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________________ २६८ पाण्डवपुराणम् एतस्मिनन्तरे तुण्डी मकराकृतिधारिणी । महाभीमाकृति भीमं वीक्ष्य वेगाधाव च ॥ रुद्धो युद्धाय सनद्धो बंधयित्वा वधाकृतिम् । अखण्डा तुण्डिकां दृष्ट्वा बभूव सजले तरन।। अन्योन्यं पादघातेन घातयन्तौ रुषा तकौ । युयुधाते जले भीमौ मल्लाविव सुनिष्ठुरौ ॥३५७ तुण्डी तुण्डेन संहत्य शतखण्डमखण्डयत् । अखण्डः स प्रचण्डात्मा सुखण्डीमिव हण्डिकाम्।। तुण्डी प्रचण्डकोपेन व्यन्तरी मकराकृतिः । अगिलद्गलितानन्दमखण्डं पाण्डुनन्दनम् ॥३५९ क्रुद्धो भीमः स्वहस्तेन विपाट्य जठरं हठात् । तुण्ड्या उत्पाटयामास पृष्ठास्थि स्थिरसंगतम् विह्वलीकृत्य सा मुक्ता व्यन्तरी तेन सद्रुचा । पलायिता गता क्वापि मुक्त्वा त्रिपथगापथम् ॥ ततो भीमो भुजाभ्यां तामुत्तीर्याध्वानमाययौ। तावता ददृशे तैश्च पराङ्मुखविलोकिभिः । आयान्तं तं समावीक्ष्य युधिष्ठिरः स्थिरव्रतः । तस्थौ बन्धुजनैः सत्रं कुन्त्या हर्षितवक्रया ॥ ततस्तेषां महाभीमश्चरणाननमीति च । स्म समालिङ्ग्य तत्कण्ठमुत्कण्ठितमना महान् ॥ क्व जाहव्यतिगम्भीरा कथं तीर्णा सुदुस्तरा। भुजाभ्यां निर्जिता तुण्डी त्वया कथं सुमारुते।। इत्युक्ते तैर्बभाणासौ तां विभज्य सुतुण्डिकाम् । घातैः सरिज्जलं तीर्वात्रागतोऽहं भवद्वषात् ॥ मगरकी आकृति धारण की थी। उसने महाभीमाकृतिवाले भीमको देखा और उसके ऊपर वह वेगसे चढकर आई ॥ ३५२-३५५ ।। क्रुद्ध होकर भीमने उस समय वध करनेवालेका आकार धारण किया। अखण्ड तुण्डिकाको देखकर भीम युद्धके लिये उद्युक्त हुआ और जलमें तैरने लगा। जैसे दो मल्ल निष्ठुर होकर लडते हैं वैसे वे दोनों क्रोधसे भयंकर होकर एक दूसरेको पैरोंके आघातसे मारते. हुए पानीमें लडने लगे ॥ ३५६-३५७ ॥ अखण्ड़ और प्रचण्डस्वरूपके धारक भीमने जैसे खाण्डकी हाण्डीको फोडकर उसके सौ तुकडे किये जाते हैं वैसे तुण्डीको अपने मुखसे पकडकर उसके सौ तुकडे कर दिये। तब वह तुण्डी व्यन्तरी अत्यन्त क्रुद्ध हुई। मकराकृतिको धारण करनेवाली तुण्डी जिसका आनन्द गल गया है ऐसे अखण्ड भीमको निगल गई। क्रुद्ध भीमने अपने हाथसे उसका पेट हठसे फाडकर उसके पीठकी स्थिर जुडी हुई हड्डीको उखाडा । उत्तम कान्तिके धारक भीमने उस तुण्डीको विह्वलकर छोड दिया तब गंगानदीको छोडकर वह कहीं भाग गई। ॥ ३५८-३६१ ॥ तदनंतर भीम अपने बाहुओंसे नदी तैरकर मार्गपर आया। पीछे मुख करके देखनेवाले युधिष्ठिरादिकोंने भी भीमको देखा। आनेवाले भीमको देखकर स्थिरव्रतके धारक युधिष्ठिर अपने बंधुजनोंके साथ और हर्षित मुखवाली कुन्तीके साथ खडे होगये। तदनन्तर महाभीमने उनके चरणोंको बार बार नमस्कार किया। और उत्कंठितचित्त होकर उस उदार पुरुषने उनके कण्ठको आलिंगित किया। युधिष्ठिरादिकोंने भीमको पूछा ". हे मारुते, अतिशय गर्भार जाह्नवी कहां और उसको तुम अपने दो बाहुओंसे तैरकर कैसे आगये ? तथा तुण्डीदेवीको तुमने कैसे जीत लिया ? इस प्रकार पूछने पर “ मैंने बाहुओंके आघातोंसे उस तुण्डीको तोड दिया और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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