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पञ्चदशं पर्व
३०९ इत्युक्त्वा पूजयित्वा तान्वस्त्राद्यैर्वरभूषणैः। यक्षोऽगानिजमावासं स्मरंस्तेषां गुणावलिम् ॥३५ ततस्ते दक्षिणान्देशान्विहृत्य हस्तिनं पुरम् । गन्तुं समुद्यताश्वासन्मुञ्जन्तो धर्मजं फलम् ॥३६ क्रमान्मार्गवशात्प्रापुर्माकन्दी नगरी नृपाः। स्वःपुरीमिव देवौधा बुधसीमन्तिनीश्रिताम् ।। विशालेन सुशालेन संस्कृता भाति भूतले। भालेन भामिनी यद्वद्या सद्वर्णसमाश्रिता ॥३८. तत्र ते पाण्डवा गत्वा द्विजवेषधराः पराः । कुलालसदनं प्राप्य तस्थुः प्रच्छन्नतां गताः॥३९ पश्यन्तः पावनां पूर्णा बुधैस्ता लोकपालकैः। पाण्डवास्तोषमासेदुरमराः स्वःपुरीमिव ।।४० तत्रास्ति भूपतिव्यो द्रुपदो द्रुपदस्थिरः। सवीर्यो धैर्यसंपन्नो न जय्यो जितशात्रवः ॥४१ प्रिया भोगवती तस्य नाम्ना भोगवती सदा। भजन्ती परमान्भोगान्भूषणानि बभार या॥ धृष्टद्युम्नादयः पुत्रास्तयोः सुद्युम्नदीपिताः। स्ववीर्याक्रान्तदिक्चक्राः शक्रा इव मनोहराः॥
आजतक मैं उस गदाविद्याका रक्षण करता हुआ और आप राजाओंकी राह देखता हुआ यहां रहा हूं। आपका दर्शन हुआ, और संतुष्ट होकर मैंने इस भीमसेनको गदाविद्या दी है। ऐसा वृत्तान्त कहकर और उन पाण्डवोंकी वस्त्रादिक उत्तम आभूषणोंसे पूजा करके तथा उन पाण्डवोंके गुणसमूहका स्मरण करता हुआ वह यक्ष अपने स्थानको चला गया ॥ ३४-३५॥
[पाण्डवोंका कुम्भकारके घरमें निवास ] तदनंतर वे पाण्डव दक्षिणदिशाके देशोंमें विहार कर धर्मका फल भोगते हुए हस्तिनापुरको जानेके लिये उद्युक्त हुए। देव जैसे बुधसीमंतिनीश्रित-देवांगनाओंसे युक्त स्वर्गपुरीको प्राप्त होते हैं वैसे वे पाण्डवभूपाल क्रमसे मार्गसे नयाण करते हुए विद्वानोंकी स्त्रियोंसे युक्त अथवा चतुरस्त्रियोंसे युक्त ऐसी माकन्दी नगरीको प्राप्त हुए । जैसे उत्तम वर्णका आश्रय लेनेवाली सुंदर स्त्री अर्थात् गौरवर्णवाली सुंदर स्त्री जैसे विशाल भालसे शोभती है, वैसे विशाल शालसे-तटसे युक्त और संस्कृत-शंगारित वह नगरी शोभती है ।। ३६-३८ ॥ वे द्विजवेष धारण करनेवाले उत्तम पाण्डव कुमारके घरको प्राप्त होकर गुप्तरूपसे रहने लगे। जैसे देव पवित्र बुधोंसे-देवोंसे पूर्ण और लोकपालोंसे-यम, वरुण, सोम, कुबेर इन दिक्पालोंसेयुक्त ऐसी खर्गनगरीको देखकर आनंदित होते हैं, वैसे वे पाण्डव पवित्र, विद्वानोंसे पूर्ण, लोकपालकोतवाल आदि राजाधिकारियोंसे युक्त माकन्दीनगरीको देखते हुए आनंदित हुए ॥ ३९-४० ॥
[ द्रौपदीके विवाहार्थ खयंवरमण्डप ] माकन्दीनगरीमें वृक्षोंके मूल जैसे स्थिर रहते हैं वैसा स्थिरप्रकृतिका द्रुपद नामका भव्य राजा था । वह वीर्यवान् , धैर्यपूर्ण, शत्रुओंसे न जीता जानेवाला
और शत्रुओंको जिसने जीता है ऐसा था । अर्थात् राजा द्रुपदमें धैर्य-वीर्यादि अनेक गुण थे ॥४१॥ उस राजाकी भोगवती नामकी प्रिय पत्नी थी, वह उत्कृष्ट भोगोंको भोगनेवाली होनेसे अर्थसे और नामसे भी भोगवती थी। उसने अपने शरीरपर अनेक अलंकार धारण किये थे ॥४२॥ राजाके धृष्टद्युम्नादिक अनेक पुत्र थे। वे सुवर्णके समान तेजस्वी और अपने पराक्रमसे दिशामंडलको व्याप्त करनेवाले,
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