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पाण्डवपुराणम् पुरोधसं द्विजं क्षिप्रमाकार्य कौरवाग्रणीः । वसनस्वर्णभूषाधर्मानयित्वा नृपोऽवदत् ॥१३३ पुरोषः पृथिवीख्याता भूदेवा देववन्मताः । कुर्वन्तो भूमिकार्याणि यूयं भवत सिद्धये॥१३४ मदिष्टं शिष्टकार्य च संगोप्यं परमार्थतः। त्वया कर्तव्यमेवात्र सत्कर्तव्यविधायिना ।।१३५ जातुषं धाम धीमंस्त्वं धम मद्धतिहेतवे। विधातव्यमिदं कार्यमस्माकं सुखसाधनम् ॥१३६. बंदीप्सितं गृहाण त्वं कुरु कार्य क्षणार्धतः। इत्युक्त्वा तं प्रतोष्याशु वाञ्छितैर्धनसंचयैः ॥ तदाहार्थ समादेशं भूदेवाय ददौ नृपः । तथात्वं सोऽपि संलुब्धो लोभतः प्रतिपन्नवान् ।। अहो लोभो महान्पापो लोभात्कि न प्रजायते। दुष्पमं विषमं कार्य धिक पुंसां लोभिना लघु इन्दिरा सुन्दरा नैव मन्दिरं दुष्टकर्मणः । तदायत्ताः प्रकुर्वन्ति किमकृत्यं न देहिनः॥१४० प्रातरं पितरं पुत्रं मित्रं भृत्यं गुरुं तथा । लक्ष्मीलुब्धा नरा भन्ति भूपति चान्यमानवम् ॥ पद्मासमाश्वदन्त्यादीन्पौरस्त्या नरपुङ्गवाः। दीक्षेप्सवो विमुच्याशु वन्यां वृत्ति प्रभेजिरे । सूत्रकण्ठो विकुण्ठः स हठाद्दुर्लण्ठमानसः। लक्ष्मीलोभेन संजातस्तद्धामदहनोद्यतः ॥१४३
पावोंमें जड बेडी डालकर उसे कैदखानेमें रख दिया। कौरवोंके अगुआ दुर्योधन राजाने पुरोहित ब्राह्मणको शीघ्र बुलाकर वस्त्र, सुवर्ण, अलंकार इत्यादिकोंसे उसका आदर कर कहा । " हे पुरोहित आप पृथिवीमें प्रसिद्ध भूदेव हैं, और देवके समान मान्य हैं। इस भूमिपर लोगोंके कार्य करके आप उनकी सिद्धि करते हैं। मुझे प्रिय और सज्जनोंको करने योग्य सहकार्य परमार्थतया गुप्त रखने योग्य है। उत्तम कर्तव्य करनेवाले आपसे यह कार्य इस समय यहां करने योग्यही है । हे बुद्धिमान् मुझे संतोष होनेके लिये यह लाक्षागृह जलाओ। हमारे लिये सुखका साधन यह कार्य आपको करनाही पडेगा। इसके लिये जो आप चाहते हैं वह ग्रहण करो और क्षणार्धमें हमारा यह कार्य करो" ऐसा बोलकर उसको उसने इच्छित धनसमूहसे सन्तुष्ट किया, और लाक्षागृह जलानेके लिये राजाने ब्राह्मणको आज्ञा दी। उसने भी लोभसे लुब्ध होकर वैसा कार्य करनेका स्वीकार किया ॥ १३२१३८ ॥ " अहो लोभ महापाप है। लोभसे कौनसा अनर्थ उत्पन्न नहीं होता है ? दुःखदायक और कठिन कार्य लोभसे लोग करते हैं। लोभी पुरुषोंको विकार होवे । यह लक्ष्मी वास्तविक सुंदर नहीं है, वह तो दुष्ट कार्योंका घर है। इस लक्ष्मीके वश हुए लोग कौनसा अकृत्य नहीं करते हैं ? भाई, पिता, पुत्र, मित्र, नोकर, गुरु इनको लक्ष्मीमें लुब्ध हुए मानव मारते हैं। इतनाही नहीं अन्य मनुष्यको और राजाकोभी लोभी मनुष्य मार डालते हैं ॥ १३९-१४१॥ लक्ष्मी, प्रासाद, घोडे और हाथी आदिक पदार्थों को प्राचीन महापुरुषोंने दीक्षाकी इच्छासे छोडकर वन्य वृत्तिको पसंद किया था, अर्थात् नग्न मुनि होकर तपश्चरण किया था। १४२ ॥ चतुर दुष्टचित्तवाला वह ब्राह्मण लक्ष्मीके लोभसे गृद्ध होकर उस लाक्षागृहको जलानेके लिये तयार हुआ ॥ १४३ ॥ वह निर्लज्ज ब्राह्मण धृष्टतासे उस प्रासादवे. समीप गया और उसने चारों तरफसे तत्काल अग्नि लगा
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