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। त्रयोदशं पर्व। चन्द्रप्रभ सुचन्द्राभं चन्द्रचर्चितपद्युगम् । चन्द्राक्षं चन्दनैश्चयं नौमि नानागुणाकरम् ॥१ अथ ते पाण्डवाश्चण्डा द्विजवेषधरा वराः । कुन्तीगतिविशेषेण संजग्मुश्च शनैः शनैः ॥२ ततः कौशिकसमामपुरी प्रापुनरेश्वराः । या स्वर्गतश्युतानीव धत्ते गेहानि सत्प्रभा ॥३ योच्चैः शालच्छलेनाशु जेतुं त्रिदिवपत्तनम् । उत्तस्थे सुस्थिता भूमौ नभःस्थं विगताश्रयम् ॥ तां पाति सुपतिः श्रीमान्सुमतिश्रुतिकोविदः। सुवर्णो वर्णनातीतवयाँ वर्णाभिधो नृपः ॥५ तत्प्रिया सुप्रिया भाति भूषिता च प्रभाकरी । यस्या मुखेन्दुना क्षिप्तं तमः पुरि न विद्यते ॥६ तयोर्वरात्मजा रम्या सुनेत्रा कमलाभिधा । कमलेव महारूपा सुगुणोदधिसंस्थिता ॥७ सैकदा प्रमदोद्यानं विशदश्रीनगोत्तमम् । चम्पकाचिन्त्यसजातिसुजातिसुमनश्चितम् ।।८ जगामोत्कण्ठिताकुण्ठा सोत्कण्ठितमनोभवा । लुठन्ती भासुरं तेजस्तेजोमूर्तिरिवापरा ॥९ सखीभिः सह संक्रीड्य सब्रीडापीडमण्डिता । कानने तत्र खेलाभिदोलाभिः कृतकौतुका।।
[पर्व १३ वाँ] जिनके चरणयुग चन्द्रसे पूजे गये, जिनकी देहकान्ति पूर्णचन्द्रकी सी है, जो नाना गुणोंकी खान है । जो चन्द्रलाञ्छनसे युक्त हैं, ऐसे चन्दनसे पूज्य चन्द्रप्रभतीर्थकरकी मैं स्तुति करता हूं॥१॥
अनंतर ब्राह्मणका वेष धारण करनेवाले श्रेष्ठ और प्रचण्ड पाण्डव कुन्तीके गति विशेषका अनुसरण कर धीरे धीरे प्रवास करने लगे। वे नरेश्वर पाण्डव कौशिकपुरीमें आगये, इस सुंदर नगरीमें जो श्रीमंतोंके महल थे वे स्वर्गसे नीचे उतरकर आये हुए विमानोंके समान दीखते थे॥२-३॥ पृथ्वीपर स्थिर रही हुई यह नगरी विना आधारके आकाशमें स्थित देवनगरीको (अमरावती) जीतनेके लिये ऊंचे तटके बहानेसे खडी होगई है-सज्ज हुई है ऐसा ज्ञात होता था ॥ ४ ॥ इस नगरीमें वर्ण नामक राजा राज्य करता था। वह शास्त्रज्ञ सुबुद्धि और वैभव संपन्न था। उसके धैर्य, विक्रम आदिक सद्गुण वर्णनातीत थे, वह सुवर्ण था अर्थात् उसकी देहकान्ति सानेके समान थी
और वह उत्तम क्षत्रिय कुलोत्पन्न था ॥ ५ ॥ उसकी अतिशयप्रिय पत्नीका नाम प्रभाकरी था, वह अलंकारोंसे भूषित थी, उसके मुखचन्द्रसे पराजित,होकर अंधकारने कौशिक नगरीका त्याग किया था॥ ६ ॥राजा वर्ण और रानी प्रभाकरीको सुंदर आंखोंवाली,सद्गुणरूपी समुद्रमें निवास करनेवाली लक्ष्मीके समान महारूपवती कमला नामक राजकन्या थी॥ ७ ॥ एक दिन वह विस्तीर्ण शोभायुक्त वृक्षोंसे सुंदर 'प्रमद' नामक उपवनमें कौतुकसे चली गई। उपवनमें चंपक और अवर्णनीय अच्छे जातीके मालती आदि पुष्प खिले हुए थे। जिसमें कामकी उत्कंठा उत्पन्न हुई है ऐसी, अपनी देहकांति इतस्ततः फैलानेवाली वह चतुर राजकन्या मानो कान्तिकी साक्षात् मूर्ति थी।
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