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________________ पाण्डवपुराणम् सुप्रभा सुप्रभा चेति नवानां क्रमतः प्रियाः । मथुरायां सुवीरस्य प्रिया पावती प्रिया ।। सुतो भोजकदृष्टयाख्यस्तयोस्तस्य वरानना । सुमतिः प्रेयसी जज्ञे सुमतिः सुमनास्तयोः ।। उग्रसेनमहासेनदेवसेनामिधास्त्रयः । जजृम्भिरे जनानन्दा नन्दनानन्ददायिनः ॥१४४ ।। तत्सुता गुणगन्धारी गन्धारी धृतिधारिका । पूर्णचन्द्रानना नम्रा पटुपीनपयोधरा ॥१४५ उग्रसेनादिभूपानां पत्न्यः पद्मावती शुभा । महासेना परा देवी देवसेना मुदावहा ।।१४६ अथ राजगृहे राजा राजराजविराजितः । राजते राजशार्दूलो बृहद्रथसमाह्वयः ॥१४७ । भामिनी श्रीमती तस्य श्रीमती श्रीरिवापरा । तयोः सुतः सुतीवांशुर्जरासंधो नरेश्वरः ॥१४८ त्रिखण्डभरताधीशो नराधीशैः सुसेवितः । नवमः प्रतिवैकुण्ठो विकुण्ठः शठशातने ॥१४९ धृतराष्टेण राष्ट्राणां राज्ञा कुन्ती सकुन्तला | पाण्डवे याचिता तोषाद्विवाहाथेमथान्यदा।। कुन्ती पित्रा सुतैः साधं विमृश्य हदि संदधे । पाण्डुदोषाय नो देया पाण्डवे चेति निश्चितम् ।। बहुशः प्रार्थितोऽप्येवं न ददौ तां हि यादवः । सरावः कौरवो मौनं तदा ध्यात्वा हृदि स्थितः ।। सुप्रभा, ये नौ भ्राताओंकी क्रमसे नौ पत्नियां थीं ॥१३९-१४१ ॥ मथुरानगरीमें सुवीर राजा राज्य करता था। उसकी प्रिय रानीका नाम पद्मावती था । उनको भोजकवृष्टि नामक पुत्र था । उसकी सुंदरमुखी और निर्मल मनको धारण करनेवाली, सुमति इस अन्वर्थ नामकी अर्थात् सुबुद्धिको धारण करनेवाली पत्नी थी। इन दोनोंको उग्रसेन, महासेन और देवसेन ये तीन पुत्र थे । ये लोगोंको आनंद देनेवाले थे । इन दोनोंको-भोजकवृष्टि और सुमति रानीको गंधारी नामक कन्या थी । वह गुणसुगंधको धारण करनेवाली, धृतिसंतोषसे युक्त, पूर्णचन्द्रके समान मुखवाली, नम्र, सुंदर और पुष्ट स्तनको धारण करनेवाली थी ॥ १४२-१४५ ॥ उग्रसेन राजाकी पत्नी पद्मावती, वह शुभ-विचारयुक्त थी। महासेन राजाकी रानीका नाम महासेना था। और देवसेनको आनंद देनेवाली पत्नी देवसेना थी। राजगृह नगरमें कुबेरके समान शोभनेवाला, राजाओंमें श्रेष्ठ बृहद्रथ नामका राजा राज्य करता था। इस राजाकी पत्नीका नाम श्रीमती था। वह लक्ष्मीयुक्त थी मानो दुसरी श्रीही थी। इन दोनोंको जरासंध नामक पुत्र हुआ । जो तीव्र किरण धारक सूर्यके समान था । वह त्रिखंड भरतका स्वामी था । अनेक राजा उसकी सेवा करते थे । वह नौवा. प्रतिनारायण था और शठोंको-दुष्टोंको शासन करनेमें कुंठित नहीं होता था । १४६१४९ ॥ अनेक देशोंके अधिपति धृतराष्ट्रने किसी समय पण्डुराजाके साथ सुकेशी कुन्तीका विवाह करनेके लिये आनन्दसे याचना की । तब कुन्तीके पिताने अर्थात् अंधकवृष्टि राजाने समुद्र विजयादिपुत्रोंके साथ विचार करके पंडुराजाको पाण्डुरोग होनेसे उसे कुन्ती न देनेका मनमें निश्चय किया । बारबार याचना करनेपर भी अन्धकवृष्टिने पण्डुराजाको कुन्ती नहीं दी। तब कुन्तीकी याचना करनेवाले धृतराष्ट्रने मनमें विचार कर मौन धारण किया ॥ १५०-१५२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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