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सप्तमं पर्व
१४१ कुन्त्या दोषो न राजेन्द्र न दोषो मम जातुचित् । केवलं कर्मणो दोषस्तन्नरः किं न नाटयेत्।। कुरुजाङ्गलदेशस्य स्वामी कौरववंशजः । पाण्डुराखण्डलाकारोऽखण्डितान्वयपालकः ॥२५५ कुन्तीप्रार्थनसंलुब्धः क्षब्धस्तद्रपचक्षुषा । विश्रब्धः सोऽनया रन्तुं स्तब्धः कामविकारतः॥२५६ कदाचित्कुन्तिकावेश्म प्रविष्टो विष्टपोन्नतः । करे स मुद्रिकां कृत्वा नानारूपविकारिणीम्।।२५७ मन्मुक्तयैकया साकं कन्यया करपीडनम् । चक्रे कौरवराजेन्द्रो रहस्युरसि दत्तया ॥ २५८ प्रतिघस्रं तया साधं स रेमे रमणीयतां । गतो दृष्टो मया पृष्टा सा ब्रूते स्म यथातथम्।।२५९ एतावत्कालपर्यन्तं रक्षिताच्छादिता मया । अतः प्रभृति नो जाने यद्युक्तं तद्विधेहि भोः॥२६० निशम्य दम्पती तौ च विमृश्येति स्वमानसे । आच्छाद्यतामयं दोष इति तावूचतुः खयम् ।। आच्छादिता तथाप्येषा किंवदन्ती क्षितौ गता । तैलबिन्दुर्यथा मुक्तस्तोये विस्तीर्णतां व्रजेत् ॥ अथ सा सुषुवे पुत्रमुद्यन्मित्रसमप्रभम् । पूर्ण मासे महाशोभं शुम्भद्भाभारभूषणम् ॥ २६३
नचाता है ॥ २५४ ॥ कौरववंशमें उत्पन्न हुआ कुरुजांगल देशका स्वामी, इन्द्रके समान सुन्दर आकारवाला पाण्डुराजा अपने अखंडित वंशका पालन करता है। कुन्तीकी याचनामें लुब्ध तथा उसका रूप देखकर क्षुब्ध हुआ, जगतमें उन्नतिशाली वह तीव्र कामविकारसे बेफिक्र होकर किसी समय कुन्तीके महल में आया । उसने नानारूपोंका विकार उत्पन्न करनेवाली मुद्रिका अपने हाथमें धारण की थी अर्थात् जो रूप प्राप्त करनेकी इच्छा होती है वह रूप तत्काल उससे उसको प्राप्त होता था । अदृश्य रूप धारण कर उसने कुन्तीके महल में प्रवेश किया । उस समय मैं वहां नहीं थी। अकेली कन्या कुन्तीही वहां थी। उसके साथ राजेन्द्रने पाणिग्रहण किया-गांधर्व विवाह किया । और प्रतिदिन बह रमणीय पाण्डुराजा उसके साथ संभोगक्रीडा करने लगा। एक दिन उसको मैंने देख लिया और कुन्तीको उसके विषयमें पूछने पर उसने यथार्थ वृत्त मुझे कहा है। इतने कालतक मैंने उसका रक्षण किया है, और उसका दोष आच्छादित किया है। अब इसके आगे क्या उपाय किया जाना चाहिये मैं नहीं जानती हूं । जो आपको योग्य जचे वह उपाय आप कीजिए" ॥ २५५-२६० ॥
[कर्णकी उत्पत्ति ] घायका कहा हुआ वृत्तान्त राजारानीने सुना । मनमें. कुछ विचार कर उन्होंने स्वयं धायसे कहा कि ' इस दोषका आच्छादन कर ' । यद्यपि यह वार्ता आच्छादित की थी, तो भी जैसे तैलबिन्दु विस्तीर्ण पानीमें फैल जाता है वैसे वह वार्ता भी जगतमें फैल गयी ॥ २६१.-२६२ । नौ महिने पूर्ण होनेपर महाशोभावान् , चमकनेवाला कान्तिसमूहरूपी भूषणसे युक्त, उदित होनेवाले सूर्यके समान, पुत्रको कुन्तीने जन्म दिया । कुन्तीको पुत्र हुआ है यह वार्ता नगरमें फैल गयी। उसे जानकर लोग आश्चर्ययुक्त होगये । और राजाके भयसे लोग उस पुत्रकी वार्ता कानोंमें कहने लगे । कुन्तीके पिता अन्धकवृष्टीने पुत्रकी वार्ता लोगोंके कानोंतक
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