SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०४ पाण्डवपुराणम् अद्य त्वचिन्तनासक्तं स्वान्तं सुश्रान्तिवारकम् । सफलं विपुलं जातं जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।। अद्यैव सफलाः पादा अद्यैव सफलाः कराः । अद्यैव सफला भावा जिनेन्द्र तव दर्शनात ।। अद्य जाता वयं धन्या अद्य मान्या मनोहराः । अद्य निःश्रेयसं प्राप्ता जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।। ते स्तुत्वेति जिनान्नत्वा बहिरित्वा क्षणं स्थिताः । यावत्तावत्समायासीद्यक्षः श्रीमाणिभद्रकः ।। नत्वावोचत्तदा यक्षो यूयं धन्या नरोत्तमाः । विवेकिनः सदा श्रेष्ठा विशिष्टा गुणसंपदा ॥ जिनचैत्यालयद्वारसमुद्घाटनतो मया । यूयं पुण्यतमा ज्ञातास्तथा योगीन्द्रवाक्यतः ॥२०५ इत्युदीर्य महाधैर्यधारिणे शौर्यशालिने । गदां भीमाय दत्ते स्म यक्षः शत्रुक्षयंकराम् ॥२०६ यन्नामतो रणाद्यान्ति शत्रवः संगरोद्यताः । भयं याति यतो नृणां गदवृन्दं यथौषधात्।।२०७ रत्नवृष्टिं ततश्चके वस्त्राभरणसन्मणीन् । यक्षेट् दत्ते स्म पश्चभ्यस्तेभ्यो भक्तिप्रणोदितः।।२०८ अनवद्यां महाविद्यां दस्युदपोपहां गदाम् । समादाय दरोन्मुक्तास्तस्थुस्ते तत्र पाण्डवाः॥ जयति जितविपक्षः संगरे शुद्धपक्षो नरपतिगणवन्धः सर्वहर्षोऽनवद्यः । सुगतियुवतिलाभैलब्धिलीलाभिशोभैर्युत इह वरभीमः सर्वसौख्याभिसीमः ॥२१० आजही हमारा जन्म सफल हुआ। आजही हमारी गति-मनुष्यगति सार्थक हुई। तथा आजही हमारे दो नेत्र कृतकृत्य हुए।" " हे प्रभो जिनपते, आज आपके दर्शनसे आपके गुणोंकी चिन्तामें आसक्त हुआ हमारा मन सफल हुआ है, और महत्त्वशील बना है। हे जिनेश्वर आपके दर्शनसेही हमारे भाव निर्मल हुए हैं। प्रभो जिनवर, आज हम धन्य हुए हैं। आज हम लोगोंके मन हरण करनेवाले मान्य हुए हैं। आज हम मुक्तिको प्राप्त हुए हैं "| १९९-२०२॥ [भीमको यक्षसे गदालाभ ] इस प्रकारसे स्तुति कर पाण्डव जिनेश्वरको वंदन कर बाहर आकर कुछ देर बैठ गये। उतनेमें माणिभद्र नामका यक्ष वहां आया, उसने उनको नमस्कार किया और आप धन्य हैं, श्रेष्ट पुरुष हैं, आप विवेकी, श्रेष्ठ और गुणसंपत्तिसे सदैव विशिष्ट हैं । जिनचैत्यालयके द्वार खोलनेसे आपको मैने महा पुण्यशाली जाना है। तथा योगीन्द्रके उपदेशसेभी मैने आपको पुण्यशालीपना जाना है ऐसा बोलकर महा धैर्यवान् और शौर्यशाली भीमराजाको शत्रुओंको क्षय करनेवाली गदा यक्षने दी ॥ २०३-२०६॥ जैसे औषधसे मनुष्योंके रोगसमूह नष्ट होते हैं। वैसे इस गदाका नाम सुननेसे युद्धके लिये उद्युक्त शत्रु रणसे भाग जाते हैं। मनुष्योंका भय इसके नामश्रवणसे नष्ट होता है। ऐसा कहकर यक्षने उनके ऊपर रत्नवृष्टि की और भक्तिप्रेरित होकर उन पांचो पाण्डवोंको उसने वस्त्रालंकार और उत्तम रत्न दिये । शत्रुओंका दर्प नष्ट करनेवाली निर्दोष महाविद्या तथा गदाको धारण कर वे पाण्डव वहां निर्भय होकर रहने लगे ॥ २०७-२०९ ॥ युद्ध में शत्रुओंको जीतनेवाला, शुद्ध जाति व कुल शुद्धिको धारण करनेवाला, राजसमूहसे वन्द्य, सब लोगोंको हर्षित करनेवाला, निष्पाप, अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy