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पाण्डवपुराणम्
अथैकदा नृपः पाण्डुः पाण्डुरातपवारणः । वनं जिगमिषु रन्तुं दापयामास दुन्दुभिम् ||२ घटद्घोटकसंघातैश्चलच्चामरचारुभिः । द्वादशात्माश्वसंकाशैश्चश्ञ्चलैर चलन्नृपः ॥ ३ दन्तावला बलोपेता दन्तदारितपर्वताः । पर्वता इव तस्याग्रे नदन्ति स्म महाजवाः ॥४ रथा व्यर्थीकृताशेषपादाः सत्पादसङ्कुलाः । वत्रिरे च महीपालं रन्तुं जिगमिषुं वनम् ||५ पत्तयो विस्फुटाटोपाः सकोपघनगर्जिताः । समारोपितकोदण्डाश्चण्डास्तत्पुरतो ययुः ॥६ नृपाज्ञया तदा मद्री विनिद्रनयनोत्पला । पूर्णचन्द्रानना रम्या समुद्रा मुद्रिकान्विता ॥७ अहस्करं हसन्तीव कर्णभूषणतो ध्रुवम् । सुदन्तज्योत्स्नया कृत्स्नं क्षिपन्तीव निशाकरम् ||८ कटाक्षचाणक्षेपेण भिन्दन्ती मानसं नृणाम् । स्तनभारभराक्रान्ता चेले सा शिबिकाश्रिता ॥९ वनं समाट विटपिसुघाटघटितं स्फुटम् । पाण्डवानां पिता प्रीत्या मद्रीमुद्रितमानसः ॥ १० यत्र सालद्रुमाः साराः सरलाश्च क्वचित् क्वचित् । सहकारद्रुमा मञ्जुमञ्जर्यामोदमोदिताः ॥ ११
[ पाण्डुराजाका मद्रीके साथ वनविहार ] शुभ्र छत्र जिसके मस्तकपर शोभता है ऐसे पाण्डुराजाको वनमें क्रीडा करनेके लिये जानेकी इच्छा हुई और उसने दुंदुभि - भेरी बजवाई ॥ २ ॥ चंचल चामरोंसे सुंदर और सूर्यके घोडोंके समान चंचल घोडोंके साथ पाण्डुराजा बनके प्रति चलने लगा । महाशक्तिके धारक, अपने दांतोंसे पर्वतको फोडनेवाले, महावेगवान् पर्वतप्राय हाथी पाण्डुराजाके आगे गर्जना करने लगे ॥ ३-४ ॥ सर्व मनुष्योंके चरणोंकी व्यर्थता दिखानेवाले, उत्तम चरणोंसे (चक्रोंसे ) युक्त रथ वनमें क्रीडार्थ जानेके इच्छुक राजाके पास लाये गये ॥ ५ ॥ जिनका आडंबर - प्रभाव प्रगट है, ऐसे क्षुब्ध मेघोंके समान गर्जना करनेवाले प्रचंड पयादोंके समूह धनुष्य सज्ज करके पाण्डुराजाके पास आये ॥ ६ ॥ प्रफुल्ल कमलके सदृश आंखोंवाली, पूर्ण चन्द्रके समान मुखवाली, करांगुलियोंमें अंगुठियाँ धारण करनेवाली, उत्तम आकारकी धारक, सुंदर मंदी रानीभी राजाकी आज्ञासे उसके साथ चलनेके लिये उद्युक्त हुई । रानी मद्री कर्णभूषणोंसे मानो । सूर्यको हंसती थी और अपनी दन्तकान्तिसे पूर्ण निशाकरको चन्द्रको तिरस्कृत करती थी । कटाक्ष बाणोंको फेंककर वह लोगोंके चित्तको घायल करती थी । पुष्टस्तनके भारसे किंचित नम्र हुई वह शित्रिकामें बैठकर पाण्डुराजाके साथ चली ॥ ७९ ॥ प्रीतिसे मद्री में अनुरक्त चित्त होकर पाण्डवोंके पिताने अर्थात् पाण्डुराजाने वृक्षोंकी पंक्तिबद्ध रचनावाले वनमें प्रवेश किया ॥ १० ॥ इस वनमें उत्तम सालवृक्ष थे और कचित् २ सरल नामक वृक्ष भी थे । तथा सुंदर मञ्जरीयोंके सुगन्ध दिशाओंको सुगंधित करने वाले आम्रवृक्षभी थे ॥ ११ ॥ शोक सन्तप्त हुए अशोक वृक्ष सुन्दर
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१ ब विस्फुटाः सर्वे ।
२ प कटाक्षसगक्षेपेण, स कटाक्षपक्षिक्षेपेण ।
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