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________________ (३०) किया । इन्हीं वेषोंके अनुसार कार्य करते हुए वे विराट राजाके यहां रहने लगे । राजा इनके कार्योंसे प्रसन्न था । इस प्रकार वहां उनका एक वर्ष आनन्दपूर्वक बीत गयो । इसी बीचमें चूलिकापुरीके राजा चूलिकका पुत्र कीचक अपने बहिनेउ राजा विराटके यहां आया । द्रौपदीको देखकर कामासक्त होनेसे उसने उसके साथ छेड़-छाड़ शुरू की। इससे दुखी होकर द्रौपदीने इस संकटसे बचाने के लिये भीमसे निवेदन किया । भीमने स्त्रीवेषमें लडकर पादप्रहारसे उसे मार डालौ । इसी अवसरपर दुर्योधनने पाण्डवोंकी खोजके लिये कई सेवकोंको भेजा, परन्तु वे उनका पता नहीं लगा सके । उस समय गुरु गांगेयने कहा था कि “ हे कौरवों ! पांचो १ विराट नगर पहुंचकर राजाके पूछनेपर जो पाण्डवोंने अपना अपना परिचय दिया वह देवप्रभ सूरिके पाण्डवचरित्र (सर्ग १०) में इस प्रकारसे पाया जाता है वस्तव्यमस्ति तत्रापि वर्षमेतत् त्रयोदशम् । प्रच्छन्नैर्जनवन्मत्स्यभर्तुः सेवापरायणैः ॥१० अथावोचदजातारिः कङ्को नामऽद्विजोऽस्म्यहम् । भूमिभर्तुस्तपःसूनोः प्रियमित्रं पुरोहितः ॥३३ सोऽनुयुक्तस्ततो राज्ञा स्वां कथामित्यचीकथत् । बल्लवः सूपकारोऽस्मि भूपतेधर्मजन्मनः ॥४५ कपिकेतुरभाषिष्ट नास्मि नारी न वा पुमान् । अहं बृहनटो नाम किन्तु षण्ढोऽस्मि भूपतेः ॥५६ सोऽभ्यधाद् भूभुजा पृष्टस्तपःसूनोर्महीभुजः । सर्वाश्वसाधनाधीशस्तन्त्रिपालााभिधोऽस्म्यहम् ॥६४ अश्वानां लक्षणं वेनि वनि सर्व चिकित्सितम् । देशं वेद्मि क्यो वेद्मि वेनि वाहनिकाक्रमम् ॥६५ जगाद सहदेवोऽथ पाण्डवेयस्स भूभुजः । गणशो गोकुलान्यासन् प्रत्येकं लक्ष्यसंख्यया ॥७१ स तेषां ग्रन्थिकं नाम संख्याकारं न्ययुक्त माम् । सर्वेषां वल्लवानां च राजन् ! नेतारमातनोत् ॥७२ स्नुषाथ पाण्डुराजस्य स्मितपूर्वमभाषत । मालिनी नाम सैरन्ध्री दास्यस्मि न नृपप्रिया ॥८१ चम्पूभारत ६, ३-२० २ इति संवसतां तेषां विराटनृपतेः पुरे । त्रयोदशस्य वर्षस्य मासा एकादशात्यगुः ।।दे. प्र. पां. च.१०-९६. ३ हरिवंशपुराणके अनुसार भीमने कीचकको लात-घूसोंसे मारकर और फिर उसे परस्त्रीके विषयमें श्रद्धासे परिपूर्ण कराकर छोड़ दिया । तत्पश्चात् उसने विरक्त होकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली और अन्तमें तपश्वरण करके मुक्तिको प्राप्त किया (४६-६१)। यथा तथा तस्य तदा श्रद्धा प्रपूर्य परयोषिति । अमुचद् व्रज पापेति दयमानो महामनाः ।। महावैराग्यसम्पन्नस्ततो विषयहेतुकम् । प्रावजत् कीचकः श्रित्वा मुनीन्द्रं रतिवर्धनम् ।। ह. पु. ४६, ३६-३७. दे. प्र. सूरिके पां. च. (१०, ९७-१६६ ) में भी कीचकके द्रौपदीमें कामासक्त होने और इसीलिये भीमके द्वारा मारे जानेका उल्लेख इसी प्रकारसे पाया जाता है । चम्पूभारत पृ. २५०-२७१. ४ दे. प्र. पाण्डवचरित्रके अनुसार दुर्योधनने पाण्डवोंकी खोजके लिये वृषकर्पर, नामक मल्लको भेजा था। उसे विराट नगरमें सूपकारके वेषमें भीमने मार डाला था ( १०, २२०-२२५ )। तदनु विदितवातों धार्तराष्ट्रश्चरेम्यः शुभगुणचरितम्यः सूतजानां शतस्य । वसतिमरिजनानां मत्स्यभूपालपूर्वी । हृदयमुकुरलग्गैहे तुभिर्निश्चिकाय || चम्पूभारत ६, ८२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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