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________________ दिया। इससे युद्ध समाप्त हो गया और चतुरङ्ग सेनासहित पाण्डव तथा कौरव हस्तिनापुर जा पहुंचे। हस्तिनापुर पहुंचकर पाण्डव व कौरव परस्परमें प्रीतिको प्राप्त हो पृथिवी, हाथी, घोडे एवं रथों आदिका आधा आधा विभागकर आनन्दसे रहने लगे। पाचों पाण्डव क्रमशः इन्द्रपथ, तिलपथ, सुनपथ [ सोनिपथ, ], जलपथ [पानीपत और वणिक्पथ, इन पांच नगरोंको बसाकर उन्हीमें रहते थे। युधिष्ठिर और भीमने अनेक नगरोंमें पहुंचकर जिन राजपुत्रियोंके साथ विवाह किया था उन सबको बुला लिया। कौशाम्बीनरेशकी पुत्री वसन्तसेनाको लाकर उसके साथ युधिष्ठिरका विवाह कर दिया गया। ४ ह. पु. ४५, १३५-३७. प्रस्तुत, पाण्डवपुराण ( २४, ६८-६९ व ८०-८१ ), हरिवंशपुराण (६४, १३४-३५ ) और उत्तरपुराण ( ७२, २५७-५९) में इस अपयशका कारण पूर्वभवमें द्रौपदी (कुमारिका ) के द्वारा किया गया निदान बतलाया गया है। उसने पूर्वभवमें आर्थिकाधर्मका पालन करते हुए पांच विट पुरुषोंसे युक्त किसी वसन्तसेना नामकी सुन्दर वेश्याको देखकर ऐसा सौभाग्य मेरे लिये प्राप्त हो' इस प्रकारका विचार किया था। तदनुसार उसे यह अपयश प्राप्त हुआ। त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित्र ( ६, ६, २७९.३३६ ) और देवप्रभसूरिकृत पाण्डवपुराणके अनुसार द्रौपदी पांचों पाण्डवोंकाही वरण करना चाहती थी, परन्तु लोकापवादके भयसे उसने अर्जुनके गलेमें वरमाला डाली । फिरभी किसी दिव्य प्रभावसे लोगोंको ऐसा प्रतीत हुआ कि द्रौपदीने पांचोंकेही गलेमें वरमाला डाली ( ४, ३०९-१३ )। उन्हें " द्रौपदीने पांचोंका वरण किया " ऐसी आकाशवाणी भी सुनायी दी। इससे किंकर्तव्यविमूढ हो द्रुपद राजा चिन्तित हुआ । इसी समय एक चारण ऋषिने मण्डपमें आकर द्रौपदीके पूर्वभवोंका वर्णन करते हुए कहा कि इसने सुकुमारिकाके भवमें आर्यिकासंयमका पालन करते हुए, पांच विट पुरुषोंके साथ एक देवदत्ता नामकी वेश्याको देखकर “ तपके प्रभावसे मैं इसके समान पंचप्रेयसी होऊ" इस प्रकारका निदान किया । इस निदानका कारण उसकी भोगेच्छाका पूर्ण न हो सकना था (४, ३७८, ३८१ )। तदनुसार इसे पांच पतियोको प्राप्ति हुई । ऐसा कहकर चारण ऋषि वहांसे चले गये व द्रौपदीका पांचों पाण्डवोंके साथ विवाह सम्पन्न हो गया ( ४१७ )। विष्णुपुराणमें पांचों पाण्डवोंके संयोगसे द्रौपदीके निम्न पांच पुत्रों के उत्पन्न होनेका उल्लेख पाया जाता है। युधिष्ठिरसे प्रतिविन्ध्य, भीमसेनसे श्रुतसेन, अर्जुनसे श्रुतकीर्ति, नकुलसे श्रुतानीक और सहदेवसे श्रुतश्रम (४, २०, ४१-४२)। ५ यह द्रौपदीके विवाहका प्रसंग हरिवंशपुराण ( ४५, १२०-१४७ ) में भी इसी प्रकारसे पाया जाता है । इस प्रकरणमें ह. पु. के निम्न श्लोकोंसे पाण्डवपुराणके निम्र श्लोक अधिक प्रभावित हैं-ह. पु. १२६-१२९, १३२, १३५-१३९; पां. पु. १५ पर्व ५४, ६६-६८, १०८, ११२-११६ । ६ अर्धराज्यविभागेन ते हास्तिनापुरे पुनः। तस्थुर्दुर्योधनाद्याश्च पाण्डवाश्च यथायथम् ।। ह. पु. ४५-१४८. ७ आनाय्यानाय्य वृत्तोऽसौ ज्येष्ठ [ज्येष्ठः] कन्याः पुरातनीः। विवाह्य सुखिताश्चके । भीमसेनो निजोचिताः ।। ह. पु. ४५-१४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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