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पाण्डवपुराणम् अथैकदा महाभीमो भीमसेनो यदृच्छया । वने रन्तुं ययौ सर्वैः कौरवैः सह संगतः ॥ ४० तत्र धूलौ निजात्मानं पिधायोवाच पावनिः । मां समुद्धरते यस्तु बलिनां स बली मतः॥४१ तच्छृत्वा कौरवाः सर्वे तमुद्धर्तुं समुद्ययुः । साभिमानाः प्रकुर्वन्तस्तदुद्धरणसंगरम् ॥ ४२ ते तं चालयितुं नैव क्षमा देशेन कौरवाः । आखुभिः किं प्रचाल्येत बहुभिर्मन्दरो महान् ।।४३ विपक्षास्तु विलक्षास्ते मन्दीभूतसुमानसाः । अस्थेयांसः स्थितिं चक्रुनिलये समलाननाः ॥४४ अथैकं विपिनं भाति वृक्षलक्षविराजितम् । शाखाशिखरसंलग्नं पत्रपुष्पफलाश्चितम् ।। ४५ यत्राम्राः फलभारेण नम्रा यत्र फलार्थिनः । परपुष्टनिनादेनाहूयन्ते स्म च सजनाः ॥ ४६ कङ्केलिपल्लवाः प्रान्तरक्ता विद्रुमवीरुधः । हसन्ति युक्तमेतद्धि सादृश्यं हास्यकारणम् ।। ४७ खर्जूरा जर्जरां जेतुं जरां खजूरसत्फलाः । राजन्ते क्षीरिकां जेतुं फलशोभापहारिणः ॥ ४८ तिन्तिण्यः किङ्किणीरावाः सूक्ष्मपल्लवपावनाः । आम्लं रसं समुद्धर्तु रेजिरे यत्र पावनाः ।।४९
पाण्डवोंके प्राण लेनेकी इच्छा करते थे । तथापि बाह्य स्नेहसे वे प्रीति दिखाते थे और वे कौरवपाण्डव रम्य प्रदेशोंमें एक दूसरे के साथ क्रीडा करते थे ॥ ३४-३९॥
[ भीम और कौरवोंकी क्रीडा ] एक समय महाभयंकर भीमसेन सर्व कौरवोंको साथ लेकर अपनी इच्छासे वनमें क्रीडा करनेके लिये निकला । उस वनमें धूलिमें अपने को ढककर भीमने कहा मुझे जो यहांसे उठावेगा वह बलवान पुरुषोंमें बली माना जायगा । उसकी यह बात सुनकर सर्व कौरव उसको उठानेके लिये उद्युक्त हुए । आभिमानी कौरवोंने उसको उठानेकी प्रतिज्ञा की परंतु वे उसको थोडासा हिलाने में भी समर्थ नहीं हुए। क्या बहुतसे चूहोंसे बडा मन्दर पर्वत हिलाया जा सकता है? वे शत्रु खिन्न हुए, उनका मन मन्दोत्साह हुआ, उनके मुख काले पड गये और वे अस्थिर होकर अपने घरमें जाकर बैठ गये ।। ४०-४४ ॥ एक वन था, उसमें लाखो वृक्ष शोभते थे। वह वन शाखाके अग्रभागपर लगे हुए पत्र, पुष्प और फलोंसे सुंदर दीखता था । वनमें आमके पेड़ फलोंसे नम्र हुए थे । फलोंकी अभिलाषा जिनको है ऐसे सज्जनोंको वह कोकिलोंके शब्दोंसे मानो बुलाता था । अशोकवृक्षके लाल पल्लव थे वे मूंगा के बेलों को हंसने लगे । युक्त ही है कि उन दोनोंमें जो सादृश्य था वह हास्य का कारण है । खजूराके पेड जर्जर जरा को-वृद्धावस्थाको जीतनेके लिथे उत्तम खजूरफलको धारण करते थे। फलोंकी शोभा को नहीं धारण करनेवाले वृक्षोंको जीत
नेवाले खिरनीके वृक्ष सुंदर दीखते थे। जिनके पत्ते सूक्ष्म होते हैं और जिनके फलोंका ध्वनि चुंगरुओंके समान होता है ऐसे इमलीके पेड आम्लरसको धारण करके शोभते थे । उस उद्यानमें
१ स. म. चोत्कटाः।
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