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________________ त्रयोदशं पर्व २७९ इति श्रुत्वा तदा कन्या गतच्छाया विषण्णधीः। आर्तध्यानेन संतप्ता विन्ध्यसेनसुताभवत् ॥ मनोमत्तगजेन्द्रं सा निरुद्धय च दुरुत्तरम् । तपस्सन्ती तपस्तस्थौ निन्दन्ती कर्म प्राक्कृतम् ॥ ततस्ते पाण्डवाश्चेलुश्चण्डाः कुन्त्या समं मुदा। लोकयन्तोऽखिलॉल्लोकाँल्लसल्लीलाविलासिनः ॥ शृङ्गाग्रलमसत्संगिमृगाई रङ्गसंगतम् । त्रिशृङ्गाख्यं परं द्रङ्गं जग्मुस्ते पाण्डुनन्दनाः॥१०१ तत्पतिः पातितानेकपरिपन्थिजनोत्करः। दोर्दण्डमण्डितश्चाभूत्प्रचण्डचण्डवाहनः ॥१०२ प्रेयसी परमानन्दा सुपदा तस्य शोभते । विमला विमलाभासा नाम्ना च विमलप्रभा॥१०३ तयोः पुत्र्यो दश ख्याताः संख्यावत्यः सुशिक्षिताः। तासांज्येष्ठा सुगम्भीरा गुणज्ञाभूगुणप्रभा। द्वितीया सुप्रभा भासा सुप्रभा तृतीया पुनः। ह्री श्री रतिस्तथा पनेन्दीवरा सप्तमी मता ।। विश्वा विश्वगुणैः पूर्णा तथाश्चर्याभिधानिका । अशोका शोकसंत्यक्ता दशमी सुषमावहा ॥ ता यौवनजवायत्ता रूपसौभाग्यशोभिताः। भूपो वीक्ष्य निमित्तज्ञमप्राक्षीत्सुखसिद्धये॥१०७ इच्छा छोडकर तू गृहस्थव्रतोंका स्थिरतासे पालन कर कदाचित् तेरे पुण्यसे वे पाण्डव जीवित रहेंगे। क्यों कि ऐसे महापुरुषोंको देवभी मारनेमें असमर्थ होते हैं। इस प्रकारका कुन्तीका अभिप्राय सुनकर वह कन्या कान्तिरहित और खिन्न हुई। वह विन्ध्यसेन राजाकी पुत्री उस समय आर्तध्यानसे सन्तप्त हुई। उस कन्याने मनरूपी मत्त हाथीको रोका और पूर्वजन्मके किये हुए कर्मकी निंदा कर दुरुत्तर तप-अतिशय तीव्र तप किया। इस तरह अपना आयुष्य तपमें व्यतीत किया ।। ९०-९९ ॥ तदनंतर सुंदर लीलाविलासयुक्त सर्व लोगोंको देखते हुए वे प्रचण्ड पाण्डव कुन्तीमाताको साथ लेकर आनंदसे प्रवास करने लगे ॥१००॥ जिसके शिखरोंके आग्रभागोंपर नक्षत्रोंके साथ चन्द्र लगा हुआ दीखता है, तथा जो नृत्यशालासे युक्त है, ऐसे त्रिशृंगनामक उत्तम नगरको वे पाण्डवपुत्र गये। उस नगरके राजाका नाम ' चंडवाहन' था, उसने अनेक शत्रुओंका समूह नष्ट किया था। वह भुजदण्डसे मंडित और प्रचंड था। उसकी प्रिय पत्नीका नाम 'विमलप्रभा' था। वह विमल थी और निर्मल कान्तिवाली थी। अतः उसका नाम अन्वर्थक था। वह सदा अतिशय आनंदित थी, और उसके पांव सुंदर थे ॥ १०१-१०३ ।। इन राजदम्पतीको दश कन्यायें थीं। वे विदुषी अर्थात् सुशिक्षिता थी। उनमेंसे ज्येष्ठ कन्या अतिशय गंभीर और गुणज्ञ थी। उसका नाम 'गुणप्रभा' था। दुसरी कन्या 'सुप्रभा' नामकी थी। वह उत्तम कान्तिवाली थी। तीसरी आदि कन्याओंके नाम ये थे-ही, श्री, रति, पद्मा, इन्दीवरा। आठवी कन्याका नाम · विश्वा' था। क्यों कि वह विश्वगुणोंसे पूर्ण थी। नववी कन्याका नाम 'आश्चर्या ' था और दसवी कन्या शोकसे रहित 'अशोका' नामकी थी। ये सभी कन्यायें सौंदर्यवती थीं ॥ १०४१०६ ॥ ये सब कन्यायें तारुण्यके वेगके अधीन हुई थी अर्थात् अतिशय तरुण थी। रूप और सौभाग्यसे भूषित थीं। राजाने इन कन्याओंको देखकर निमित्तज्ञको इनकी सुखसिद्धिके लिये प्रश्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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