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पाण्डवपुराणम् भूषयन्तं नभोमार्ग सदातपनिवारणैः । भानोनिच्छिद्रमालोकं कुर्वन्तं वा तिरस्कृतम् ।।२० भान्तं प्राभृतलक्षश्च निधानैरिव दर्शितैः । भूमिदेव्याः समुद्भासिभूषणैरिव भूषणैः ॥२१॥ . जगत्पतेर्जगज्ज्येष्ठं कुण्डलैः कर्णसंगतैः । मण्डितं चन्द्रसूर्याणां मण्डलैरिव संनुतम् ॥२२॥ नानामागधवृन्देन वादिना यशसः श्रुतेः । बुवाणेन यशो राज्ञो दिशान्तस्थितदिग्गजान् ॥२३ क्षरन्तं वाक्षरैः क्षिप्रं सुधाराशिं रसोद्गमम् । वीक्षणैर्वी क्षयन्तं च कटाक्षक्षेपदीक्षितैः ॥२४॥ गृहन्तमिव स्वात्मीयाञ्जनान्यदृच्छया स्थितान् । हसन्तमिन हास्येन शत्रून्सेवासमागतान् ।। बिभ्रतं पाणिपोन कृपाणं कृपणान्परान् । भीषयन्तं मुदा दानं ददतं स्वमहोन्नतिम् ॥२६॥ दर्शयन्तं महोद्योगं युक्तैर्वाक्यैर्विचारणाम् । कुर्वाणं किंचिकीर्षुश्चेति विस्मयकरं नृणाम् ॥ इति दौवारिकेणासौ दर्शितं भूभुजां पतिम् । मुक्त्वा ननाम दूतेशः संपायनमुपायनम् ॥ नाथ सूरिपुरीनाथोऽन्धकवृष्णिरुदीरितः । शास्ति सर्वां प्रजां यद्वन्मरुत्वान्सुरपद्धतिम् ॥ तेनाहं प्रेषितोऽभ्यर्ण तूर्ण ते पाण्डुना सह । सोत्सवं स्नेहयुक्तेन कुन्त्या वीवाहमिच्छता ।।
दीखते थे । जग़तमें ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और जगत्पति ऐसे व्यासराजा कानोमें धारण किये हुए कुण्डलोसे ऐसे शोभते थे, कि मानो चन्द्रसूर्यके मण्डल आकर राजाकी स्तुति कर रहे हो । शास्त्रकी कीर्तिका वर्णन करनेवाले विद्वान वादीके समान स्तुतिपाठक राजाका यशोगान कर रहे थे । दिशाके अन्तमें रहनेवाले दिग्गजोंको राजाका यश सुनाते थे । व्यासराजा बोल रहे थे मानो अमृत पुञ्जके रसको प्रकट कर रहे थे । कटाक्ष फेकनेमें चतुर ऐसी अपनी नजरोंसे वे इधर उधर देखते थे । स्वयं आकर बैठे हुए स्वजनोंके ऊपर मानो अनुग्रह कर रहे थे। सेवाके लिये आये हुए शत्रुओंको देखकर अपने हास्यके द्वारा मानो हंस रहे थे। अपने हस्तकमलसे तरवारको धारण किये हुए थे मानों शत्रुओंको भयभीत कर रहे थे । आनन्दसे दीनोंको दान देते हुए अपने ऐश्वर्यकी महोन्नति दिखानेवाले, योग्य भाषगद्वारा पूछताछ करनेवाले महाराज अब कौनसा कार्य करना चाहते हैं इस विचारसे प्रेक्षकोंके मनको आश्चर्यचकित करनेवाले व्यासराजाको दूतने दूरसे देखा ॥ १९-२७ ॥ इस प्रकार द्वारपालके द्वारा दिखाये हुए राजराज व्यासभूपालके आगे दूतने पत्रके साथ भेट अर्पण कर वंदन किया। अनन्तर वह इस प्रकारसे बोलने लगा। ' हे नाथ, शौरीपुरीके नाथ अन्धकवृष्टि महाराज इन्द्र जैसे सर्व देवोंका रक्षण करता है वैसे प्रजाका रक्षण कर रहे हैं । बडे उत्सवसे कुन्तीके साथ पाण्डुराजाका शीघ्र विवाह करनेकी इच्छा रखनेवाले राजा अन्धकवृष्टिने आपके पास मुझे भेजा है ॥ २८-२९॥
. दूतका वचन सुनकर व्यास महाराजने कहा कि योग्य बातको कौन नहीं चाहेगा ?
१ब. सपायनं सपत्रम् ।
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