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चतुर्दशं पर्व
२८९ सोऽवोचन्मारुते वृत्तमस्याः कर्णय सातदम् । संध्याकारपुरं चात्र संध्याजलदभासुरम् ॥२६ त्रिसंध्यासाधने सक्ताः सद्धियो यत्र चासते । हिडिम्बवंशसंभूतो वैरिवारणसद्धरिः ॥२७ सिंहघोषो नृपस्तत्र शोभते सिंहघोषवत् । तत्प्रिया हरिणीनेत्रा लक्ष्मणा लक्षणैर्युता ।।२८ या वक्ति परमां वाणी यया कामोऽपि जीवति । तत्सुता च हिडिम्बाख्या या रतिं सुविडम्बयेत्।। कदाचिद्धततारुण्यां दीप्तसंभिन्नतामसाम् । लावण्यसरसीं तारां गतिनिर्जितदन्तिनीम् ॥३० बाससंस्थापितात्यन्तमदनां स्वशरीरके । कामाडम्बरदण्डेन सदा तां च विडम्बिताम् ॥३१ हिडिम्बां भूपणैर्भूष्यां क्रीडन्ती कन्दुकेन च। सखीभिः खेचरो वीक्ष्याचिन्तयचेति चेतसि।। को वरो भविता ह्यस्याः समरूपः समक्रियः। समशक्तिः समाचारः समशीलः समप्रियः॥ इत्यातर्य समाहूय दैवज्ञं भाविवेदिनम् । को वरो भवितेत्यस्याः समप्राक्षीत्खगाधिपः ॥३४ समावेद्य निमित्तेन स चाभाषीष्ट भूमिपम् । यः पिशाचवटस्याधः स्थित्वा जागर्ति निश्चितम् ।। स वरो भविताप्यस्याः प्रचण्डभुजविक्रमः । पुनर्निशाचरं चौरं यो जेष्यति वटस्थितम् ॥३६
एक नगर है, इसमें प्रातःसंध्या, मध्याहसंध्या और सांयसंध्या ऐसे त्रिसंध्याके समय संध्यावंदनादि शुभकार्यकी सिद्धिमें उत्तम बुद्धिवान पुरुष तत्पर रहते हैं । इस नगरमें हिडिंबवंशमें उत्पन्न हुआ, शत्रुरूपी हाथियोंको सिंहसमान और सिंहकीसी गर्जना करनेवाला सिंहघोष नामक राजा राज्य करता है। राजाकी प्रिय पत्नीका नाम लक्ष्मणा है। वह हरिणकीसी सुंदर आखोंवाली और उत्तम लक्षणोंसे शोभनेवाली है। वह अपने मुखसे उत्तम वाणी निकालती है जिससे कामभी जीवंत होता है। लक्ष्मणाकी कन्याका नाम हिडिम्बा है और उसने अपने रूपसे रतिका अनुकरण किया है ॥ २५-२९ ॥ जिसने तारुण्य धारण किया है, और जिसने अंगकांतिस रात्रिका अंधकार नष्ट किया है, जो लावण्यका सरोवर है, जो तेजस्विनी और अपनी गतिसे हाथिनीकी गतिको जीतनेवाली है। अपने शरीरमें जिसने निवास करनेवाले मदनकी सुचारुरूपसे स्थापना की है, और इसीसे कामकी कांतिरूपी दंडसे जो हमेशा विडंबित हुई है; ऐसी हिडिंबा कन्या अलंकारोंसे भूषित होकर एक दिन अपनी सखियोंके साथ कंदुकसे क्रीडा कर रही थी। उसको देखकर उसके पिताने अपने मनमें इस प्रकार विचार किया। समानरूप, समान आचरण, समशाक्त, समान आदर, समानशील और समान प्रीति करनेवाले इस कन्याका कौन वर होगा। इस प्रकारका विचार करके उसने भावि परिस्थितिके ज्ञाता ज्योतिषीको बुलाया और इस कन्याका पति कौन होगा ? इस तरह खगाधिप सिंहघोषने प्रश्न पूछा। ज्योतिषीने निमितसे जानकर राजाको इस प्रकार कहा । 'जो पिशाच वटवृक्षके नीचे ठहरकर निश्चयसे. जागृत रहेगा, वह प्रचण्डबाहु और पराक्रमवाला पुरुष इस कन्याका पति होगा, इसी तरह वटमें रहनेवाले पिशाच और चोरको जीत लेगा, वह कार्यको सिद्ध करनेवाला, शत्रुओंको भयंकर ऐसा वटवृक्षके नीचे खडा हुआ तेजस्वी वीर पुरुष हिडिम्बा
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