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________________ द्वादशं पर्व २६७ यावदुन्मूर्छिता कुन्ती तावदोभ्यां युधिष्ठिरः। संपीड्य हृदयं नद्यां पतितुं च समीहते ॥३४३ तस्मिन्नवसरे भीमो बमाण भयवर्जितः । स्वामिनिष्टे स्थिरं तिष्ठ पाहि पृथ्वी सुपावनीम् ।। कुरुवंशनभश्चन्द्र जहि शत्रुगणांश्च माम् । आज्ञापय नराधीश गङ्गायां पतनकृते ॥३४५ । पतित्वा तुण्डिका तूर्ण तोषयिष्यामि दानतः । बलेर्बलिन्यमास्ये च मात्मानं देहि मा वृथा।। पश्यामि पौरुषं तस्या विधाय वरसंगरम् । तयाथ घनघातेन घातयित्वा महासुरीम् ॥३४७ इत्युक्त्वा स ददौ झम्पां पिधाय सरितः पयः । त्वं गृहाण गृहाणेति भणन्भीतिविवर्जितः॥ पतितं तं समालोक्य विदधुः परिदेवनम् । युधिष्ठिरादयः कुन्त्या हाकारमुखराननाः॥ हा भीम हा महाभाग हा सद्भज पराक्रम । परोपकारपारीण क्षय्यपक्षक्षयंकर ॥३५० त्वया शून्यं कृतं सर्व त्वां विना शून्यमानसाः। वयं जातास्तरिष्यामः कथं वै दुःखसागरम् ।। ३५१ तत्क्षणे तरणिस्तूर्ण ततार सरितो जलम् । तीरं गत्वा समुत्तीर्णाः पाण्डवाः शोकसंगताः॥ तदुःखक्षणसंक्षिप्ता वीक्षमाणा विचक्षणाः । विपुलोदरसलगां कोपतुण्डां सुतुण्डिकाम् ॥ असातशतसंतप्ताः स्मरन्तो भीमसद्गुणान् । बाष्पपूर्णेक्षणाश्चेलु वमुत्तीर्य ते पथि ॥३५४ करता है ॥ ३३९-३४२ ॥ जब कुन्ती सचेत हुई तब अपने दोनों हाथोंसे छातीको पीडित कर नदीमें कूदना चाहती थी; इतनेमें भयरहित भीम इस प्रकार बोला-हे स्वामिन्, आप इष्टराज्यमें स्थिर रहें। इस पवित्र पृथ्वीका पालन करें। कुरुवंशरूप आकाशके चंद्र, आप शत्रुओंको नष्ट करें। मुझे गङ्गामें पडनेके लिये आज्ञा दे। मैं कूदकर बलिदानसे तुण्डिका देवीको सन्तुष्ट करूंगा। सामर्थ्ययुक्त यमके मुखमें आप व्यर्थ क्यों प्रवेश करते हैं। मैं उस महादेवीपर प्रचण्ड आघात कर उसके साथ जोरसे युद्ध कर उसका पौरुष देखूगा। ऐसा बोलकर भमि नदीका पानी अपने शरीरसे आच्छादित करके नदीमें कूद पडा और भयरहित होकर मैं तेरे लिये बलि आया हूं मुझे तू ग्रहण कर ' ऐसा कहने लगा ॥३४३-३४८॥ नदीमें गिरे हुए भीमको देखकर कुन्तीके साथ युधिष्ठिरादिक मुखसे हाहाकार कर शोक करने लगे । “ हे महाभाग्यवान् , उत्तम बाहुपराक्रमभूषित, परोपकारके दूसरे किनारेको पहुंचनेवाले, नष्ट करने योग्य शत्रुओंके पक्षका क्षय करनेवाले भीम, तुम्हारे विना सब शून्य होगया है। तुम्हारे विना हमारा मन शून्यसा हुआ है। अब इस दुःखसागरसे हम कैसे पार होंगे " ॥ ३४९-३५१ ॥ तत्काल वह नौका शीघ्रही नदीका पानी तोडकर तीरको जा पहुंची। शोकयुक्त पाण्डव नावसे नीचे किनारेंपर उतरे । भीमके विरहदुःखसे व्याकुल होकर वे चतुर युधिष्ठिरादिक विपुलोदरसे लडनेवाली, कोपसे लाल मुख जिसका हुआ ऐसी तुण्डिकाको देखने लगे। उस समय सैकडों असुखोंसे सन्तप्त होकर भीमके सद्गणोंका स्मरण करनेवाले युधिष्ठिरादिकोंकी आखें अश्रुओंसे भर गईं। वे नावमेंसे उतरकर मार्गमें चलने लगे। इधर तुण्डीने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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