________________
दशमं पर्व
२०१ अथैकदा च गाझेपो द्रोगः पाण्डोश्च नन्दनाः। कौरवाः सह सेचलू रन्तुं विपिनमुत्तमम् ॥११८ कन्दुकं गुण्ठितं गम्यं मण्डितं हेमतन्तुभिः । भजन्तस्ते रमन्तेज़ स्वर्णयष्टिभिरादरात् ॥११९ कन्दुकं चालयन्तस्तेऽन्योन्यं विस्मितमानसाः। रममाणास्तदा रेजुः सुपर्वाण इवापराः ॥१२० यहचा विशिष्टयाभीटो मेन्दुकश्वेन्दुदीपनः। बभ्राम ताडितो भूमौ भयादिव सुभूभुजाम् ॥१२१ यष्टिताडनतोऽपसदन्धकृपे विपारके । अतलस्पर्शगे रम्ये जलयुक्ते स कन्दुकः ॥१२२ तदा हाहारवाकीर्णा भूपाः कूपतटस्थिताः। पतितं कन्दुकं वीक्ष्यान्धकूपे पारवर्जिते ॥१२३ तदेति भूमिपैः प्रोक्तं नरः कोप्यस्ति शक्तिमान् । स यः संपतितं कूपे गन्दुकं चानयत्यहो । ब्रुवते स्म सुवाचालाः केचनौचित्यवर्जिताः। आनयामो वयं वेगादिमं पातालसंस्थितम्॥१२५ कश्चिद्वावक्ति वेगेन का वार्तास्य महीभुजः। तथा चानयने क्षिप्रमानयामीह कन्दुकम् ॥१२६ लालपीति नृपः कश्चिदोामुद्धत्य चान्धुकम्। आनयाम्यस्य का वार्ता पातालहरणे क्षमः।। कश्चिदाह समिच्छा चेत् मरुत्वतो महासनम् । गृहीत्वा तेन सत्साधं नयामि नयतो बलात् ।। पातालमूलतः पान्तं पातालं तं फणीश्वरम् । पद्मावत्या सहाबध्यानयामि भवतः पुरः ॥१२९
मिलकर सुंदर वनमें क्रीडा करने के लिये चले । वे उस बनमें गूंथा हुआ, दूर जानेवाला, और सुवर्ण तन्तुओंसे मण्डित ऐसा कन्दुक-गेंद लेकर सुवर्णयाष्टि के द्वारा खेलने लगे । एक दूसरे के तरफ कन्दुक फेकने वाले आश्चर्ययुक्त चित्तके साथ क्रीडा करने वाले वे कौरवादिक मानो दूसरे देव हैं ऐसे शोभने लगे । चंद्रके समान चमकनेवाला उनका प्रिय कन्दुक विशिष्ट यष्टिसे ताडित होकर मानो राजाओंके भयसे भूमिपर इधर उधर भागने लगा। जिसका पार नहीं है,जिसके तलभागका स्पर्श नहीं होता है, ऐसे पानीसे भरे हुए सुंदर अन्धकूपमें यष्टिके ताडनसे वह कन्दुक जाकर गिर गया। तब पाररहित अन्धकूपमें पडा हुआ कन्दुक देखकर कुँएके तटपर खडे हुए राजा हाहाकार करने लगे । तब राजाओंने कहा कि क्या ऐसा कोई सामर्थ्यवाला मनुष्य है, जो इस कूपमें पडे हुए कुन्दककों लावेगा। विचार-रहित और वाचाल कितनेक लोक पातालमें पडे हुए कन्दुककोभी वेगसे हम ला सकते है ऐसा कहने लगे। कोई कहने लगा पातालके कन्दुकको भी मैं ला सकता हूं फिर इस पृथ्वीतलमें पडे हुए कन्दुकको लानेकी क्या बात है ? मैं जल्दीसे लाकर आपके पास हाजिर करता हूं। कोई राजा इस तरह बोला-मैं अपने दो बाहुओंसे इस कुएको उठाकर ला सकता हूं क्योंकि मैं पातालको उठाकर लानेमें समर्थ हूं फिर इस गेन्दके लानेकी क्या बडी बात है? कोई राजा बोला-यदि मेरे मनमें आया तो मैं इन्द्रका बडा आसन उठाकर इन्द्रके साथ उसे युक्तिसे और बलसे ला सकता हूं। कोई राजा बोला-पातालका रक्षण करनेवाले फणीश्वरको अर्थात् धरणेन्द्रको पद्मावती के साथ बांधकर मैं आपके आगे लाता हूं। इस प्रकार क्षुब्धजनोंमें बहुत वाचाल और चंचल लोग थे परंतु कोई नीतिवान मनुष्य उस कन्दुकको लाने में
पां. २६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org