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पाण्डवपुराणम् छिनाङ्गुष्ठो न ना यस्माद्ब्रहीष्यति शरासनम् । जीवघातकरं पापमतो न भविता ध्रुवम् ॥२६८ पापिने न हि दातव्या विद्या शब्दार्थवेधिनी। विमृश्येति स पार्थाय समग्रां तां समार्पयत् ॥ ततः पार्थेन स द्रोणः संप्राप्य स्वपुरं परम् । विश्रान्तः सातमाभेजे भुञ्जन्मोगान्सुभावजान्॥ पाण्डवाः कौरवा वक्त्रमिष्टाश्चान्तर्विरोधिनः। नयन्ति सुखतः कालं तत्र कौटिल्यधारिणः ॥
भीमो हेमनिभः सुविघ्नहरणो दत्तं विषं चामृतम् जातं जातमनेकधा च भुजगा गण्डूपदाश्चाभवन् । जातं यस्य पयः प्रमाणरहितं वै जानुदघ्नं महत् पुण्यस्यैव विजृम्भितेन भविनां किं किं न संपद्यते ॥२७२ पार्थः स प्रथमानकीर्तिरतुलो व्यर्थीकृतानर्थकः सार्थः शुद्धमनोरथः शुभपथः स्वार्थे परार्थेऽपि च । एकार्थेन समर्थतामित इहाभाति प्रसिद्धार्थदृक् ।
मुख्यत्वेन सुधन्विनां गतरिपुर्यो धर्मतो धर्मधीः ॥२७३ इति श्रीपाण्डवपुराणे महाभारतनाम्नि भट्टारकश्रीशुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्मश्रीपालसाहाय्य
सापेक्ष भीमविघ्नविनाशार्जुनशब्दवेधविद्याप्राप्तिवर्णनं नाम दशमं पर्व ॥१०॥
टूट गया है वह पुरुष धनुष्य धारण नहीं कर सकता और उससे जीवहत्या करनेका पाप निश्चयसे न होगा। पापी पुरुषको शब्दार्थवेधिनी विद्या नहीं देना चाहिये ऐसा विचार कर द्रोणाचार्यने अर्जुनको वह संपूर्ण विद्या अर्पण की । तदनंतर अर्जुनके साथ वे द्रोणाचार्य अपने उत्तम पुरको जाकर विश्रान्त होकर शुभ वस्तुओंसे प्राप्त हुए भोगोंको भोगते हुए सुखको प्राप्त हुए ॥२६६-२७०॥ पाण्डव और कौरव मुखसे एक दूसरेके साथ मधुर बोलते थे परंतु मनमें वे एक दूसरेका विरोध करते थे । कपट धारण करनेवाले वे उस हस्तिनापुरमें सुखसे काल व्यतीत करने लगे ॥ २७१ ॥ भीम सुवर्णवर्ण का था । वह लोगोंके विघ्न दूर करता था। कौरवोंने अन्नमें विष मिश्रित करके उसे खानेको दिया था, तो भी उसका अमृतमें परिणमन हुआ । कईबार ऐसा ही विषका परिणमन अमृतमें हुआ। सर्पभी केंचुवेसे हुए। गंगानदीका अगाध विशाल पानी उसके घुटनोंतक हुआ । पुण्यके प्रबल उदयसे संसारी प्राणियोंको क्या क्या प्राप्त नहीं होता है। अर्थात् सब इष्ट भोगोपभोग मिलते हैं और अनिष्टोंका नाश होता है ॥२७२॥ वह अर्जुन अनुपम
और जिसकी कीर्ति बढ रही है ऐसा है । सब अनर्थोको व्यर्थ करनेवाला, भोग्यपदार्थोसे युक्त, शुद्ध मनोरथोंका धारक, स्वार्थ और परार्थमेंभी शुभमार्गसे चलनेवाला, एकही अभिप्रायसे चलनेमें समर्थ, प्रमाणप्रसिद्ध जीवादि पदार्थोंपर श्रद्धान करनेवाला, जो मुख्यतया धनुर्धारियोंमें श्रेष्ठ हैं जिसने सब
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