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________________ (१५) राधाको दे दिया। राधाको उस समय कान खुजाते देखकर भानु राजाने भी पुत्रका नाम कर्णही रक्खी। पश्चात् अन्धकवृष्टिने पुत्रोंके साथ विचार कर पाण्डु राजाके लिये कुन्तीको देनेका निश्चय किया । इस कार्यके सम्पादनार्थ उसने व्यास राजाके समीप एक चतुर दूत भेज दिया। दूतसे उक्त समाचार ज्ञात कर व्यास राजाने उसे स्वीकार कर लिया। तदनुसार नियत समयपर पाण्डुके साथ कुन्तीका विवाह कर दिया गया। कुन्तीमें अधिक स्नेह रखनेके कारण उसकी छोटी बहिन मद्रीकाका विवाह पाण्डु के साथ सम्पन्न हुओं । उसके कुन्तीसे युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन ये तीन तथा मद्रीसे नकुल व सहदेव ये दो पुत्र उत्पन्न हुए । पृथ्वीपर ये पांच पाण्डव प्रसिद्ध हुएँ । कौरवों और पाण्डवोंको द्रोणाचार्यने धनुर्वेदमें सुशिक्षित किया। अतिशय विनयशील होनेसे अर्जुनको द्रोणाचार्यसे शब्दवेधी विद्या प्राप्त हुई । अर्जुन धनुर्वेद विद्यासें सर्वोत्कृष्ट सिद्ध हुआ। पाण्डु और मद्री तथा धृतराष्ट्रका दीक्षाग्रहण किसी समय पाण्डु क्रीडार्थ मद्रीके साथ बनमें गये । वहां उन्होंने हरिणीके साथ क्रीडा करते हुए हरिणको बाणके आघातसे मार डाला । उस समय पाण्डुको सम्बोधित करनेवाली आकाश १ उत्तरपुराण ७०, १०९-११४ । हरिवंशपुराणमें इस सम्बन्धमें केवल इतना मात्र उल्लेख पाया जाता है। पाण्डोः कुन्त्यां समुत्पन्नः कर्णः कन्याप्रसंगतः।। ह. पु. ४५-३७ । देवप्रभसूरिविरचित पाण्डव चरित्रके अनुसार “ वह लोकविरुद्ध मार्गसे उत्पन्न हुआ है " इस विचारसे कुन्ती और धायने उसे मणिमय कुण्डलोंसे अलंकृत करके रत्नपिटारीमें रखकर गंगाके मध्यमें प्रवाहित कर दिया ( १, ५५२-५३ )। वह पेटी अतिरथि सारथिको मिली । अतिरथिकी पत्नीका नाम राधा था। उसने रत्नपिटारीसे बालकको निकाल कर राधाकी गोदमें रख दिया । उस समय बालक अपने कानके नीचे हाथको करके सो रहा था, अतः अतिरथिने उसका नाम कर्ण रक्खा (३, ४७३-७४ ) । पाण्डु और कुन्तीके विवाहका विस्तृत वृत्त यहां ४३३-५६३ श्लोकों (सर्ग १) में वर्णित है । सत्यकर्मणस्त्वतिरथः । यो गङ्गाङ्गतो मञ्जूषागतं पृथापविद्धं कर्णपुत्रमवाप । विष्णुपुराण ४, १८, २७-२८ २ त्रि. पु. चरित्रके अनुसार अन्धकवृष्टिकी पुत्री मद्री दमघोषके लिये दी गई थी (८,१, १२) दे. प्र. सूरिविरचित पाण्डवपुराणके अनुसार माद्री मद्रराजकी पुत्री थी । राज्यवृद्धोंके उपरोधसे पाण्डुने उसके साथ विवाह किया था ( १, ५६५ )। ३ हरिवंश पुराण ४५, ३७-३८. उत्तरपुराण ७०, ११४-११६. पाण्डोः पल्यां द्वितीयस्यां शल्यस्वसरि नन्दनौ । मद्रयामभूतां नकुल-सहदेवो महाभुजौ ॥ त्रि. पु. च. ८, ६, २७२. पाण्डोरप्यरण्ये मृगयायामृषिशापोपहतप्रजाजननसामर्थ्यत्य धर्म-वायु-शयुधिष्ठिर-भीमसेनार्जुनाः कुन्त्यांनकुल-सहदेवौ चाश्विनीम्यां माद्यां पंचपुत्रास्समुत्पादिताः । विष्णुपुराण ४, २०, ४०. चम्पूभारत १, ४६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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