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दशमं पर्व
१९७ तत्प्रपेदे निज पस्त्यं पौरस्त्योद्भतशोभनः । भ्रातृभिः सततं रेमे भीमो भूरिबलोद्धरः ॥ ७३ एकदा कौरवा नीत्वा भीमं पद्माकरं प्रति । मिषाअलेक्षिपन्क्षिप्रं तं हन्तुं मूढमानसाः ॥७४ स बली नाब्रुडनीर उपायैर्बहुभिः कृती । ततार तरणोद्युक्तो जलाशयगतं जलम् ॥ ७५ तं वीक्ष्य कौरवाः क्षुब्धास्तरन्तं गतमत्सराः । किं कर्तव्यमिति स्पष्टं चिन्तयामासुराकुलाः ।। अथैकदा महाधीरो जले क्षेप्तुमनास्तकान् । केनापि छमना सर्वान्सरस्यां सहसाक्षिपत् ॥७७ जलाशये बुडन्ति स्म ब्रुडन्तः करुणस्वरान् । रक्षरक्षेति वाचालाः प्रापुर्दुःखं हि कौरवाः ॥७८ रुरुदुर्दुःखवृन्देन जलकल्लोललालिताः । धार्तराष्ट्रा धृति नापुर्भीमहस्तेन मर्दिताः ॥ ७९ कथं कथमपि प्रायो दुष्टाः संक्लिष्टमानसाः । निर्गतास्तोयतस्तूर्ण जग्मुर्वेश्म महाभयाः ॥ ८० दुर्योधनो बुधो धीरान्मन्त्रिणः स्वानुजांस्तथा । समाहूयाकरोन्मन्त्रमिति भीमात्सुभीतधी। दुर्जयोऽयं महाभीमः पराञ्जता महाभुजः । भीमो भीतिप्रदो नूनं संगरे कृतसंगरः ॥ ८२ समर्थो बलसंपन्नः शौर्यशाली सुधीरधीः । वैरिवर्गविनाशार्थमुटुक्तो युक्तिसंयुतः ॥८३
[ कौरवोंसे डुबाये गये भीमका सरोवरसे निर्गमन ] तदनन्तर पूर्वसे भी अधिक शोभनेवाला और अत्यन्त बलवान् भीम अपने घरको गया और वहां अपने भाइयोके साथ क्रीडा करने लगा। किसी समय कौरव भीमको तालाव के समीप ले गये । और कुछ निमित्तसे उन मूखोंने उसको मारनेके लिये पानी में ढकेल दिया । परंतु वह पानीमें नहीं डुबा । अनेक उपायोंसे वह पुण्यवान तैरता हुआ तीरपर आया । तैरते हुए भीमको देखकर उनका मत्सर नष्ट हुआ, वे क्षुब्ध हो गये । अब इसको मारने के लिये स्पष्ट उपाय क्या है इसका वे आकुल होकर विचार करने लगे ॥ ७३-७६ ॥
[ भीमने जलमें फेके हुए कौरवोंका भयसे घरको भाग जाना ] किसी समय कौरवोंको जलमें फेकनेकी इच्छा करते हुए महावीर भीमने किसी निमित्तसे सरोवरमें कौरवोंको सहसा फेक दिया । तब वे जलमें डुबने लगे । जलमें डुबते हुए तथा करुणस्वरसे हमको बचाओ २ इसतरह कहते हुए अतिशय कष्टी हुए । पानीकी तरङ्गोंसे लालित और दुःखसमूहसे पीडित होकर वे रोने लगे। भीमके हाथोंसे मर्दित होनेसे उनका धैर्य नष्ट हुआ । वे दुष्ट कौरव क्लेशयुक्त मनसे जैसे तैसे पानीमें से जल्दी निकले और अत्यंत भयभीत होकर अपने घरको गये ॥ ७७-८० ॥
[ भीमको मारनेका दुर्योधनका विचार ] भीमसे जिसकी बुद्धि भययुक्त है ऐसे बुद्धिमान दुर्योधनने धीर मंत्रियोंको और अपने छोटे भाईयों को बुलाकर इस प्रकार विचार किया । " यह भीम दुर्जय है, महाभुजवाला, महाभयंकर तथा शत्रुको जीतनेवाला है । यह शत्रुको भीतिदायक और युद्धमें अपनी प्रतिज्ञामें निश्चल रहता है । यह समर्थ, शक्तिसम्पन्न, पराक्रमी और धैर्ययुक्त है। वैरियों के समूहका नाश करनेमें उद्युक्त रहता है और युक्तिसे संगत है । अर्थात्
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