________________
एकादशं पर्व
२३१
कृष्णसंबोधनं किं स्यात्किं पदं व्यक्तवाचकम् । के गर्वाः को विधीयेत वादिभिर्निंगमश्च कः । प्रसिद्धोऽथ भुजंगेशोऽहंकारवादकस्तु कः ॥ १६४
अ, हि, मदा, वादः, अहिमदाबादः, अहिः, मदाः, इष्टानिष्टं दहेत्सर्व देवो दाहकरस्तथा । अन्धक्रुद्धततेजस्कः स भाति भूधरोदरे ।। १६५ देवपदादेकारच्युतकम् । दवः रम्यं काय फलं मातः सर्वेषां तोषदायकम् । जिनचत्रिबलादीनां पदस्य सकलोन्नतेः ॥ १६६ क्रियागुप्तम् । कायेति क्रिया कथयेत्यर्थः ।
66
लिये अच्छा प्राणी कौन है ? और सबको जलानेवाला कौन है ? माताका उत्तर- निश्चयवाचक पद 'वै' है। पशु हलका जानवर 'वा' है। कुत्तेको वा कहते हैं । ' नर' मोक्षके लिये पात्र है और सर्वदाहक 'वैश्वानर' अग्निको वैश्वानर कहते हैं। वै, श्वा, नरः, समुच्चयसे वैश्वानरः ॥ १६३ ॥ प्रश्न - हे जिनमाता कृष्णका संबोधनवाचक शब्द कौनसा है ? तथा व्यक्तका वाचक कौनसा शब्द है, गर्व कौनसे हैं ? गर्वका वाचक शब्द कौनसा है । वादियोंसे क्या किया जाता है ? और प्रसिद्ध गांव कौनसा है ? भुजगेश और अहंकारवाचक शब्द कोनसा है ? माताने उत्तर दिया- ' अ ' यह कृष्णका संबोधन है। स्पष्टतावाचक ' हि ' शब्द है । गर्ववाचक शब्द ' मदा ' है अर्थात् ज्ञानमद, जातिमद, कुलमद इत्यादि आठ मद हैं । वादियोंसे 'वाद' किया जाता है । प्रसिद्ध शहरका नाम ' अहिमदाबाद ' है । भुजगेश शेषको 'अहि' कहते हैं। अहंकार वाचक शब्द 'मदा' है । अ, हि, मदा, वाद, अहिमदाबाद, अहि, मदा ॥ १६४ ॥ स्वरच्युतकका श्लोक किसी देवताने कहा । माताने जानकर उत्तर दिया । देवताने कहा “ देव इष्टानिष्ट सबको जलाता है तथा वह सबको दाह उत्पन्न करता है। उसने तेज धारण किया है । वह लोगोंको अंधा बनाता है । और वह पर्वतके उदरमें चमकने लगता है। माताने 'इष्टानिष्टं दहेत्सर्वं ' यह श्लोक सुनकर कहा कि इसमें 'देवा दाह करस्तथा' यह चरण दवो दाहकरस्तथा, देव शब्दके स्थान में ' दव' शब्द होना चाहिये । तब अर्थ योग्य बैठता है । नहीं तो देव इष्टानिष्ट सबको जलाता है इत्यादि अर्थ युक्तिसंगत नहीं है । अर्थात् यह एकारच्युतक है । ' दव ' शब्दका अग्नि अर्थ है अर्थात् अग्नि सत्र इष्टानिष्टको जलाता है । दाह उत्पन्न करता है इत्यादिक अर्थ ठीक बैठता है ।। १६५ ॥ एक देवताने क्रियागुप्तका श्लोक कहा। माताने उसमें कौनसा क्रियापद गुप्त है वह कह दिया । माताको देवताने प्रश्न किया । " हे माता, जिनेश्वर, चक्रवर्ती, बलभद्र आदि सर्व महापुरुषोंको तोषदायक सर्व उन्नतिके पदका रमणीय कायफल " इसमें क्रियापद नहीं है । तब माताने ' रम्यं काय फलं मातः ' इस प्रथम चरणमें 'काय' • यह क्रियापद है ऐसा कहा । काय-कथय-कहो । अर्थात् सर्व उन्नतीका सुंदर फल कहो इस प्रश्नका माताने ' अमृतं ' मोक्ष यह सर्वोन्नतिका फल है ऐसा उत्तर दिया ॥ १६६ ॥ पुनः एक देवताने क्रियागुप्तका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org