SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९० पाण्डवपुराणम् भः सुघटो वैरिवकटो विटपस्थितः । स भर्ता भविता नूनं हिडिम्बायाः सुडम्बरः ॥ ३७ ततः प्रभृति तेनाहं प्रेक्षणे रक्षितोऽत्र च । निद्रामुक्तं समावीक्ष्य त्वामिमामानयं त्वरा ॥ ३८ त्वं स्वामिन्सुधराधीश धारयोद्धृत्य धार्मिक । धरां धृतिं धियं सिद्धिं यथा धत्से तथा त्विमाम् मा विलम्बय बुद्धीश हिडिम्बां हिण्डनोद्यताम् । शर्मोपयम्य भुञ्ज त्वं सुशिक्षाविधिवेदकः॥४० हिडिम्बापि त्रपां हित्वा बम्भणीति स्म तं तदा । आडम्बरेण वेगेन हिडिम्बां मां वृणु त्वकम् ।। मा विचारय चित्ते त्वं विचारोऽन्योऽत्र वर्तते । वटे सविटपे नाथ पिशाचो वावसीति च ।। किंच कश्चित्खगो गच्छन्खे क्षिप्ताखिलविद्यकः । विद्यां साधयितुं तस्थौ विकटे वटकोटरे ॥ मध्नाति मानवान्मूढो मानी स नियमस्थितः । मथिष्यति तथा मध्यं ममापि विक्रमोत्कटः तावकं भणितं श्रुत्वा पिशाचोऽचिन्त्यविक्रमः । कोपं यास्यति कोपात्मा त्वं तूष्णीं भव जीवन इत्याकर्ण्यावगयोक्तं तस्या जगर्ज गर्जनैः । स्फोटयन् स श्रुती तस्य संस्फूर्जथुरिवोन्नतः ।।४६ यमराज इवोन्मादमदिष्णुर्मदमेदुरः । भीमो बभाण भीमात्मा पिशाचाकर्षणं वचः ॥४७ इस 66 कन्याका निश्चयसे पति होगा ऐसा समझो । तबसे उस सिंहघोष विद्याधर राजाने मुझे यहां मार्ग - प्रतीक्षा करनेके लिये रख छोड़ा है। आप यहां निद्रारहित मुझे दीख पडे इस लिये मैं कन्याको यहां लाया हूं। पृथ्वीके अधीश स्वामी, धार्मिक हे भीमसेन, जैसे आपने पृथ्वी, धैर्य, बुद्धि और कार्यसिद्धिको धारण किया है, वैसे इस विद्याधर - राजकन्याको धारण कीजिये | हे विद्वन्, भ्रमण करनेमें उद्युक्त इस हिडिम्बा के साथ विवाह कर आप सुखका उपभोग कीजिए, आप सुशिक्षाकी पद्धतिको जाननेवाले हैं। आपको अधिक कहनेकी मैं आवश्यकता नहीं समझता हूं ॥ ३०-४० ॥ हिडिम्बाभी लज्जा छोडकर बोलनेकी पद्धतिसे अर्थात् विनयसे बोलने लगी । हे महापुरुष, शीघ्रही उत्साह के साथ मुझे आप वरिये, इस समय आप विचार ही न कीजिये । विचार करने की बात दूसरीही है । हे नाथ, अनेक शाखाओंसे संपन्न इस वटवृक्षपर एक पिशाच हमेशा रहता है। तथा एक विद्याधर आकाशमें जाता था। किसीने उसकी सब विद्यायें नष्ट कीं । तब इस वटवृक्ष के विशाल कोटर में विद्या साधनेके लिये वह बैठा है । वह मूर्ख और अभिमानी विद्याधर नियम में स्थिर होकर यहां आनेवाले मनुष्योंको दुःख देता है। वह मुझे भी पराक्रमसे उद्धत होकर पीडा देगा । तथा हे नाथ, आपका भाषण सुनकर अचिन्त्य पराक्रमी यह पिशाच कुपित होगा; क्योंकि वह बड़ाही क्रोधी है। इसलिये हे जीवनाधार आप मौन धारण करो ” ॥ ४१-४५ ॥ [ भीमका विद्याधर और पिशाचसे युद्ध ] हिडिम्बाका उपर्युक्त भाषण सुनकर और उसकी अवज्ञा कर वह भीम वज्रके समान घोर गर्जनाओंके द्वारा उसके कान फोडनेवाला भाषण करने लगा | उन्मादसे उन्मत्तं यमराजके समान मदसे भरा हुआ भयंकर स्वरूपका धारक वह पिशाच भीम तू यहां आ, आ । पीडा देनेवाले हे दुष्ट, तू अपना बाहुबल मुझे दिखा दे; जिससे उन्मत्त, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy