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दशमं पर्व
१९५ कदल्यो यत्र विपुलसुदला विमला वभुः । फलानि कल्पवृक्षाणां या जेतुं कदलीफलाः ॥५० यत्रैवामलकीवृक्षाः कषायरससत्फलाः । मुनिना निर्जितास्तत्र कषाया इव संस्थिताः ॥ ५१ तत्र ते सकला रन्तुं भीमसेनेन कौरवाः । ईयुरायासविन्यासाः खेलायै स्खलितोद्यमाः ॥ ५२ तत्रैकं विपुलं फुल्लं ददर्शामलकीद्रुमम् । वायविर्विपुलस्कन्धं सफलं पल्लवाञ्चितम् ॥ ५३ तत्र क्रीडां समारेभे कौरवैः सह पावनिः । सर्वगर्वसमाक्रांतरारोहणावरोहणैः ।। ५४ कश्चिचटति चातुर्यात्कश्चिदुत्तरति स्वयम् । धुनोति तं द्रुमं कश्चित्कश्चिदालिङ्गति स्फुटम् ॥ हृदा संपीड्य कश्चित्तं कुरुते कम्पनाकुलम् । तत्फलापचयं कश्चिद्विदधाति कुरुत्तमः ॥ ५६ चटितुं तं समुत्तुङ्गं न क्षमः कश्चन ध्रुवम् । दुर्लयं वीक्ष्य वेगेनारुरोह च सुपावनिः॥ ५७ समला निर्मलं तं च कौरवाः पावनिं तदा । समुत्पातयितुं चेतोविकारं जग्मुरुध्दुरम् ॥ ५८ सरावाः कौरवाः सर्वे तमालिन्य महाद्रमम् । कंपयामासुरौद्धत्यात्समुत्पातयितुं हि तम् ॥५९ अकम्पो मारुतिस्तत्र कम्पमानमे स्थितः । न चकम्पे नदीक्षोभात्किं क्षुभ्यति महार्णवः ॥६० अवादिषत भीमेन ते भवन्तो यदि क्षमाः । उद्धत विपुलं वृक्षमुद्धरन्तु धरेश्वराः ॥ ६१
केलेके विमल वृक्ष बहुत थे । उनके पत्र सुंदर थे और वे अपने फलोंसे कल्पवृक्षके फलोंको जीतनेके लिये उद्यक्त थे। उस वनमें कसैला रस धारण करनेवाले, उत्तम फलोंसे युक्त आमलेके पेड मुनिके द्वारा पराजित किये हुए कषायोंके समान दीखते थे । ॥ ४५-५१ ॥ वहां वे सर्व कौरव भीमसेनके साथ क्रीडा करनेके लिये आये । परंतु उनको वहां बहुत परिश्रम हुआ। वे खलनेके लिये असमर्थ हुए, वहां एक बडा आमलेका वृक्ष था । वह पुष्पोंसे युक्त था, उसकी शाखायें मोटी और दीर्घ थीं, फलभी उसको बहुत लगे थे और पत्तोंसे वह सुंदर दीखता था । भीमने उसको देखा । उस वृक्षपर अभिमानी सर्व कौरवोंके साथ ऊपर चढना और नीचे उतरना इत्यादि प्रकारसे वायुपुत्र भीम क्रीडा करने लगा। कोई उसके ऊपर चातुर्यसे चढते थे और कोई उससे नीचे उतरते थे। कोई कौरव बालक उसको हिलाते थे और कोई उसे दृढ आलिंगन देते थे । कोई कौरवबालक अपनी छातीसे उसे दबाकर खूब हिलाता था । कोई उत्तम कुरुबालंक उसके फल [ आमले ] गिराता था । परंतु उस ऊँचे वृक्षपर चढने में निश्चयसे कोई भी समर्थ न था । उस दुलंध्य वृक्षको देखकर वायुपुत्र [ भीम ] धडाके से ऊपर चढ गया। उस समय निर्मल-कपटरहित भीमको ऊपरसे नीचे गिराने का तीव्र विचार कपटी कौरवों के मनमें उत्पन्न हुआ। जोरसे चिल्लाते हुए वे सर्व कौरव उस बडे वृक्षको चारों तरफसे पकडकर भीमको गिराने के लिये जोरसे उसे हिलाने लगे । हिलनेवाले पेडपर भीम निश्चल होकर बैठा । उसे किसीभी तरहका भय नहीं था । योग्य ही है, कि नदी के क्षोभसे क्या समुद्र क्षुब्ध होता है? ॥ ५२-६० ॥ भीमने उनको कहा, कि पृथ्वीके
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