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सप्तमं पर्व
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तस्य भद्रा परा पत्नी सभद्रा भद्रतां गता । चन्द्रवक्त्रा सुवक्षोजा वीक्षितक्षिप्तसजना ॥ १३२ तयाः शुभाः सदा ख्यातास्तनया नयिनो दश । विशाला भालसच्छोभा दशधर्मा इवाभवन् ॥ समुद्र विजयश्वाद्यस्ततः स्तिमितसागरः । हिमवांस्तृतीयस्तुर्यो विजयो विजयोऽचलः ॥ १३४ धारणः पूरणाभिख्यः सुमुखश्चाभिनन्दनः । दशमो वसुदेवाख्यो वसुदेवमहाबलः ॥ १३५ सुता कुन्ती कलाक्रान्ता कुचकुम्भमहाभरा । पूर्णचन्द्राभवदना नितम्बौन्नत्यधारिणी ॥१३६ करग्राहिकटिः कान्त्या सदा कुन्तिततामसा । विकटाक्षसुधाधारा जित्वरी सुरयोषिताम् ॥ द्वितीया तत्सुता मद्री मुद्रितानङ्गसद्रसा | कटाक्षाक्षिप्तविबुधा बुधसांनिध्यधारिणी ॥ १३८ समुद्र विजयादीनां प्रियाः प्रीतिरसा मिथः । कथ्यन्ते क्रमतो नूनं शृणु श्रेणिक सांप्रतम् ॥ शिवादेवी शिवाकारा धृतिधात्री धृतिस्वरा । स्वयंप्रभा प्रभाभारा सुनीता नीतिमानसा ॥ सीता सीतासमाकारा प्रियत्राक्प्रियभाषिणी । प्रभावती प्रभाभूषा कलिङ्गी कनकोज्ज्वला ॥
राजा हुए । शूर राजाकी रानीका नाम सुरसुंदरी था । वह सौंदर्यसे देवांगना के समान थी । इन दोनोंका अधकवृष्टि नामक नीतिमार्गको जाननेवाला पुत्र था ।। १२७-१३१ ॥ अवकवृष्टिकी पत्नीका नाम भद्रा था । वह कल्याणसहित, शुभविचारवाली, चंद्रमुखी, सुंदर स्तनवाली और अपनी आखोंसे सज्जनोंके चित्त क्षुब्ध करनेवाली थी । इन दोनोंको नीतियुक्त, शुभ, नित्यप्रसिद्ध दशधर्मके समान दश पुत्र हुए । त्रिशाल, अतिशय सुंदर ललाटवाला पहिला पुत्र समुद्रविजय, दूसरा स्तिमितसागर, तीसरा हिमवान्, चौथा विजय, वह मानो विजयही था । पांचवा अचल, छट्ठा वारण, सातवा पूरण, आठवा सुमुख, नौवा अभिनंदन तथा दसवा पुत्र वसुदेव था । यह वसुदेवसु नामक देवोंके समान महाबलवान् था । राजाको कुन्ती नामक कन्या थी वह कलाचतुर थी । उसके कुचकुंभ वडे थे । मुख पूर्णचंद्रकासा था और नितंब उन्नत था । उसकी कटी हाथसे ग्राह्म थी अर्थात् कमर पतली थी । अपनी अंगकान्तिसे उसने अधकारको मिटा दिया था । उसके कटाक्ष अमृत की धारासरीखे थे और वह देवांगनाको अपने रूपसे जीतनेवाली थी । अंधकवृष्टिकी दूसरी कन्याका नाम मही था। वह मदनके उत्तम रसको संकुचित करनेवाली थी अर्थात् अत्यंत सुंदरी थी । अपने कटाक्षोंसे वह देवोंको भी तिरस्कृत करती थी । और विद्वानोंका सान्निध्य धारण करती थी || १३२-१३८ ।। हे श्रेणिक, अब समुद्रविजयादिक नौ भ्राताओंकी आपसमें प्रीति रखनेवालीं स्त्रियोंका मैं क्रमसे वर्णन करता हू तं सुन | सुंदर आकार धारण करनेवाली शिवादेवी, जिसका कण्ठस्वर लोगोंको सन्तुष्ट करता है ऐसी धृतिधात्री देवी, कांतिभारको धारण करनेवाली स्वयंप्रभा, नीति जिसके मनमें है ऐसी सुनीतादेवी, सीताके समान सुंदर आकार धारण करनेवाली सीतादेवी, प्रियभाषण करनेवाली प्रियवाग्देवी, कान्तिही भूषण जिसका है ऐसी प्रभावती, सुवर्णके समान उज्ज्वलवर्णवाली कलिंगी, तथा उत्तम कान्तिवाली
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