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पाण्डवपुराणम् तदा पुरे जना ज्ञात्वा सुतं जातं सविस्मयाः । राजभीत्या व्यधुर्वार्ता कर्ण कणे च तस्य हि।। कुन्तीपिता तदा ज्ञात्वा किवदन्ती सुतस्य च । कर्णजाहं गतां चक्रे कर्णाख्यं तं जनस्य च।। संमन्व्य मन्त्रिमिः साधं मञ्जूषास्थमकारयत् । अर्कभं कुण्डलोपेतं सरत्नकवचं नृपः ॥२६६ कर्णाख्याक्षरसद्गर्भपत्रोपेतं सवित्तकम् । मुमोच सूर्यतनयाप्रवाहे वहनत्वरे -।। २६७ कालिन्दीतरिसंनिष्ठा पुरी चम्पापुरी परा । सौधाग्रलग्नसद्भर्मकुम्भा बामायते च या ।। २६८ या केतुहस्तवारेणाहयन्तीव सुरासुरान् । नरावतारमुत्कृष्टं वाञ्छतः खच्छमानसान् ॥ २६९ पातालवाहिनीसूरतनया परिखाभवत् । यस्याः कृष्णेव संछेत्तुं रुषा पातालवासिनः ।। २७० विशिखासख्यसंपन्नो हिमांशुर्यत्र वर्तते । विश्रान्तः स्थितिसिद्धयर्थं महान् हि महतः सखा ॥ यस्याः शृङ्गाग्रसंभिन्नश्चन्द्रो धत्ते सुरन्ध्रतः । रन्ध्र रश्मिकलापाढ्यो निश्छिद्रोऽपि प्रभासुरः।। यत्प्रासादशिखोत्तम्भिरत्नकुम्भाः सुतामसम् । नैशं च मानसं प्रन्ति मध्यस्था जिनसत्तमाः। श्रीवासुपूज्यसद्गर्भसूतिकल्याणपावनी । योपान्तवनसद्दीक्षाज्ञाननिर्वाणभाजिनी ।। २७४
पहुंची हुई जानकर उस पुत्रका नाम कर्ण कह दिया । तदनंतर मंत्रियोंके साथ राजाने विचार कर सूर्यके समान कान्तिवाला, कुण्डलोंसे युक्त और रत्नकवच जिसे पहनाया गया है ऐसे उस कर्णबालकको पेटीमें रखवाया । कर्णके वृत्तान्तका निवेदक पत्र द्रव्यके साथ पेटीमें रख दिया ।
और वह पेटी त्वरासे बहनेवाले यमुना नदीके प्रवाहमें छोड दी ॥ २६३-२६७ ॥ कालिंदी नदी ( यमुना नदी ) के तीरपर चम्पापुरी नामक उत्तम राजधानी है। राजप्रासादोंके शिखरपर लगे हुए सुवर्णके कलशोंसे वह अत्यंत शोभा पाती है । उत्कृष्ट मनुष्योंके जन्मकी इच्छा करनेवाले स्वच्छ अन्तःकरणके देवदानवोंको जो चम्पापुरी नगरी ध्वजरूपी हस्तसमूहोंसे मानो बुलाती ह । जिस नगरीकी परिखा- ( खाई ) पातालतक बहनेवाली-गंभीर यमुना नदी थी अर्थात् खाईके समान यमुना नदी चम्पापुरीके आसमन्तात् बहती थी। तथा पातालवासि दानवोंका उच्छेद करनेके लिये मानो कोपसे वह काली होगई थी॥ २६८-२७० ॥ विश्रान्ति लेनेके लिये चन्द्र इस नगरके-महाद्वारसे गोपुरसे मानो सख्य करता था योग्यही है, कि बडे लोगोंके मित्र बडे लोगही हुआ करते हैं । चन्द्र किरणसमूहोंसे परिपूर्ण अतिशय कान्तियुक्त और छिद्रराहित होनेपर भी जिस नगरीके शृङ्गाप्रसे विदीर्ण होनेसे मानो रंध्र धारण करता है । जिस नगरीके महलोंके शिखरोंपर लगे हुए रत्नोंके कुम्भ रात्रीका अंधेरा नष्ट करते हैं तथा लोगोंके अन्तःकरणमें रहनेवाले जिनेन्द्र भगवान् उनके मनके अंधेरेको नष्ट करते हैं । यह चम्पापुरी नगरी वासुपूज्य जिनेश्वरके गर्भकल्याण और दीक्षा कल्याणसे पवित्र हुई थी। तथा समीपके वनमें वासुपूज्य प्रभुके दीक्षाकल्याण, केवलज्ञानकल्याण तथा मोक्षकल्याणको धारण करती थी । वासुपूज्य जिनेन्द्रके पांचोंहि कल्याण यहांही होनेसे यह नगरी पवित्र हुई थी । यह अंगदेशकी प्रधान राजधानी थी। इसमें अनेक
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