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पाण्डवपुराणम् नृपस्य हृदये लमा वाग्देवीव विराजते । सालङ्कारा सुरीतिज्ञा निर्दोषा या गुणान्विता।।२८५ या रम्मेव परा रम्भा रम्भास्तम्भोरुभासिनी । रम्यते शुभाभोगभोगेर्विभ्रमवीक्षणा ॥२८६ पतिसंपत्तिसंपना विपसिविमुखोन्मुखा । अरातिसंततित्यक्ता पानपत्यैव केवलम् ।।२८७ अथैकदा धराधीशो दैवज्ञं दैववेदकम् । समाहूय तमप्राक्षीत्सुतो मे भविता न वा ॥ २८८ सोऽप्यष्टाङ्गनिमित्तज्ञो विचार्य निजचेतसि । प्रोवाच वचनं वाग्मी श्रुत्वेति नृपतेर्वचः॥२८९ भानुमान्भानुरद्य त्वं भानो मद्वचनं स्फुटम् । समाकर्णय शब्देन निमित्तेन वदाम्यहम्॥ यदा ते यमुनातीरे मञ्जूषाभंकसंगतिः। ततस्ते भविता नूनं तनूजो जनितादरः ॥ २९१ सार्भका साथ मञ्जूषा वहन्ती यमुनाजले । चम्पाभ्यर्णतटे टंक्ये टीकते स्म कदाचन।।२९२ तामागतां तटे श्रुत्वा नृपोज्नैषीत्वसेवकैः । तां दृष्ट्वाथ समुद्घाट्य ददर्भिकमद्भुतम् ।।२९३ तमङ्के स समारोप्य प्रति राधामवीवदत् । नैमित्तिकवचश्चित्ते चिन्तयंश्चतुरोचितम् ।। २९४
अलंकारोंसे सुशोभित; वैदर्भी, लाटी आदिक पद्धतियोंको जाननेवाली; दोषरहित, ओज, श्लेष, कान्ति, समाधि आदिगुणधारिणी वाग्देवी-सरस्वतीदेवी जैसे राजाके हृदयमें शोभती थी वैसी अलंकारोंसे मंडित, लोकरीतिको जाननेवाली, दुःशीलतादि दोषरहित, और पातिव्रत्यादिगुणसहित वह राधारानी भानुराजाके हृदयसे संलग्न होती हुई शोभने लगी । केलेके स्तंभसमान जंघाओंसे सुंदर दीखनेवाली वह राधारानी रंभाके समानही नहीं, उससे भी अधिक शोभावाली थी । कटाक्षयुक्त आंखें जिसकी है ऐसी वह शुभ रानी विस्तीर्णभोगोंसे आलिंगित थी अर्थात् अनेक प्रकारके भोगपदार्थ उसके पास थे । पतिकी संपत्तिकी वह स्वामिनी थी, विपत्तियोंसे रहित थी। शत्रुओंकी परंपरासे रहित थी, उसका मुख ऊंचा था अर्थात् वह बडी तेजस्विनी थी। परंतु यह सब होनेपर भी वह पुत्ररहित थी ॥ २८३-२८७ ॥ किसी समय भाविदैवको जाननेवाले ज्योतिषीको राजाने बुलाया और पूछा, मुझे पुत्रप्राप्ति होगी अथवा नहीं ? अष्टांगनिमित्तोंको जाननेवाले वचनकुशल ज्योतिषीने मनमें विचार किया और राजाके वचन सुनकर इस प्रकार उत्तर दियाहे भानु राजन् , " तूं सूर्यके समान तेजस्वी है, हे राजन् तू मेरा वचन सुन, मैं स्पष्ट कहता हूं। शब्द-प्रश्नरूप निमित्तके द्वारा मैं उत्तर कहता हूं। जब यमुनाके किनारेपर तुझे पेटीमें बालककी प्राप्ति होगी तब तुझे जिसका आदर लोक करेंगे ऐसे पुत्रकी प्राप्ति होगी " । किसी समय बालकसहित वह सन्दूक यमुनाजलमें बहती हुई चम्पानगरीके समीप टांकीसे उत्कीर्ण तटपर आ पहुंची। सन्दूक तटपर आई है यह सुनकर राजा नोकरोंके द्वारा उसे लेगया । उसको देखकर और खोलकर अन्दर अद्भुत बालक उसे दीख पडा । उसे अपनी गोदमें लेकर नैमित्तिकके वचनका मनमें विचार करता हुआ राजा राधाको बोला । शुद्धकार्यको जाननेवाली, समृद्ध और बुद्धिके पारंगत राधे, रूपसे सूर्यको जीतनेवाले इस उत्तम पुत्रको तुम ग्रहण करो । राजाका वचन सुनकर
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