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(२९) इधर नारद ऋषिद्वारा इस समाचारको जानकर युधिष्ठिर धर्मध्यानमें तत्पर हुआ । उसी समय धर्म देवने अपने विचारको गुप्त रखकर द्रौपदीका हरण किया और छलसे पांचों पाण्डवोंको मूर्छित कर दिया । सातवें दिन 'कृत्या' विद्याके सिद्ध हो जानेपर कनकध्वजने उसे पाण्डवोंको मार डालनेके लिये भेजा । परन्तु पाण्डवाको मृत पाकर वह वापिस चली गई और स्वयं कनकध्वजके शिरपर पड़कर उसकोहि मार डाला । पश्चात् देवने पाण्डवोंकी मूर्छा दूर कर उन्हें द्रौपदीको दे दिया और अपना विशुद्ध अभिप्राय प्रगट कर दिया ।
। तत्पश्चात् पाण्डव मेघदल नामक नगरमें गये। वहांके राजा सिंहकी पत्नीका नाम कांचना और पुत्रीका नाम कनकमेखला था। राजाने भोजनसिद्धयर्थ प्राप्त हुए भीमको युधिष्ठिरकी आज्ञानुसार अपनी प्रिय पुत्री अर्पित की। वे कुछ समय वहांपरही रहे।
पाण्डवोंका विराट नगरमें आगमन तदनन्तर वे कौशल देशकी शोभाको देखते हुए रामगिरि पर्वतको प्राप्त हुएँ । यहांसे क्रमशः देशाटन करते हुए वे विराट देशस्थ विराट नगरमें गये । उन सबने विचार किया कि वनमें रहते हुए बारह वर्ष पूर्ण हो गये, अब एक वर्ष गुप्त होकर और रहना है । इसके लिये अपने अपने वेषको बदल कर युधिष्ठिरने पुरोहित, भीमने रसोइया, अर्जुनने बृहन्नट नामक नाटकनायक, नकुलने वाजिरक्षक [सईस ], सहदेवने गोरक्षक [गोपाल ] और द्रौपदीने मालिनके वेषको ग्रहण
१ दे. प्र.पां. च. (९.३४६) में इस देवका नाम धर्मावतंस पाया जाता है। चं. भा. ५, ११४-११५.
२ यह सब वृत्तान्त हरिवंशपुराणमें नहीं उपलब्ध होता । देवप्रभसूरिविरचित पाण्डवपुराणके अनुसार यह कृत्या विद्या पुरोचन पुरोहितके भाई सुरोचनको सिद्ध हुई थी। उसने सातवें दिन पाण्डवोंको मार डालनेकी प्रतिज्ञा की थी। यथा
आराधिता मया पूर्वमस्ति कृत्येति राक्षसी । क्रुद्धासौ ग्रसते क्षोणी षट्खण्डी किमु पाण्डवान् ।। विधास्यामि तवाभीष्टमह्नि तद्देव सप्तमे । ममापि पाण्डवेया हि पुरोचनवधाद्विषः ।। ९, २००-२०१.
३ हरिवंशपुराणमें सिंह राजाकी पत्नीका नाम कनकमेखला और पुत्रीका नाम कनकावर्ता बतलाया है । यहां मेघ नामक सेठकी कन्याके साथ भी भीमके विवाहका उल्लेख पाया जाता है (४६, १४-१७ )।
- ४ हरिवंशपुराणके अनुसार पाण्डव कितनेही मास कौशल देशमें सुखपूर्वक रहकर रामगिरि (रामटेक) पर्वतको प्राप्त हुए । यथा
याताः क्रमेण पुन्नागा विषयं कौशलाभिधम् ॥ स्थित्वा तत्रापि सौख्येन मासान् कतिपयानपि । प्राप्ता रामगिरिं प्राग्यो राम-लक्ष्मणसेवितः ॥ ४६, १७-१८
यहां आगे (१९-२२) कहा गया है कि रामगिरिपर रामदेवके द्वारा कारित सैकड़ों चैत्यालय शोभायमान हैं । पाण्डवोंने वहां नाना देशोंसे आये हुए भव्य जीवोंके द्वारा वन्दित ऐसी जिनेंद्रप्रतिमाओंकी वन्दना की। यहांसे विहार करते हुए उनके ग्यारह वर्ष वीत चुके थे।
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