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________________ एकादशं पर्व २१९ कदाचिदथ कंसेन जरासंधदिदृक्षया । राजगृहे ययौ योद्धा वसुदेवो विदांवरः ॥४२ जरासंधस्तदा भूपानित्याज्ञापयति स्म च । सुरम्यविषयान्तःस्थपोदनाख्यपुरेश्वरम् ॥४३ ।। शत्रु सिंहरथं जित्वा बद्ध्वानीय ममाग्रतः। यो मुञ्चति सुतां तस्मै नाम्ना जीवद्यशोऽभिधाम्।। जातां कालिन्दसेनायां साधं दास्यामि नीवृता । इति वीक्ष्य नृपाः पत्रमालिकां च व्यरंसिपुः।। वसुदेवकुमारस्तां गृहीत्वा निर्गतो बलैः। विद्यासिंहरथेनाशु जित्वा सिंहरथं पृथुम् ॥४६ कंसेन बन्धयित्वा तमर्पयामास भूपतिः । सोऽपि तस्मै सुतां दातुमीहते स्म सुनीवृता ॥४७ स दुष्टलक्षणां ज्ञात्वा तां जरासंधमब्रवीत् । अनेनैव रिपुर्बद्धः श्रुत्वेति स व्यतर्कयत् ।।४८ . कोऽयं किमाभिधानोऽस्य कुलं किमिति भूभुजा। पृष्टे च सोऽवदनाथाहं च मन्दोदरीसुतः॥ मन्दोदरी समाहूता तदा तेन महीभुजा । सा मञ्जूषां समादायागता मुक्त्वेति तां जगा । वहन्ती देव कालिन्द्यां मञ्जूषां प्राप्य तत्र च । दृष्टोऽयं वर्धितः कंसनाम्ना मातेयमस्य वै॥ मञ्जूषान्तस्स्थपत्रं स गृहीत्वावाचयत्तराम् । इत्युग्रसेनभूपस्य पद्मावत्याः सुतोऽप्ययम्॥५२ जरासंधराजाको देखनेके लिये योद्धा और विद्वच्छेष्ठ ऐसे वसुदेव कंसके साथ राजगृहको चले गये। उस समय जरासन्धने राजाओंको इसप्रकार आज्ञा की थी “ सुरम्य देशके मध्यमें पौदन नामके नगरका स्वामी सिंहरथ मेरा शत्रु है उसे जीतकर और बांधकर जो राजा मेरे पास लावेगा उसको मैं मेरी ' जीवद्यशा' नामकी कन्या जो मेरी पट्टरानी कलिंदसेनामें उत्पन्न हुई है उसे मैं देशके साथ अर्पण करूंगा " इस प्रकारके पत्र देखकर वे राजा चुप बैठे अर्थात् सिंहरथको जीतकर जरासंधके पास ले जाना बडा कठिन कार्य है ऐसा वे समझकर स्वस्थ बैठे रहे। परंतु वसुदेवकुमार उस पत्रमालिकाको ग्रहण कर सैन्यके साथ निकला । विद्यायुक्त सिंहरयसे महापराक्रमी सिंहरथ राजाको शीघ्र उसने जीत लिया । कंसके द्वारा उसको बंधवाकर राजाके लिये सोंप दिया। राजाने भी देशके साथ अपनी कन्या वसुदेवकुमारको देनेकी इच्छा व्यक्त की ।। ४२-४७ ॥ परंतु जीवघशा कन्याके लक्षण अच्छे नहीं हैं ऐसा देखकर कंस सिंहरथको बांधकर आपके पास ले आया है ऐसा वसुदेवने राजाको कह दिया । यह बात सुनकर राजा मनमें इस प्रकारसे विचार करने लगायह कौन है, इसका नाम क्या है ? और इसका कुल क्या है-किस कुलमें यह जन्मा है ? ऐसे प्रश्न पूछनेपर कंसने कहा, कि हे नाथ, मैं मन्दोदरीका पुत्र हूं। तब उस राजाने मंदोदरीको बुलाया,वह अपने साथ पेटी लेकर आगई। राजाके आगे पेटी रखकर उसने कहा हे नाथ, कालिन्दी (यमुना) में यह पेटी बहते बहते आई, मुझे प्राप्त हुई, उस पेटीमें यह बालक मुझे मिला, मैंने उसको कंस नामसे बढाया । मैं इसकी माता नहीं हूं परंतु यह पेटी इसकी माता है । पेटीमेंसे राजाने पत्र लेकर बचवाया । “उग्रसेन राजा और रानी पद्मावतीका यह पुत्र है" ऐसा उससे समझकर राजाने हर्षित होकर अपनी कन्या उसे राज्यार्धके साथ दी । कंस आनंदित होकर पिताके साथ वैर होनेसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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