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सप्तमं पर्व
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राधे शुद्धविधानज्ञे समृद्धे बुद्धिवारगे । गृहाणेमं सुतं सारं रूपनिर्जितभास्करम् || २९५ निशम्येति वचस्तस्य कर्णकण्डूयने रता । जग्राह भर्तृवाक्येन सुतं सोत्कण्ठिताशया ॥ २९६ कर्णकण्डूयनं तस्याः सुतसंग्रहणक्षणे । वीक्ष्य बालस्य कर्णाख्यां व्यधात्तत्रापि भूपतिः ॥ २९७ ववृधे बालकस्तत्र कलया शोभया श्रिया । कौमुद्या तामसातीतः कुमुदो बालचन्द्रवत् ।। २९८ इति शुभपरिपाकात्प्राप्तसौभाग्यभारः सकलविबुधसेव्यो दिव्यदेहः सुदीव्यन् । विदितसकलशास्त्रो लक्षणैर्लक्षिताङ्गः श्रुतिमतिरतिभायात्कर्णनामा कुमारः ।। २९९ शास्त्रार्णनकोविदः किल कलाकीर्तीश्वरः कान्तिमान् कारुण्याङ्कसमाकुलो कलकृपासंकीर्णचेता यथा ।
कुन्त्याः कोमलकामिनी सुखकरः कम्रः कनीयान्कृती कानीनः कमलाकरोऽसुपङ्कजे पुत्रः श्रियाऽभाद्रविः || ३०० इति श्री पाण्डवपुराणे महाभारतनानि भट्टारकश्रीशुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्मश्रीपाल - साहाय्यसापेक्षे श्रीकर्णकुमारोत्पत्तिवर्णनं नाम सप्तमं पर्व ॥ ७ ॥
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अपने कानको खुजानेवाली रानीने उत्कंठितचित्त होकर पुत्रको ग्रहण किया ॥२८८ - २९६ ॥ पुत्रको ग्रहण करते समय राधाने अपना कान खुजाया यह देखकर वहां भी राजाने उस बालकका नाम ' कर्ण ' रखा । जैसे बालचन्द्र कला, शोभा और कान्तिसे बढ़ता है, ज्योत्स्नासे वृद्धिंगत होता है, अंधकारसे दूर रहता है और पृथ्वीको आनन्दित करता है वैसे कर्णकुमार भी कला, शोभा, लक्ष्मीसे बढ़ने लगा | वह अज्ञानरहित अर्थात् पण्डित हुआ । और लोगोंको आनंदित करने लगा ||२९७–२९८|| इस प्रकार कर्णको पूर्वजन्म के शुभ कर्मके उदयसे खूब सौभाग्यकी प्राप्ति हुई । सर्व विद्वान उसकी सेवा करने लगे । उसका देह दिव्य था । वह अनेक प्रकारकी क्रीडा करता था, सर्वशास्त्रोंका ज्ञाता था और शुभ सामुद्रिक लक्षणोंसे उसका शरीर संपन्न था । श्रुतमें उसकी बुद्धि संलग्न थी । इस प्रकार वह कर्ण कुमार शोभने लगा ॥ २९९ ॥ यह कर्णकुमार शास्त्र सुनने में निपुण, कला और कीर्तिका स्वामी, कान्तियुक्त, दयाका चिह्न जो दान उससे युक्त था अर्थात् याचकोंको दान देता था । मधुर कृपासे उसका मन व्याप्त हुआ था। वह कुन्तीका पुत्र था । कोमल स्त्रियोंको सुखकर, मनोहर और गुणोंसे ज्येष्ठ, पुण्यवान्, कन्यावस्थामें कुन्तीसे उत्पन्न हुआ, प्राणीरूपी कमलोंको तडागके समान वह कर्ण सूर्यके समान शोभने लगा || ३०० ॥ ब्रह्मश्रीपालकी साहाय्यतासे श्रीशुभचन्द्राचार्यके द्वारा विरचित भारत नामक पाण्डवपुराणमें कर्णकुमारकी उत्पत्तिका वर्णन करनेवाला सप्तम पर्व समाप्त हुआ ||
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