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________________ १९६ पाण्डवपुराणम् तथापि ते न किं कर्तुं क्षमाः संक्षुब्धमानसाः । वराकैश्वाल्यते किं हि स्वल्पतुङ्गोऽपि पर्वतः ॥ तदाकूतं परिज्ञाय भीमो भवनमासदत् । एकदा कौरवैः साधं भीमस्तं दुं पुनर्ययौ ॥ ६३ आरोहिता हठात्तेऽपि तेन तं द्रुमसत्तमम् । आक्रम्य स्वभुजाभ्यां च कम्पितस्तरुरुत्तमः ॥६४ उन्मूल्य मूलतो मानी तरुं कौरवसंयुतम् । दधाव मूनि सच्छत्र दधान इव शोभते ॥ ६५ धार्तराष्ट्रास्तदा पेतुरुन्मूलिते महाद्रुमे । केचिदूर्ध्वमुखाः केचिदधोवस्त्रास्तथा पुनः ॥ ६६ केचिच्छाखां समालम्ब्य पद्भ्यां चाधोमुखस्थिताः।भुजाभ्यां च खलीकृत्य शाखांतत्र पुरे स्थिताः केचिच्छाखां समाश्रित्य सुप्तास्तत्र महाभयाः । केचित्तस्थुश्च शाखायामेकहस्तावलम्बिनः ॥ केचिच्च जठरापीडं भजन्ते स्थितिमत्र च । मूर्च्छया मूछिताः केचिजना मरणमित्रया ॥६९ एवं ते पावनेः पुण्यादिव तस्मात्समाकुलाः । एवं भीमे प्रकुर्वाणे दुस्स्थीभूते च कौरवे ॥७० हाहारवमुखे तत्र कश्चिद्भीममुवाच च । पावने पावनात्मा त्वं गम्भीरश्च सहोदरः ॥ ७१ न युक्तमिति कर्तव्यं तव गोत्रविडम्बनम् । निषिद्ध इति सोऽस्वस्थान्स्वस्थीकृत्य स्थितश्च तान्।। पति आप यदि कुछ ताकत रखते हैं तो इस बड़े वृक्षको उखाडो । उनके मनमें वृक्षको उखाडने का आवेश उत्पन्न हुआ, फिरभी वे कुछ कार्य न कर सके। जो असमर्थ हैं वे स्वल्प ऊंचीका पर्वतभी उखाड नहीं सकते हैं । उनका मनोगत, जानकर भीम अपने घरको चला गया। फिर किसी समय भीम कौरवोंके साथ उस पेडके पास गया। उसने हठसे उनको उत्तम वृक्षपर चढाया, और अपने दो बाहुओंसे उस वृक्षको आलिंगन कर उसने उसको जोरसे हिलाया । सब कौरव जिसपर बैठे हैं ऐसे उस वृक्षको मूलसे उखाड कर वह भागने लगा उससमय अपने मस्तकपर मानो छत्र धारण किया है ऐसा वह शोभने लगा। जब उसने वह बडा पेड उखाड डाला तब वे कौरव जमीनपर गिर गये । कईक ऊपर मुख किये हुए गिर गये और कईक नीचे मुख करके पड गये । कईक अपने दो पावोंसे शाखा को पकड कर और नीचे मुख किये हुए लटकने लगे। और कईक हाथोंसे शाखाको पकड कर नीचे लटकने लगे । कइक शाखाको दृढ पकड कर वहां ही महाभयसे सोगये और कईक कौरव एक हाथसे शाखाको पकड कर उसपर ठहर गये । कई कौरव अपने पेटसे पेडके साथ चिपक कर वहां ठहर गये । और कईक मानो मरण की सखी ऐसी मूर्छासे मूर्छित हो गये। इस प्रकार वे भीमके पुण्यसे वहाँ कष्टी हुए । इस प्रकार भीमने क्रीडा की और सब कौरव दुःखी हुए। वे हाहाकार करने लगे । उनमेंसे कोई कौरव भीमसे अनुनय करने लगे। "हे भीम तुम पवित्रात्मा हो और हमारे गंभीर स्वभाववाले भाई हो । तुमसे वंशजोंको पीडा होना क्या योग्य है ? कभी भी योग्य नहीं है" इस प्रकार जब भीमका उन्होंने अनुनय किया तब उन दुःखी कौरवोंको भीमने स्वस्थ किया तथा स्वयं शान्ततासे रहने लगा ॥६१-७२ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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