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________________ (२१) उधर घूमते हुए भीमको सुरंगका पता चल गया और उससे बाहिर निकल कर वे सब शीघ्रही जंगलमें जा पहुंचे। महलसे बाहिर निकलनेपर भीमने वहां छह मुर्दे डाल दिये थे। प्रातःकाल होनेपर यह वार्ता नगरमें वेगसे फैल गई। सर्वत्र हाहाकार मच गया। गांगेय और द्रोणाचार्यको तो मूर्छा आ गई । द्रोणाचार्यने तो निर्भय होकर कौरवोंसे कह दिया कि इस प्रकारसे कुलक्रमका विनाश करना तुम्हें योग्य नहीं है । इस प्रकार भर्त्सना करनेपर कौरव अपना मुख ऊपर नहीं उठा सके। पाण्डवोंका देशाटन उधर पाण्डव वनमेंसे जाते हुए गंगा नदीके किनारे पहुंचे और उसे पार करनेके लिये नावमें जा बैठे । नाव चलकर सहसा नदीके वीचमें रुक गई । मल्लाहसे पूछनेपर उन्हें मालूम हुआ कि यहां तुण्डिका नामक जलदेवता रहती है जो नरबलि चाहती है। इससे सब सचिन्त हो गये। अन्तमें भीम नदीमें कूद पडा और युद्धमें तुण्डिकाको परास्त कर अथाह जलमें तैरते हुए किनारे जा पहुंचा। उसको आते देखकर शोकाकुल हुए युधिष्ठिर आदिको बडी प्रसन्नता हुई । तत्पश्चात् वे ब्राह्मण वेषमें चल कर कौशिकपुरी पहुंचे । वहां वर्ण नामक राजाकी पत्नी प्रभाकरीसे उत्पन्न कमला नामकी सुन्दर कन्या थी। वह युधिष्ठिरके लावण्यमय रूपको देखकर आसक्त हो गई। उसकी खिन्न अवस्थासे इस बातको जानकर राजा वर्णने पाण्डवोंको बुलाया और यथायोग्य आदरसत्कार कर युधिष्ठिरके साथ विधिपूर्वक कमलाका विवाह कर दिया । पाण्डव वहां कुछ दिन रहकर और वर्णराजाकी इच्छानुसार अपना परिचय देकर कमलाको वहीं छोड आगे चल दिये। वे महान् पुरुषोंके द्वारा देश-देशमें पूजे जाने लगे । देशाटन करते हुए वे पाण्डव किसी पुण्यद्रुम नामक वनमें पहुंचे। उन्होंने वहांपर स्थित जिनमन्दिरोंमें पहुंचकर दर्शन-पूजन व मुनिवन्दन किया । तत्पश्चात् मुनिसे जिनपूजाफलको पूछकर आर्यिकाकी वन्दना की। उक्त आर्यिकाके समक्षमें बैठी हुई एक उत्तम कन्याको देखकर कुन्तीने तद्विष १ हरिवंशपुराणमें नाव द्वारा गंगा पार करने और तुण्डिका देवीके परास्त करनेका कोई उल्लेख नहीं है। वहां (४५-६०) में इतना मात्र कहा गया है कि महाबुद्धिमान् वे कुन्तिपुत्र गंगा नदीको पार करके वेष बदलकर पूर्व दिशाकी ओर गये। उत्तरपुराणमें यह वृत्त नहीं है। वहां ग्रन्थ विस्तारसे डरनेवालोंके लिये संक्षेपसेही पाण्डवचरित्र कहनेकी प्रतिज्ञा की गई है । यथा अत्र पाण्डुतनूजानां प्रपंचोऽल्पः प्रभाष्यते । ग्रन्थविस्तरभीरूणामायुर्मेधानुरोधतः ॥ ७२-१९७ २ हरिवंशपुराणमें वर्ण राजाकी पत्नीका नाम प्रभावती पाया जाता है । कन्याका नाम वहां निर्दिष्ट नहीं है। उसके वर्णनमें दिये गये 'कुसुमकोमल' सुदर्शन और 'धन्या' पद विशेषण प्रतीत होते हैं । वहां बतलाया गया है कि कन्यारूप कुमुदिनी युधिष्ठिररूप चन्द्रके देखनेसे विकासको प्राप्त हुई। भविष्यमें युधिष्ठिरकी पत्नी होनेवाली कन्याने सोचा की इस जन्ममें यहीं मेरा उत्तम वर हो । उसके अभिप्रायको जानकर युधिष्ठिर प्रेमबन्धनमें बंधकर ब विवाह के विषयमें संज्ञासेही आशाबन्ध दिखलाकर चले गये (४५, ६३-६५)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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