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पाण्डवपुराणम् रेमाते दम्पती दीप्रौ स्फुरद्रससमन्वितौ । विद्युद्धनाघनौ यद्वद्रेजाते जनरञ्जकौ ॥ १८२ गान्धारी च कदाचित्स वीडामुक्तैश्च क्रीडनैः। महाभोगैर्वराभोगैः क्रीडयामास सक्रियः॥ गान्धार्यथ शुभं गर्भ दधौ धर्मानुभावतः । तत्कि न लभते पुण्याघल्लोके हि दुरासदम् ।।१८४ पूणे मासेऽथ सुषुवे सुतं सा सुखसंगता। जनयित्री जनानन्दं परमप्रीतिदायिका ॥ १८५ पुरन्ध्रिकास्तदाशीभिर्नन्दयन्ति स्म तामिति । सुषूष्व सुसुतानां हि शतं शतसुखानि वा॥ दुःखेन योध्यते यस्मादुर्योधन इतीरितः। स सुतः स्वजनैः शीघ्रं संपन्नपरमोदयः॥ १८७ पितुः सुतसमुद्भतिसूचकाय नराय च। अदेयं न किमप्यासीच्छत्रसिंहासनादृते ॥ १८८ निगडाकलितान्लोकान्पञ्जरस्थांश्च पक्षिणः। बन्दिसमस्थिताञ्शत्रून्मुमोच नृपतिस्तदा ।। १८९ वाद्यवादनभेदेन विदितो जननोत्सवः । तस्य प्रशस्यतां नीतः सुनीतेः सातवारिधेः॥ १९० वर्धमानो बुधो युद्धे दुर्योध्यो युद्धधारिभिः । दुर्योधनोऽवधी?र्यात्परान्योद्धन्महायुधान् ।। ततः क्रमेण गान्धारी सुतं दुःशासनाभिधम् । असौष्ट स्पष्टताविष्टं वरिष्ठं शुभचेष्टितम् ॥ १९२
विनोदोंके द्वारा अपने पतिको रिझाती थी। वृद्धिंगत हुए श्रृंगारादिरसोंसे युक्त ऐसे वे कामसे उद्दीप्त दंपती-धृतराष्ट्र और गांधारी लोगोंके मनको हरण करनेवाले बिजली और मेघके समान शोभते थे। ॥१७९-१८२॥ सदाचारी धृतराष्ट्रने किसी समय उत्तम और विस्तीर्ण महाभोगोंके साथ लज्जारहित ऐसी क्रीडा करके गांधारीको रमाया। तब पुण्यके प्रभावसे गांधारीने शुभ गर्भको धारण किया। इहलोकमें पुण्यसे नहीं प्राप्त होनेवाली ऐसी कोनसी दुर्लभ वस्तु है ? अर्थात् पुण्योदयसे सब सुलभ ही है। अतिशय प्रीति करनेवाली जनोंको आनंद उत्पन्न करनेवाली सुखी गांधारीने नौ महिने पूर्ण होनेपर पुत्रको जन्म दिया। सदाचारी स्त्रियोंने उस समय उसका “ सैंकडों सुखोंके समान सौ पुत्रोंको तू जन्म देनेवाली हो" इन आशीर्वचनोंसे अभिनन्दन किया। गांधारीको जो प्रथम पुत्र हुआ उसके साथ लडना बडाही कठिन था इसलिये उसको स्वजनोंने 'दुर्योधन' नाम दिया। उसने उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त कर लिया । अर्थात् वह पाण्डवोंके समान ऐश्वर्यशाली हुवा । पुत्रकी उत्पत्तिकी सूचना देनेवाले मनुष्यको राजा धृतराष्ट्रने छत्र, सिंहासनके व्यतिरिक्त सब कुछ दिया । राजाने पुत्र-जन्मोत्सवके समय कैद किये गये लोगोंको, पिंजरेमें बंद किये हुए पक्षियोंको और कारागृहमें डाले हुए शत्रुओंको छोड दिया। सुनीतियुक्त, सुखका समुद्ररूप और प्रशंसाको प्राप्त हुए दुर्योधनका जन्मोत्सव अनेकप्रकारके वाद्यवादनके द्वारा लोगोंको ज्ञात हुआ। योधाओंसें जो युद्धमें कठिनाईसे युद्ध करने योग्य था। अर्थात् उसके साथ लढना बडा कठिनाईका कार्य था ऐसा वह दुर्योधन विद्वान् था। उसने महायुध धारण करनेवाले उत्तम योद्धाओंको युद्धमें मार डाला था ॥ १८३-१९१ ॥ तदनंतर क्रमसे गांधारीने दुःशासन नामक पुत्रको जन्म दिया। यह श्रेष्ट, और स्पष्ट बोलनेवाला था । तदनंतर गांधारीको और अहानवे पुत्र
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