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द्वादशं पर्व
२४३ पृथक्स्थितौ शुभं सारं सुखसंततिरुनता। राज्यभोगो भवेच्छुप्रोऽविरोधश्चक्षुषोरिव ।।७५ इति निश्चित्य गाङ्गेयस्तानाहूय सुपाण्डवान् । अवदद्राजशार्दूलो मत्या मुरगुरूपमः ॥७६ पाण्डवाश्चण्डकोदण्डाः प्रचण्डाखण्डलोपमाः। यूयं श्रृणुत सद्वाक्यं सातसिद्धयर्थमञ्जसा ॥ उत्तमे निर्मिते धाम्नि नूतने सत्तनूपमे । स्थिति कुरुत शीघ्रण यूयं विभौघहानये ।।७८ मिन्नं स्थिता भवन्तोत्र सुखसंदोहभागिनः। भवितारो न भेतव्यं भवद्भिभव्यतायुतैः॥ इत्युक्तास्ते युताः सातैर्गुरुप्रामाण्यपूरिताः। प्रतस्थिरे गृहं गन्तुं गुणैरापूरिताशयाः ॥८० ततो भेर्यो भयोन्मुक्ता भेणुभम्भाभिभाषणाः। दध्वनुः पटहव्यूहाः सस्वरुवंशजाः स्वरा॥८१ नटा नेटुः समुद्भिनपुलका विपुलामलाः। मृदङ्गतालकंसालवीणाघुर्घरिकान्विताः ॥८२ मङ्गलानि सगेयानि जगुर्गीतानि नायकाः। कामिन्यः कलनादेन कलयन्त्यश्च तद्गुणान् ॥ इत्थं यथायथं योग्याः कुर्वन्तो दत्तिविस्तृतिम् । समङ्गलाः समापुस्ते सुमुहूर्ताह्नि तद्गहम्।।८४ तत्र स्थिता ददुर्दानं मानं सत्कुलवासिनाम् । चक्रुः पूजां सुपूज्येषु पाण्डवाः स्थिरमानसाः।।
॥७४॥ जैसे दो चक्षु-आंखे अलग रहती हैं, इसलिये उनमें विरोध नहीं होता वैसे पृथक रहनेसे विरोध न होकर शांति रहती है । ऊंचे दजका सुख संतत प्राप्त होता है। उज्ज्वल राज्यभोग मिलते हैं और विरोध नष्ट होता है " ॥७५। इस प्रकारसे निश्चयकर राजाओंमें श्रेष्ठ, और मतिसे बृहस्पति तुल्य ऐसे गाङ्गेय इसप्रकार बोले “ भयंकर धनुष्यधारक, प्रचण्ड इंद्र के समान हे पाण्डव आप सुखकी प्राप्ति होनेके लिये सत्य हितोपदेश सुनें ॥ ७६-७७ ॥ नवीन उत्तमशरीरके समान निर्माण किये हुए सुंदर प्रासादमें आपको विघ्नसमूह का नाश होनेके लिये शीघ्र निवास करना चाहिये। हे पाण्डवो, आप कौरवोंसे अलग होकर इस प्रासादमें रहनेसे सुखसमूहको भोगेंगे। आप भव्य हैं, अच्छे निष्कपट स्वभावके धारक हैं, आप बिलकुल न डरें" ॥ ७८-७९ ॥ इसप्रकार उपदेश करनेपर सुखयुक्त और गुरुके [ भीष्माचार्यके ] वचनोंपर विश्वास रखनेवाले तथा गुणोंसे जिनका मन पूर्ण भरा हुआ है ऐसे पाण्डव लाक्षागृहमें रहनेके लिये गये ॥ ८०॥
[पाण्डवोंका लाक्षागृहमें निवास ] उस समय, भयरहित भेरीवाद्य बजने लगे। उनका भभभं ऐसा ध्वनि होने लगा। पटह नामक वाद्यभी बजने लगे । वंशीसे मधुर स्वर निकलने लगे। निर्मल वेषवाले बहुत नट नृत्य करने लगे, जिन्हें देखकर शरीरपर रोमांच खडे हो जाते थे। नायक लोक मृदङ्ग, ताल, कंसाल, वीणा और धुधुरिका वाद्योंकी ध्वनिका अनुसरण कर गाने योग्य मंगलगीत गाने लगे। स्त्रियांभी मधुरस्वरोंसे पाण्डवोंके गुण गाने लगीं। इसप्रकार यथाविधि योग्य अतिशय दान देनेवाले उन पाण्डवोंने मंगलके साथ सुमुहूर्तयुक्त दिनमें उस लाक्षागृहमें प्रवेश किया। ॥ ८१-८४ ॥ लाक्षागृहमें निवास करनेवाले स्थिरचित्त पाण्डव दान देते थे, उत्तम कुलमें जन्मे हुए सज्जनोंको मान देते थे आर सुपूज्य सत्पुरुषोंमें पूजा-आदर रखते थे ॥८५॥ दुर्योधनका कपट न
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