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पाण्डवपुराणम् कृत्वादाय त्वरां तत्र पावनिः पवनो यथा। यावदायाति तावच्च न्यग्रोधतलसत्रुचि ॥१५ सुप्तः पिपासया ज्येष्ठः पीडितः स युधिष्ठिरः। तं सुप्तं मारुतिर्वीक्ष्य विषसाद हुदा तदा॥१६ अहो संसारवैचित्र्यं विषमं सर्वदेहिनाम् । दृष्टमात्रप्रियं सद्यः कुड्यालिखितचित्रवत् ॥१७ संसारनाटके नाट्यं नटन्ति सुनटा इव । नराः कर्मविपाकेन प्रेरिताः पावना अपि ॥१८ यः कौरवनृपेशानः पाण्डवानां महीपतिः। सोऽयं संस्तरमाधाय प्रसुप्तः किं विधीयते ॥१९ न वक्ति परमादत्ते नात्ययं किं न नेक्षते । वयं कर्तव्यतामूढा विस्मरामः स्मयावहाः॥२० चिन्तयनिति यावत्स समारते विपुलोदरः। तावत्कश्चित्खगस्तत्र कन्यामादाय चागमत्।।२१ स वीक्ष्य पक्वबिम्बोष्ठी चन्द्रवक्रां सुलोचनाम् । मालूरपीनवक्षोजां हृदि तामित्यतर्कयत्।।२२ अहो इयं सुलक्ष्मीः किं किं वा मन्दोदरी परा। किं वा सीता शची किंवा किंवा पद्माथ रोहिणी तावदाह खगाधीशो नत्वा तत्पादपङ्कजम् । देवेमां धारय त्वं हि कन्यापाणिप्रपीडनैः ॥२४
___ कस्त्वं कस्मात्समायासीः का कन्या कस्य चात्मजा । - कथं ददासि मां ब्रूहि भीमोऽभाणीदिति स्फुटम् ॥ २५
वायु जैसा वहांसे त्वरासे निकला और जहां प्याससे पीडित होकर युधिष्ठिर वटवृक्षके तले भूमिपर सोये थे वहां आया। उनको देखकर उस समय भीमका हृदय खिन्न, हुआ । १२-१६ ॥ संसारकी विचित्रता तो देखो, सभी प्राणियोंको वह भयानक है। दीवालपर लिखे हुए नूतन चित्रके समान केवल देखने के लिए प्रिय है। पवित्र मानवभी कर्मोदयसे प्रेरित होकर संसाररूपी नाटकमें उत्तम नटके समान नृत्य करते हैं। जो युधिष्ठिर राजा कौरवोंका स्वामी और पांडवोंका भूपति था यहां तृणको शय्या बनाकर सो गया है। इस विषयमें कौन क्या कर सकता है ! यह राजा किसीके साथ न बोलता है और न कुछ लेता है, तथा न खाता है। किसीको आंखें खोलकर देखता भी नहीं है। हम तो कर्तव्यमूढ हो गये हैं, हम आश्चर्यचकित होकर सब कार्य भूल गये हैं।” इस प्रकारसे भीम विचार कर रहा था इतने में कोई विद्याधर उस वनमें कन्याको लेकर आया ॥१७-२१॥
[ भीम और विद्याधरका भाषण ] भीमने जिसका ओष्ठ पक बिंबाफलके समान लाल है, जिसका मुख चन्द्रके समान और जिसकी आंखें सुंदर हैं, जिसके स्तन बिल्वफल के समान पुष्ट ओर बडे हैं ऐसी कन्याको देखकर मनमें ऐसा विचार किया अहो यह सुलक्ष्मी है ? अथवा अतिशय सुंदर मंदोदरी (रावणपत्नी) है ? किंवा सीता, इंद्राणी, पद्मावती, वा रोहिणी (चंद्रकी रानी) है ? उस समय विद्याधरके स्वामीने भीमके चरणकमलोंको वन्दन कर कहा हे प्रभो,इस कन्याके साथ विवाह कर इसका आप स्वीकार करें॥२२-२४॥ 'तू कौन है ? कहांसे आया है ? यह कन्या कौन और किसकी पुत्री है ? और तू मुझे क्यों अर्पण करता हैं ?' ऐसा भीमने स्पष्टतासे विद्याधरको पूछा। विद्याधरने कहा “ हे भीमसेन, इस कन्याका आनंददायक वृत्तान्त आप सुनो। संध्याकालके लालमेघोंके समान चमकनेवाला 'संध्याकार' नामक
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