ७५ ।। मंद - हास्यसे अपनी लाल दंतपंक्तिको स्पष्ट
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