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सप्तमं पर्व
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यस्याश्च जघनं घ्रात्वा मदनो जीवनं दधे । पनवत्पनसंचारी तद्रसः षट्पदो यथा॥१७३ चित्रं चित्ररसाप्येषा विचित्राकारधारिणी । विचित्रमृगनेत्रामा नग्नत्रैणबन्धिका ।।१७४ विनानया क्षणः क्षीणः क्षीयते मे कथं द्रुतम् । इत्याध्याय बभूवासौ प्रकटाङ्गो गलन्मदः।। निरूप्य तं निशानाथवदनं सदनं रुचः। कुन्ती कम्पितगाढाङ्गी चकम्पे सपयोधरा ॥१७६ यल्ललाटे निविष्टः किमष्टमीमृगलाञ्छनः । यन्मूय॑यं धम्मिलाख्यः कामवहिशिखा ननु । यत्कपोललसद्भित्तो कामोऽचित्रीयत स्फुटम् । अन्यथा वीक्ष्य तौ योषाकाममुद्दीपयेत्कथम्।।१७८ यस्य वक्षःस्थले लक्ष्मी रमते हारसंमिषात् । नो चेत्तद्धृदयं वीक्ष्य लक्ष्मीवाना कथं भवेत् ॥ यद्भुजी भोज्यनारीणां भुजङ्गाविव पाशको। ययोर्लोकनतो लोके बद्धाइव कथं स्त्रियः॥१८०
जीतनेवाला जयशाली गदन कुन्तकि स्तनोंमें स्थिर हुआ है। अन्यथा वह उनके स्पर्शसे प्रकट क्यों होता है ? ॥ १७२ ॥ जैसे पद्म ( कमल) में संचार करनेवाला भ्रमर उसके रसका आस्वादन कर जीवन धारण करता है, वैसे पद्मके समान सुंदर कुन्तीके जघनको सूंघ कर मदनने अपना जीवन धारण किया ॥ १७३ ॥ यह कुन्ती चित्र-रसको धारण करनेवाली होकर भी विचित्राकारको धारण करती थी, अर्थात् श्रृंगारादि नाना रसोंको धारण करती हुई कुन्ती विचित्र विस्मयकारक आकार-- शरीरको धारण करती थी। जिसके शरीरपर अनेक काले सफेद आदि रंग हैं ऐसे हिरनके समान कुन्तीकी आंखें थीं । अत एव वह मनुष्योंके नेत्ररूपी हिरनोंको बांधती थी। अर्थात् अपने नेत्रकी शोभासे सर्व लोगोंको अपनी तरफ आकर्षित करती थी ॥ १७४ । इसके बिना छोटासा क्षण भी कैसे बीतेगा; ऐसा विचार कर पाण्डुराजा गर्वरहित होकर शीघ्र प्रकट हुआ॥ १७५॥
[ कुन्ती पाण्डुको उसका वृत्त पूछती है | कान्तियुक्त चंद्रमाके समान मुखवाले पाण्डुको देखनेसे पुष्ट स्तनोंको धारण करनेवाली कुन्तीके सर्व अङ्गोंमें कम्प उत्पन्न हुआ। वह मनमें इस प्रकार विचार करने लगी “ क्या इसके भालप्रदेशपर अष्ठमीका चन्द्र विराजमान हुआ है ? क्या इसके मस्तकपर बांधे हुए केश मानो मदनाग्निकी ज्वाला हैं जिसके कपोलरूपी चमकनेबाली भित्तिमें मानो काम, चित्रके समान स्पष्ट दीख रहा है । यदि यह कल्पना असत्य मानी जाय तो उन कपोलोंको देखकर स्त्री कामसे क्यों उदीप्त हो जाती है ? " जिसके वक्षःस्थलमें हारके रूपमें मानो लक्ष्मी क्रीडा कर रही है। ऐसा नहीं होता तो इसका वक्षस्थल देखकर पुरुष लक्ष्मीवान् कैसे होता है ? इसके दो बाहु भोगनेके लिये योग्य स्त्रियोंको बांधने के लिये मानो नागपाशही हैं ? ऐसा नहीं होता तो इस पुरुषके दो बाहु देखकर जगतमें स्त्रियाँ बद्धकीसी क्यों होती हैं ? इस पाण्डुराजाके मुखमें सरस्वती सदा रहती है, लक्ष्मी हमेशा हृदयमंदिरमें विराज रही है, संपूर्ण शरीरमें सौन्दर्यने स्थान पा लिया है। अब भाग्यसे इसके शरीरमें
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