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________________ (२६) सुभद्राके साथ अर्जुनका विवाह किसी समय कृष्णके बुलाने पर अर्जुनने ऊर्जयन्त पर्वतपर जाकर उनके साथ अनेक प्रकारसे क्रीडा की । पश्चात् वह कृष्णके साथ द्वारावती पहुंचा। वहां एक समय सुभद्राको जाते हुए देखकर अर्जुन उसकी सुन्दरतापर मुग्ध हो गया । उसने कृष्णसे उसका परिचय पूछा । कृष्णने हंसते हुए कहा कि क्या तुम नहीं जानते हो, यह मेरी सुभद्रा नामकी बहिन है । तब अर्जुनने हंसकर कहा कि यह मेरे मामाकी पुत्री है, अतः मेरे साथ इसका विवाह करना योग्य है । अन्ततः कृष्णकी इच्छानुसार अर्जुनके साथ सुभद्राका विवाह कर दिया गया। साथही युधिष्ठिरका लक्ष्मीमती, भीमका शेषवती, नकुलका विजया और सहदेवकाभी रतिके साथ विवाह सम्पन्न हुआ। अर्जुनके सुभद्रासे अभिमन्यु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। युधिष्ठिरकी द्यूतक्रीडामें हार व वनप्रवास किसी एक समय दुर्योधनने पाण्डवोंको बुलाकर युधिष्ठिरके साथ छलपूर्वक जुआ खेला। युधिष्ठिरने इस जुआ धन-धान्य व हाथी, घोडे आदि सब कुछ हारकर अन्तमें समस्त स्त्रियों और भाईयोंकोभी दावपर रख दिया । अन्तमें बारह वर्षतक पृथिवीको हारकर युधिष्ठिरने जुआको समाप्त किया । इधर दुर्योधनने उन्हें बारह वर्षतक वनमें अज्ञातवास और एक वर्ष गुप्तवास करनेकी दूतके द्वारा सूचना दी । इसी बीच दुःशासनने द्रौपदीके महलमें जाकर और उसके बालोंको खींचकर बाहर निकाला । इसपर भीम आदिको बहुत क्रोध आयो। परन्तु धर्मराजके समझानेपर वे शान्त रहे । अन्तं गत्वा वे कुन्तीको विदुरके घर छोड़कर प्रवास करने लगे। उन्होंने द्रौपदीकोभी विदुरके घर छोडना चाहा था, परन्तु वह वहां न रहकर उनके साथही गई। वे वन-उपवनों में १ हरिवंशपुराणमें पांचों पाण्डवोंके विवाहका निर्देशमात्र किया गया है । यथा ज्येष्ठो लक्ष्मीमती लेभे भीमः शेषवती ततः । सुभद्रामर्जुनः कन्यां कनिष्ठौ विजयां रति ॥ दशाईतनयास्तास्ते परिणीय यथाक्रमम् । रेमिरेऽमूभिरिष्टाभिः पाण्डवास्त्रिदशोपमाः ।। ४७, १५-१९ २ दे. प्र. सूरिके पाण्डवचरित्रके अनुसार दुःशासनने द्रौपदीको केवल चोटी खीचकर बाहरही नहीं निकाला था, बल्कि उसने सम्पूर्ण सभाके बीच उसके अधोवस्त्रको खींचकर उसे अपमानित करनेका भी प्रयत्न किया था । किन्तु दैवीयप्रभावसे एक वस्त्रके खींचे जानेपर ठीक उसी प्रकारका दूसरा और दूसरेके खींचे जानेपर तीसरा, इस प्रकार वस्त्रपरम्परा देखी गई । इस प्रयत्नमें दुःशासन यक गया, किन्तु उसे नमन कर सका । इस दुष्कृत्यसे अत्यन्त क्रोधित होकर भीमने प्रतिज्ञा की कि जो द्रौपदीको बाल खींचकर सभाके बीचमे लाया है और जिसने गुरुओंके देखते खींचा है, उसके बाहुको मूलसे उखाड़कर यदि भूमिको रक्तरंजित न कर दूं तथा उसके ऊरुको गदासे चूरचूर न कर दूं तो मेरा पाण्डुसे जन्म नहीं (६, ९५२-१०००)। ३ दे. प्र. पाण्डवचरित्रके अनुसार पाण्डु तो विदुरके पास हस्तिनापुरही रहे, किन्तु कुन्ती साथमें गई थी ( ७ ,९५-९७ )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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