SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टमं पर्व ततो दुर्धर्षणो धीमान्सुतो दुर्मर्षणस्ततः। रणश्रान्तः समाधश्च विदः सर्वसहोऽपि च ॥ १९३ अनुविन्दः सुभीमश्च सुबाहुरथ दुःसहः । दुःशलश्च सुगात्रश्च दुःकर्णो दुःश्रवास्तथा ॥ १९४ वरवंशोऽवकीर्णश्च दीर्घदर्शी सुलोचनः । उपचित्रो विचित्रश्च चारुचित्रः शरासनः ॥१९५ दुर्मदो दुःप्रगाहश्च युयुत्सुर्विकटाभिधः। ऊर्णनाभः सुनाभश्च तदा नन्दोपनन्दकौ ॥१९६ चित्रवाणिश्चित्रवमा सुवमा दुर्विमोचनः। अयोबाहुर्महाबाहुः श्रुतवान्पालोचनः ।। १९७ भीमबाहुर्भीमबलः सुसेनः पण्डितस्तथा। श्रुतायुधः सुवीर्यश्च दण्डधारो महोदरः ॥१९८ चित्रायुधो निषङ्गी च पाशो वृन्दारकस्तथा। शत्रुजयः शत्रुसहः सत्यसंधः सुदुःसहः ।।१९९ सुदर्शनश्चित्रसेनः सेनानी दुःपराजयः। पराजितः कुण्डशायी विशालाक्षो जयस्तथा ॥२०० दृढहस्तः सुहस्तश्च वातवेगसुवर्चसौ । आदित्यकेतुर्बह्वाशी निबन्धो विप्रियोद्यपि ।।२०१ कवची रणशौण्डश्च कुण्डधारी धनुर्धरः । उग्ररथो भीमरथः शूरबाहुरलोलुपः ॥२०२ अभयो रौद्रकर्मा च तथा दृढरथाभिधः। अनादृष्टः कुण्डभेदी विराजी दीर्घलोचनः॥२०३ प्रथमश्च प्रमाथी च दीर्घालापश्च वीर्यवान् । दीर्घबाहुमहावक्षा दृढवक्षाः सुलक्षणः ॥२०४ कनकः काञ्चनश्चैव सुध्वजः सुभुजोरजः। एवं शतं सुतानां हि तयोर्जातमनुक्रमात् ॥२०५ वर्धमानाः सुताः सर्वे वर्धमानयशोलताः। शोभन्ते शोभनाकाराः शस्त्रशास्त्रविशारदाः॥ पाण्डवाः कौरवाश्चैवं वर्धन्ते स्म यथा यथा। तथा तथा विवर्धन्ते संपदो मोददायकाः॥ क्रमसे हुए। उनके नाम इस प्रकार थे दुर्धर्षण, दुमर्षण, रणश्रान्त, समाध, विदें, सर्वसँह, अनुवंद, सुभीम, सुबाहु, दुःसंह, दुःशैल, सुंगात्र, दुःकर्ण, दुः8व, वरवंश, अवकीर्ण, दीर्घदर्शी, Kलोचन, उपचित्र, विचित्र, चारुचित्र, शरीसन, मद, दुगाह, युयुत्सु, विकट, ऊर्णनाभ, सुंनाभ, नंदै, उँपनंदक, चित्रवाणि, चित्रैवा, सुवा, दुर्विमोचैन, अयोबाहु, मैंहाबाहु, श्रुतवान् , पैंमलोचन, भीमबाहु, भीमबल, सुसेन, पंडित, श्रुतायुध, सुँवीर्य, दण्डधार, महोदर, चित्रायुध, निफँगी, पोश, वृन्दारक, शत्रुजय, शत्रुसह, सत्यसन्ध, सुंदुःसह, सुदर्शन, चित्रसेन, सेनानी, दुःपराजय, पराजित, कुँण्डशायी, विशालाक्ष, जय, हस्त, सुहस्त, वातवेग, (वर्चस्, आँदित्यकेतु, बहाशी, निबन्ध, विप्रियोदि, केवची, रणशौंड, कुण्डधार, धनुर्धर, उग्ररथ, भीमरथ, शूरबाह, अलोलुप, अभय, रौकर्मा, इंढरथ, अनादृष्ट, कुण्डभेदी, विरौंजी, दीर्घलोचन, प्रथम, प्रमाथी, दीर्घालाप, वीर्यवान्, दीर्घबाँहु, महावक्षा, टुंढेवक्षा, सुलक्षण, कनक, कांचन, Kध्वज, सुभुज, अरज । इसप्रकार गांधारी और धृतराष्ट्रको अनुक्रमसे सौ पुत्र हो गये ॥ १९२-२०५॥ ये सौ पुत्र जैसे जैसे बढने लगे वैसे वैसे उनकी यशोलताभी बढने लगी। वे सब शस्त्रशास्त्रोंमें निपुण थे। और उनका रूप अतिशय सुंदर था। पांडव और कौरव जैसे जैसे बढ़ने लगे वैसी वैसी उनकी आनंददायक संपत्तिभी बढने लगी ॥ २०६-२०७ ॥ उत्तम सोनेके समान तेजको धारण करनेवाले, निर्मल ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy