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________________ २२० पाण्डवपुराणम् विततार सुता तस्मै राज्याचं स प्रहृष्टधीः। कंसोऽपि वैरतः सैन्यैर्मथुरा समियाय च ॥५३ बन्धयित्वा स कोपेन गोपुरे पितरौ न्यधात् । स्वपुरं वसुदेवोऽथ तेनानीतः स्वभक्तितः ॥५४ अथो मृगावतीदेशे दशाणेनगरे नृपः। देवसेनः प्रिया तस्य धनदेवी धनप्रिया ॥५५ तयोः सुता शुभालापा देवकी कोकिलस्वना । दापिता वसुदेवाय कंसेन महदाग्रहात् ॥५६ ततः क्रमेण संभूता देवक्यां युगलात्मना। षद् सुताः सप्तमः कृष्णोऽजायताइतविक्रमः॥५७ पिता रामेण संमन्त्र्य भयात्कंसस्य गोकुले। यशोदानन्दगोपाभ्यां तं वर्धनाय दत्तवान् ॥५८ कालेन पुण्यतस्तत्र वृद्धोऽसौ वृद्धबुद्धिमान् । चाणूरेण समं कसं निगृह्य सुखमाश्रितः॥५९ रूप्याद्रौ रथचक्रादिनपुरेऽथ पुरे पतिः। सुकेतुस्तत्प्रिया प्रीता स्वयंशोभा स्वयंप्रभा ॥६० तयोः सुभामा सत्याभा सत्यभामा सुताजनि। या रूपेण शची नूनमधः कुरुत इत्यलम् ॥ तादृशीं तां समालोक्य भूपो नैमित्तिकं मुदा। निमित्तकुशलाख्यं चेत्यप्राक्षीत्कस्य वल्लभा।। जनितेयं स आलोच्यावोचद्देवी भविष्यति। त्रिखण्डाधिपतेः श्रुत्वा दूतप्रेषणपूर्वकम् ॥६३ सैन्यको लेकर मथुराके ऊपर चढकर आया । उसने कोपसे मातापिताको बांधकर गोपुरमें रेख दिया । तदनन्तर उसने वसुदेवको भक्तिसे अपने यहां बुलाया ॥४८-५४॥ मृगावती देशमें दशार्ण नामक पुरमें देवसेन राजा राज्य करता था। उसकी प्रियपत्नी का नाम धनदेवी था । उसे धन बहुत प्रिय था। इन दोनोंको शुभ भाषण करनेवाली, कोकिलाके समान मधुरस्वरवाली देवकी नामक कन्या थी । कंसने अतिशय आग्रहसे वह वसुदेवको दिलवाई ॥५५-५६॥ तदनन्तर क्रमसे देवकीमें युगरूपसे छह पुत्र हुए और आश्चर्यकारक पराक्रमका धारक कृष्ण सातवा पुत्र हुआ। उसके पिताने-वसुदेवने कंसके भयसे बलरामके साथ विचार करके गोकुलमें यशोदा और नंदगोपके अधीन कृष्णको पालन करनेके लिये किया । बढी हुई बुद्धिको धारण करनेवाला कृष्ण पुण्योदयसे वहां बढ गया । कुछ काल व्यतीत होनेपर चाणूरमल्लके साथ कंसका कृष्णने निग्रह कियानाश किया और सुखसे रहने लगा ॥ ५७-५९ ॥ विजयापर्वतपर रथनूपुर नगरका राजा सुकेतु था उसकी पत्नीका नाम स्वयंप्रभा था, उसका शरीर स्वयं शोभायुक्त अर्थात् सुंदर था। इन दम्पतीसे सत्यभामा नामक कन्याने जन्म धारण किया । उसकी शरीरकी कान्ति उत्तम थी और सच्ची थी इस लिये उसे सुभामा, सत्यभामा ऐसे भी नाम थे। यह कन्या अपने रूपसे इन्द्राणीकोभी अतिशय धिक्कारती थी, उसको देखकर निमित्तकुशल नामक नैमित्तिकको आनन्दसे सुकेतु राजाने यह किसकी प्रियपत्नी होगी ऐसा प्रश्न पूछा। तब उसने विचारकर त्रिखण्डाधिपतिकी यह वल्लभा होगी ऐसा कहा । तब उसने दूतको भेज दिया, उसने सुकेतुराजा अपने पुत्रको-श्रीकृष्णको अपनी कन्या सत्यभामा देना चाहता है ऐसा कहा । समुद्रविजयादिकोंने सुकेतुका कहना मान्य किया। तब श्रीकृष्णको राजाने अपनी कन्या दी, और वह चिन्तारहित होकर सन्तुष्ट हुआ। कृष्णभी सत्यभामाको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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