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अष्टमं पर्व
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स्वमे संदर्शनान्मात्रा पुरुहूतस्य सज्जनैः । सर्वैः स गदितः शक्रसूनुर्नाम्नेति निश्चितम् ॥ १७२ यस्य रूपं गुणा यस्य यस्य तेजश्च यद्यशः । बलं यस्य कथं वण्यं यदि जिह्वाशतं भवेत् ।। ततो मद्री सुमुद्राढ्या नकुलं कुलकारिणम् । लेभे च जनितानन्दं कुर्वाणमरिसंक्षयम् ।। १७४ सहदेवं महादेवं सा सूते स्म सविस्मया । सह देवैः प्रकुर्वाणं क्रीडां संक्रीडनोद्यतम् ।। १७५ एवं पञ्चसुतैः पाण्डुः प्रचण्डो वैरिखण्डनः । सातं ततान सदेहो यथा पञ्चभिरिन्द्रियैः ॥१७६ कुन्तीसुतवती सत्या मद्री सन्मुद्रयान्विता । पाण्डुः प्रचण्डः संभुङ्क्ते पञ्चभिस्तनुजैः सुखम् ॥ धृतराष्ट्रप्रिया प्रीता परम प्रेमपूरिता । गान्धारी बन्धुभिः सार्धं ववृधे धृतिधारिणी ।। १७८ गान्धारीवक्त्रनलिन चञ्चरीकेण चेतसा । धृतराष्ट्रश्च नो लेभे रतिं चान्यत्र तां विना ॥ १७९ गान्धार्या समं तेने सातं संसारसम्भवम् । कामिनः कामिनीं मुक्त्वा लभन्ते शं न हि कचित्।। गान्धारी रमयामास भर्तारं भर्तृभक्तिका । हास्यैः कटाक्ष विक्षेपैर्विनोदैर्मदनप्रियैः ॥ १८१
सज्जन था । और जगतमें यशको कमानेवाला था । कुन्तीका यह तीसरा पुत्र था । कुन्तीने स्वनमें इन्द्रको देखा था इसलिये सर्व सज्जन इसको ' शक्रसूनु' इन्द्रपुत्र कहने लगे । जिसका रूप जिसके गुण, जिसका तेज, और जिसका यश और जिसका बल सब बातें कैसी वर्णन की जायेंगी ? कवि कहते हैं - जिसके मुहमें सौ जिह्वायें होंगीं वह ही अर्जुनके इन गुणोंका वर्णन करेगा अन्यसे इसका वर्णन नहीं होगा ॥ १७० - १७३ ॥
[ मद्रीसे नकुल और सहदेवका जन्म ] तदनंतर सुमुद्राढ्या उत्तम सुंदर शरीराकृतिवाली महीने कुलवृद्धि करनेवाला, शत्रुओंका क्षय करनेवाला और सबको आनंददायक ऐसे नकुल पुत्रको जन्म दिया। नकुल पुत्रका लाभ होनेके अनंतर आश्चर्ययुक्त महीने देवोंके साथ क्रीडा करनेवाला, और हमेशा क्रीडामें आसक्त रहनेवाला, महादेव महातेजस्वी, ऐसे सहदेव नामक पुत्रको जन्म दिया ॥१७४ -१७५॥ जैसे पांच इंद्रियोंसे उत्तम देहवाला आत्मा मुखका उपभोग लेता है वैसे शत्रुओंका खंडन करनेवाला, यह प्रचंड पाण्डव अपने पांच पुत्रोंके साथ सुख भोगने लगा ॥ १७६ ॥ सत्यधर्म को धारण करनेवाली, पुत्रवती कुन्ती, उत्तम मुद्रासे युक्त मद्री और प्रचंड पाण्डुराजा अप पांच पुत्रोंके साथ सुखोपभोग लेते हुए कालयापन करने लगे ||१७७||
ये
[ धृतराष्ट्र और गांधारीको दुर्योधन पुत्रकी प्राप्ति ] अतिशय प्रेमसे भरी हुई, संतोषको धारण करनेवाली, प्रसन्न, धृतराष्ट्रकी प्रियपत्नी गांधारी अपने बंधुवर्गके साथ उन्नतियुक्त हुई अर्थात् सुखयुक्त हुई || १७८ ॥ धृतराष्ट्रका मन गांधारीके मुखकमलपर भोंवरे के समान लुब्ध हुआ था । असके मनको गांधारी के विना अन्यत्र आनंद प्राप्त नहीं होता था । धृतराष्ट्रराजा गांधारीके साथ सांसारिक सुखोंका अनुभव लेने लगा। योग्यही है कि, कामी पुरुषको कामिनीके बिना अन्यत्र कहीं भी सुख नहीं मिलता है । पतिभक्ता गांधारी हास्य, कटाक्ष फेंकना, और संभोगके प्रियं
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