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________________ . १३४ पाण्डवपुराणम् यस्यास्ये वाक्सदा शेते इन्दिरा हृत्सुमन्दिरे। सुषमा वपुषि स्थास्याम्यहं कुत्रास्य भागतः ॥ किं सूरः किं शशी किंवा मघवा दर्पदर्पितः। कन्दर्पः सर्पनाथः किंमेष किं किमरीपतिः॥१८२ ध्यायन्तीति हृदा दध्यौ किमर्थमयमाटितः । मद्धाम्नि सीमसंपन्ने दुर्लध्ये विघ्नपातिनी।। साह साहससंपन्या साहसिन् सहसा स्वयम् । मत्सम छमना केन प्रविष्टस्त्वं ककः कथम् ।। निशम्येति श्रमी चोक्तं परिरम्भणजृम्भणः । उवाच वचनं वाग्मी विदिताः कृतार्थवित् ।। सुश्रोणि श्रोतुमिच्छा चेत् खच्छं गच्छ मनोमलात । वदामि विदिते वीरे वराहें त्वां पतिवरे ।। कुरुजाङ्गलसद्देशहस्तिनागनरेशिनः । धृतराष्ट्रस्य भ्राताहं क्षितौ ख्यातः शमी क्षमी ॥ १८७ स पाण्डुपण्डितो विद्धि स्वपाण्डुगण्डमण्डलः । अखण्डिताज्ञ ऐश्येनाखण्डलप्रतिमोऽप्यहम् ।। चित्तं योगीव प्रद्युम्नो रतिं रामां च कामराद् । स्मरन्स्मरातुरचाये त्वां त्वदधीनचेतनः ॥ सा जगौ तच्छ्रुतं श्रुत्वा नाथाहमविवाहिता । इत्थं जाते जने याति सापवादापकीर्तिताम् ॥ पितृवाक्यं विना वीरा किं वृणोति स्वयंवरम् । नायुक्तमिति वक्तव्यं वक्तव्यं सर्वसंगतम् ।। मुझे कहां स्थान मिलेगा ? क्या यह पुरुष सूर्य है ? अथवा चन्द्र है, इंद्र है ? क्या यह गर्वोन्मत्त कामदेव है ? क्या यह शेष-धरणेन्द्र है अथवा किन्नर है ? ऐसे विचार कुन्तीके हृदयमें पाण्डुराजाको देखकर उत्पन्न हुए । मेरा घर सीमायुक्त, दुल्लंघ्य और विघ्नोंका स्थान है। ऐसे मेरे घरमें यह पुरुष किस लिये आया होगा ? साहसी कुन्ती उस पुरुषको अर्थात् पाण्डुराजाको इस प्रकार बोली । हे साहसिन् , अकस्मात् मेरे घरमें तुमने स्वयं किसलिये और कैसा प्रवेश किया है और तुम कौन हो ? ॥ १७६-१८४ ।। कुन्तीका भाषण सुनकर वचनचतुर, वस्तुस्वरूपको जाननेवाला, कृतार्थज्ञ, श्रमी पाण्ड आलिंगनकी इच्छा करता हुआ इस प्रकार बोलने लगा। " हे सुंदर कमरवाली कुन्ती, यदि तुझे मेरा वृत्तान्त सुननेकी इच्छा है, तो मनोमल हटाकर मनको स्वच्छ करो । वरनेको योग्य, पतिंवरे प्रसिद्ध कुन्ती एकाकिनी सुन ॥१८५-१८६॥ कुरुजांगल नामक उत्तम देशमें हस्तिनापुरके अधिपति जो धृतराष्ट्र राजा है, उसका मैं पृथ्वीमें प्रसिद्ध शान्त और क्षमावान छोटा भाई हूं। मुझे पाण्डुपंडित कहते हैं। मेरे गाल शुभ्र हैं, मेरी आज्ञा कोई खंडित नहीं करता तथा मैं ऐश्वर्यसे इन्द्रके समान भी हूं ।। १८७-८८ ॥ जैसे योगी अपने शुद्ध चैतन्यका स्मरण करता है, जैसे काम रतीको स्मरता है, और कामी स्त्रीको स्मरता है वैसे कामातुर होकर मैं तुझारा स्मरण करता हूं । तुह्मारे अधीन मेरा मन हुआ है । मैं तेरा आदर करता हूं ॥१८९॥ उसका भाषण सुनकर कुन्तीने कहा, कि ' हे नाथ, मैं अविवाहित हूं और यदि आपसे संबंध हो गया तो अपवादके साथ अपकीर्ति होगी । पिताकी आज्ञाके बिना वीरा एकाकिनी कन्या स्वयं पतिको नहीं वरती । आप मेरे साथ अयोग्य भाषण न करें। जो सर्वको मान्य है वह भाषण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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