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________________ २१८ पाण्डवपुराणम् एवं खगाचले सप्त शतानि सुखगेशिनाम् । कन्याः प्राप स पुण्येन पुण्यात्किं दुर्लभं भुवि॥ ततो निवृत्त्य भूभागेरिष्टनाम्नि पुरे प्रभोः। हिरण्यवर्मणः पुत्री पावत्यां च रोहिणी॥३१ रोहिणीवाभवत्तस्याः वयंवरकृते नृपान् । समाहूतान्विमुच्यासौ गतं तत्रावृणोच्च ताम् ॥३२ सोत्कण्ठिताकरोत्कण्ठे मालां तस्य विकुण्ठहत् । तथा वीक्ष्य स भूपालाः क्षोभं भ्रान्ताश्च लेभिरे।। समुद्रा इव संहारे समुद्रविजयादयः। तदा विभिन्नमर्यादा आहतु तं समुद्ययुः ॥३४ योद्धं हिरण्यवर्मापि वसुदेवः समुद्ययौ। सोऽपि स्वनामसंयुक्तं बाणं भ्रातरमक्षिपत् ॥३५ समुद्रविजयो लब्ध्वा शरमक्षरसंयुतम् । वाचयित्वा कुमारं तं निश्चिकायानुजानुजम् ॥३६ संगरं वारयित्वा स कनीयांस सहानुजैः। आश्लिष्य परमां प्रीति समुद्रविजयोगमत् ॥३७ दशास्तिद्विवाहस्योत्सवं चक्रुर्मुदावहाः। ततस्तौ प्रौढरङ्गेण दम्पती निन्यतुः सुखम् ॥३८ सुखप्नसूचितं देवी रोहिणी च कदाचन । शुक्रस्वगोच्च्युतं दधे सुरं गर्ने समुन्नतम् ॥३९ ततः क्रमेण नवमे मासे सासूत सत्सुतम् । बलभद्राभिधं रम्यं बलानां नवमं मतम् ।।४० ततः सौरीपुरं प्राप्ता यादवाः सकलाः शुभाः। वसुदेवयुतास्तत्र सुखं तस्थुः स्थिराशयाः॥४१ कन्यायें उसने पुण्योदयसे प्राप्त की। योग्यही है, कि पुण्योदयसे पृथ्वीतलपर कौनसी वस्तु दुर्लभ है ? ॥ ३० ॥ तदनन्तर इस भूतलपर अरिष्टनामक नगरमें हिरण्यवर्म राजाको पद्मावती नामक रानीमें रोहिणी नामक कन्या हुई। वह रोहिणी-चन्द्रपत्नी के समान सुंदर थी । उसके स्वयंवरके लिये अनेक राजा आये थे । उन सबको छोडकर रोहिणीने वहां आये हुए वसुदेवको वर लिया। जिसका हृदय चतुर है ऐसी रोहिणीने उत्कंठित होकर उसके गलेमें माला डाल दी। यह दृश्य देखकर भ्रान्त हुए सब राजा क्षोभको प्राप्त हुए। जैसे प्रलयकालमें समुद्र क्षोभको प्राप्त होते हैं वैसे समुद्रविजयादिक राजा मर्यादाको तोडकर उसको-रोहिणीको हरण करनेके लिये उद्युक्त हुए। वसुदेवने अपने नामका बाण अपने भाईके पास-समुद्रविजयके पास भेजा। अक्षरोंसे युक्त बाण को हाथमें लेकर समुद्रविजय पढने लगा और उस कुमारको अपने छोटे भाईयोंका छोटा भाई है ऐसा निश्चय किया अर्थात् यह कुमार अपने भाईयोंमें सबसे छोटा भाई है ऐसा जान लिया । तब युद्धको बंद करवाकर अपने भाईयोंके साथ छोटे भाईको उसने गाढ आलिङ्गन दिया और समुद्रविजय अत्यन्त प्रीतियुक्त हुआ । दशाहोंने आनंदित होकर उसके विवाहका उत्सव किया । तदनन्तर वे दम्पती प्रौढ शृङ्गाररससे सुख भोगने लगे ॥ ३१-३८ ॥ किसी समय रोहिणीदेवीने सुस्वप्नोंसे सूचित किया गया, शुक्र स्वर्गसे च्युत हुआ, ऐसे महर्द्धिक देवके जीवको अपने गर्भमें धारण किया । तदनन्तर क्रमसे नौवे महिनेमें बलभद्र नामक उत्तम पुत्रको जन्म दिया । यह पुत्र नौ बलरामोंमें आन्तिम था अर्थात् नौवा बलभद्र था। इसके अनंतर सर्व शुभवृत्तिके तथा दृढ विचारके यादव वसुदेवके साथ शौरीपुरको प्राप्त हुए और वे वहां सुखसे रहने लगे ॥३९-४१॥ किसी समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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