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पाण्डवपुराणम् मुग्धाः शुद्धधियो धम्यं कुर्वन्तः कर्म कोविदाः। सातमास्तिघ्नुवानास्ते स्थिति भेजुर्भयातिगाः तेषां दम्भमजानन्तो निर्दम्भारम्भभागिनः। तस्थुस्तत्र हि को वेत्ति दारुमध्यस्य रिक्तताम्।। कथं कथमपि ज्ञात्वा विदुरो जतुनिर्मितम् । सदनं सदयो दीपस्तत्कापट्यमचिन्तयत् ॥८८ युधिष्ठिरं समाहूय वचनं विदुरोऽवदत् । तत्कैतवमजानानं जानानं जिनसद्रुचिम् ।।८९ . वत्स सजन विश्वास्या दुर्जनाः सजनैर्न हि । अन्यथा ददते दुःखं दन्दशूका इवोद्धुराः॥ विश्वास्या मुखमिष्टाश्चान्तर्मला निखिलाः खलाः। सेवालिनस्तु पाषाणा यथा पाताय केवलम्।। राजभिर्न च विश्वास्यं परेषां हृदयं खलु । परे तत्र कथं पुत्र विश्वास्याः स्युः सुखार्थिभिः ॥ न विश्वसन्ति भूपालाः सुतं तातं च मातरम् । भ्रातरं भामिनीं तत्र कथमन्यान्खलाञ्जनान्॥ अतस्त्वया न विश्वास्याः कौरवाः कलिकारिणः। भवतो धाम्नि संस्थाप्य मारयिष्यन्ति दुर्धियः लाक्षागृहमिदं भद्र निर्मितं केन हेतुना । न जानीमो वयं नूनमेषां को वेत्ति छपताम् ॥९५ दिवा स्थितिर्विधातव्या जातुचित्रात्र समनि। स्थितिश्चेदर्गमं दुःखं भविता भवतामिह ॥९६ वनक्रीडापदेशेन प्रतिघस्रमघस्मरैः । बने रन्तुं प्रगन्तयं भवद्भिर्भाग्यभोगिभिः ॥९७
जाननेवाले शुद्ध बुद्धिके विद्वान् पाण्डव वहां रहकर धर्मकर्म करने लगे। सुखानुभव करते हुए निर्भय होकर वे वहां रहने लगे ॥ ८६ ॥ कौरवोंके कपटका पता जिनको नहीं लगा था ऐसे पाण्डवोंके सब कार्य कपटरहित थे। वे वहां सुखसे रहने लगे। योग्यही है, ढोलकी पोल कौन जानता है ? ॥८७॥ दयालु और तेजवी विदुरने बडे कष्टोंसे वह गृह लाखसे बनवाया गया है ऐसा जान लिया तब कौरवोंके कपटका वे मनमें विचार करने लगे ॥ ८८॥
युधिष्ठिरको विदुरका उपदेश ] जिनेश्वरके ऊपर श्रद्धा रखनेवाले और कौरवोंका कपट न जाननेवाले युधिष्ठिरको बुलाकर विदुरने इस प्रकार कहा " हे वत्स हे सज्जन, सज्जनोंको दुर्जनोंपर विश्वास रखना योग्य नहीं है, यदि विश्वास रखा जावे तो क्रुद्ध सपोंके समान वे दुःख देते हैं। संपूर्ण दुर्जन विश्वासयोग्य नहीं ह, क्योंकि वे मुखसे मिष्ट बोलते हैं, परंतु उनके पेटमें मल-कपट होता है। वे दुर्जन शेवालयुक्त, पाषाणके समान अधःपतनके लिये कारण होते हैं । राजाओंको दूसरोंके हृदयका विश्वास रखना योग्य नहीं है। फिर हे पुत्र, सुखेच्छुओंके द्वारा शत्रुओंके ऊपर विश्वास रखना कैसे योग्य होगा? राजा पुत्र, पिता, माता, भाई, और पत्नीपरंभी विश्वास नहीं रखते हैं। फिर अन्य दुर्जनोंपर वे विश्वास कैसा रखेंगे? इस लिये हे युधिष्ठिर, कलह करनेवाले इन कौरवोंपर तुम विश्वास मत करो। वे दुष्ट इस घरमें तुमको रखकर मारेंगे। हे भद्र, किस हेतुसे यह लाक्षागृह इन्होंने बनवाया है, हम नहीं जानते हैं; क्योंकि इनका कपट जानने में कौन समर्थ है ? हे वत्स तुझें दिनमें इस महलमें कदापि नहीं रहना चाहिये। यदि रहोगे तो तुझें बडा कष्ट सहन करना पडेगा। वनक्रीडाके निमित्तसे भाग्यका अनुभव करनेवाले
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