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पाण्डवपुराणम् भीम भीम त्वयाकृत्यं किं कृतं चपलात्मना । प्रयासि यत्र यत्र त्वं तत्रानर्थ करोषि वै ॥१५३ चञ्चलौ चौद्धतौ दोषौ सदोषौ दूषणावहौ । तव नित्यं प्रदुष्टस्य शिष्टाचारातिगस्य च ॥१५४ उपालम्भं समाश्रित्य जनन्या मौनमाश्रितः । निर्जगाम ततो भीमः सुसीमोल्लङ्घनोद्यतः॥ भक्ष्यकारापणं प्राप पूपोत्करविराजितम् । पूतात्मा पावनिस्तत्र भोक्तुकामोतिकोविदः ॥ देहि कान्दविकानं मे हिरण्येन हठात्मना । भ्रातरोत्र बुभुक्षाभियंतः सन्ति सुदुःखिनः ॥ तुष्टः कान्दविको यावदन्नं दातुं समुद्यतः । हिरण्यदानतः कोत्र न तुष्यति महीतले ॥१५८ तावद्भुभुक्षितं भीममस्थापयत्स्थिरासने । भक्ष्यकारः सुभक्ताढ्यो भोजनाय सभाजनम् ॥१५९ भीमो बुभुक्षितः सर्व भुक्तवान्मोदकादिकम् । अन्नमाकण्ठपर्यन्तं तत्र किञ्चिन्नचोद्धृतम् ॥ . भ्रात्रयं देहि मे भक्तमिति निर्धाटितो वणिक् । अवशिष्टं न विद्येत किं देयमिति भीतिभाक् ॥ क्षणार्धेन प्रदास्यामीति च कान्दविकस्तदा । प्रणम्य तत्पदं भक्त्यातोषयत्पावनि परम् ॥ तावताङकुशमुल्लङ्घ्य कर्णदन्तावलो वरः । मदोन्मत्तो महाकायो भक्त्वालानं विनिर्ययौ। पातयन्नापणात्म्यगृहान्वृक्षान्पुरःस्थितान् । उच्छालयच्छलाच्छित्वा दन्ताभ्यां द्विरदो बली
भीमको उस अकार्यसे निवारण किया । “हे भीम हे भीम, चपल स्वभाववाले तूने यह क्या अकार्य कर डाला है। तू जहां जहां जाता है वहां वहां अनर्थ करता है। तू हमेशा दुष्टता करता है और शिष्टाचारका उल्लंघन करता है। तेरे दो हाथ चंचल, उद्धत दोषयुक्त और दोष करनेवाले है"। जब माताने ऐसी निंदा की तब भीमने मौन धारण किया और सुमर्यादाका लंघन न करनेमें उद्युक्त वह वहांसे निकल गया ॥ १५०-१५५ ॥ भक्ष्य तयार करनेवाले हलवाईके दुकानपर भोजनकी इच्छा करनेवाला अतिचतुर, पवित्रात्मा भीम आगया। “ हे हलवाई, मैं सोनेकी मुहर तुझे देता हूं। तू मुझे अन्न दे। क्यों कि मेरे भाई इस नगरमें भूखसे अतिशय व्याकुल हुए हैं। आनंदित हुए हलवाईने अन्न देनेकी तैयारी की । सोनेकी मुहर मिलनेपर कौन आनंदित नहीं होगा ? उसने प्रथमतः भूखे हुए भीमको दृढ आसनपर बैठाया । हलवाईने भक्तिसे भीमके आगे भोजनके लिये पात्र रख दिया और भूखे हुए भीमने सर्व मोदकादि पदाथ खा डाले। उसने आकण्ठ भोजन किया हलवाईकी दुकानमें कुछभी खानेकी चीज नहीं रहीं। अब मेरे भाईयोंके लिये मुझे अन्न दे' ऐसा क्रोधसे भीमने हलवाईको कहा। तब भययुक्त हलवाईने कहा कि 'अन्न कुछभी नही बचा । मैं कहांसे देऊ। फिरभी क्षणार्द्धमें मैं दूंगा, ऐसा हलवाईने कहा। उसने भीमको नमस्कार कर उसको अतिशय सन्तुष्ट किया ॥ १५६-१६२ ॥ उस समय अंकुशको उल्लंघ कर कर्णराजाका उत्तम मदोन्मत्त, बडे शरीरका हाथी खंबेको मोडकर गांवमें घूमने लगा। अपने आगेकी दूकानें, रम्य घरों, और वृक्षोंको गिराने लगा। वह बलवान् हाथी अपने दो दांतोंसे लोगोंको फाडकर ऊपर फेंकने लगा। सब नगरको व्याकुल करता हुआ और मागम लोगोंको भीतोसे थर थर कँपाता हुआ
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