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पाण्डवपुराणम्
धर्मस्यापि गुणा भवन्ति विपुला भ्रूपस्य धर्मे मतिम् । कुर्वन्तं गुरुसचमं गुणगुणं हे धर्म तं पालय ।। २३४ इति श्रीपाण्डवपुराणे भारतनानि भट्टारक श्रीशुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्मश्रीपाल साहाय्य सापेक्षे पाण्डुमद्रीपरलोकप्राप्तिधृतराष्ट्रप्रश्नवर्णनं नाम नवमं पर्व ॥ ९ ॥
। दशमं पर्व ।
सुमतिं मतिकर्तारं सुमतिश्रितपङ्कजम् । मतये नौमि निःशेषनग्रामरनरेश्वरम् ॥ १ एकदातर्कय त्तर्क्यमुदर्कफलभावनृपः । सवितर्कोऽर्कवद्भासा भूषितो भूमराश्रितः ॥ २
हो मम सुता युद्धशौण्डीराः शुद्धमानसाः । प्रबुधा बुधसंसेव्या बुद्ध्या धिषणसंनिभाः । आर्या जयसमावयवार्याः सद्वीर्यसंगताः । धैर्यगाम्भीर्यसंवर्याः सपर्याश्रितसंक्रमाः ॥४
विपुल गुणों की प्राप्ति हुई है । और राजा युधिष्ठिर की धर्म में बुद्धि हुई है । पुरुषों को गुरु और अतिशय श्रेष्ठ बनानेवाले गुणसमूह को धारण करनेवाले युधिष्ठिरका हे धर्म तू रक्षण कर ॥ २३४ ॥ ब्रह्मचारी श्रीपालजीने जिसमें सहाय्य किया है ऐसे श्रीशुभचन्द्रविरचित महाभारत नामक पाण्डवपुराणमें पाण्डु और मद्री को परलोक प्राप्ति और धृतराष्ट्रके प्रश्नों का वर्णन करनेवाला नौवा पर्व समाप्त हुआ ||
[ पर्व दसवा ]
सुमतित्राोंने अर्थात् गणधरादि महाज्ञानियोंने जिनके पद कमलोंका आश्रय लिया है। तथा जो बुद्धिके कर्ता है अर्थात् जिनसे आराधकों को सम्यग्ज्ञान प्राप्त होता है, जिनके चरणों में संपूर्ण देवेन्द्र और नरेन्द्र नम्र होते हैं ऐसे श्रीमति प्रभुकी मैं मति प्राप्त होने के लिये स्तुति करता हूं ॥ १ ॥ पूर्वापर विचार करनेवाला सूर्य की समान कान्तिसे भूषित, पृथ्वी का भार अपने कंधों पर धारण करनेवाला, भाविफल को सोचनेवाला, धृतराष्ट्र राजा किसी समय योग्य बातों का विचार करने लगा ॥ २ ॥ अहो, मेरे पुत्र - दुर्योधनादिक युद्ध में प्रवीण, शुद्ध अन्तःकरणवाले विशिष्ट बुद्ध धारक, विद्वानोंसे सेवनीय, बुद्धिसे बृहस्पति के समान, आर्य, जय को प्राप्त करनेवाले, युद्ध में जो किसीसे नहीं रोके जानेवाले, अर्थात् किसीसे पराजित नहीं होनेवाले, उत्कृष्ट
१ स म आर्याजय समावयां वर्याः सद्वीर्यसंगमाः । धैर्यगाम्भीर्यसंचर्याः सपर्याश्रितसक्रमाः ॥
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