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पाण्डवपुराणम्
। अष्टमं पर्व । शंभवं संभवध्वंसधातारं शंभवं जिनम् । संभवध्वंसिनं वन्दे संभवत्सातसागरम् ॥ १ शृणु श्रेणिक लोकानां महती मूढता मता । ईदृशः कथ्यते कर्णः कर्णेजः कथ्यते जनैः॥२ कर्णजाहं गतत्वेन वचसा जन्मसंभवे । मात्रन्वये समाख्यातः कणेः श्रीकर्षणोद्यतः॥३ सुराधाकर्णकण्डूयाक्षणे भूपात्समाददे । बालकं तेन तत्रापि स कर्णः कथितो जनः ।। ४ यदि कर्णस्य चोत्पत्तिः कर्णात्संजायते लघुः। अतोऽज्येषां कथं जन्म न संबोभूयते भुवि।।५ कर्णतो नासिकायांश्च मानवानां कथंचन | न दृष्टं न श्रुतं जन्म कर्णस्य च कथं भवेत् ॥६ कर्णतो जन्म कालेन नोपनीपद्यते नृणाम् । गोशृङ्गतो भवेद्दग्धं न कदाचिजगत्त्रये ॥ ७ वन्ध्यातः सुतसंभूतिः शिलातः सस्यसंभवः । गगनात्कुसुमोत्पत्तिः शशाच शृङ्गसंभवः ॥ ८ पृदाकुवक्त्रतः शुद्धा संपनीपद्यते सुधा । एतत्सर्वं यथा न स्यात्कर्णात्कर्णोद्भवस्तथा ।। ९
[ पर्व आठवा] जन्मजरामृत्युको नष्ट करनेवाले, तथा सुखसमुद्रको उत्पन्न करनेवाले, सं-उत्तमपद्धतिसे, भव-संसारका, ध्वंसधातारं नाश करनेवाले अर्थात् रत्नत्रयकी पूर्ण प्राप्ति करके जिन्होंने संसारका नाश किया है और जिनसे सुख होता है, ऐसे शंभवनाथ जिनेश्वरको मैं वन्दन करता हूं ॥१॥
[कुन्तीके कानसे कर्ण नहीं उत्पन्न हुआ ] हे श्रेणिक, कर्णकी इस प्रकार उत्पत्ति हुई है, तू सुन । लोग कर्णको कुन्तीके कानसे उत्पन्न हुआ कहते हैं । यह उनका कहना महामूढतासे भरा हुआ है ॥ २ ॥ लक्ष्मीके आकर्षणमें उद्युक्त हुए कर्णका जन्म कुन्तीसे हुआ। कुन्तीके मातृकुलमें लोग कानको लगकर कर्णकी उत्पत्ति वार्ता कहने लगे इससे कुन्तीका ज्येष्ठ पुत्र कर्ण नामसे प्रसिद्ध हुआ । तथा चम्पापुरके भानुराजासे राधारानीने कानको खुजाते २ बालकको ग्रहण किया था इसलिये भानुराजाके घरमें भी लोग उसे 'कर्ण' कहने लगे ॥ ३-४॥ यदि कर्णकी उत्पत्ति कानस होती तो अन्य लोगोंकी उत्पत्ति भी कानसे क्यों नहीं होती ? मनुष्योंका जन्म कानसे नाकसे किसी प्रकार होता न देखा न सुना गया है तो कर्णका जन्म इस प्रकारसे कैसा हुआ होगा ? किसी भी कालमें कानसे मनुष्यका जन्म नहीं होता है । त्रैलोक्यमें कभी भी गायके सींगसे दूध उत्पन्न नहीं होता है ॥५-७ ॥ वन्ध्यासे पुत्र, शिलासे धान्य, आकाशसे पुष्प और खरगोशसे सींग, और सर्पके मुखसे शुद्ध अमृत ये सब जैसे उत्पन्न नहीं होते हैं वैसेही कानसे कर्णकी उत्पत्ति भी नहीं हुई है । कर्णकी कानसे उत्पत्रीि मानना आकाशकमलके सुगन्धका वर्णन करनेके सदृश है । इसलिये हे श्रेणिक, कर्णकी शुद्ध उत्पत्ति जैसी हमने कही
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