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________________ १२८ पाण्डवपुराणम् मृकण्डूस्तत्प्रिया रूपलावण्यभरभूषिता । पीनस्तनी सुजधना शचीवेन्द्रस्य संबभौ ॥१२० कौशाम्ब्यामथ यः श्रेष्ठी सुमुखः सुमुखी धनी । वीरदत्तप्रियायाश्च हर्ता द्रव्यादिवश्वनैः।। वनमालाभिधानायाः स काले मुनिदानतः । प्रभजनसुतः सिंहकेतुरासीजितार्कभः ॥१२२ तत्रैव शीलनगरे वज्रघोषो महीपतिः । सुप्रभा वनिता तस्य मनोनयननन्दिनी ।।१२३ वनमालाचरा जाता तयोः पुत्री सुरूपिणी । विद्युन्मालाभिधा सिंहकेतुना च विवाहिता ॥ वीरदत्तचरेणैव चित्राङ्गदसुरेण तौ । वैराद्धतौ वने क्रीडां कुर्वाणौ कर्मयोगतः ॥१२५ सूर्यप्रभेण देवेन तन्मित्रेण निवारितः । हन्तुकामः स निक्षिप्य चम्पायास्तौ गतौ वने ॥१२६ तद्भपे चन्द्रकीाख्ये विपुत्रे च मृते सति । कृताभिषेकौ तौ तत्र दन्तिना राज्यमापतुः॥ सिंहकेतुः खवृत्तान्तमाख्यच्च पुरतस्तदा ! लोकानामथ लोकैश्च हर्षितः संप्रपूजितः ॥१२८ मृकण्ड्वास्तनयोऽयं वै मार्कण्डेय इति श्रुतः । सुतो हरिगिरि,मगिरिर्वसुगिरिस्ततः ॥१२९ तदन्वये गतेऽप्येवं सूरवीरौ महीपती । अथ सरो नराधीशो बल्लभा सुरसुन्दरी ॥१३० तस्यासीत्सुरसुन्दर्याः सौन्दर्येण समा सदा । तयोरन्धकवृष्टयाख्यस्तनयो नयमागवित् ।। इंद्रकी इंद्राणीसी शोभती थी ॥११९-१२०॥ कौशांबी नगरमें सुमुख नामका एक श्रेष्ठी था वह सुंदर मुखवाला और धनी था। उसने वीरदत्तकी धनादिके द्वारा वंचना करके उसकी वनमाला नामक स्त्रीको अपने घरमें लाकर रखा था। वह सुमुखश्रेष्ठी मुनिको दान देनेसे उत्तरभवमें प्रभंजन राजाका सूर्यकी कान्तिको जीतनेवाला सिंहकेतु नामक पुत्र हुआ। उसी देशमें शीलनामक नगरमें वज्रघोष नामक राजा था। उसके मन और आंखोंको आनंदित करनेवाली सुप्रभा नामक रानी थी । जो पूर्वभवमें वनमाला थी वह मरकर उन दोनोंको सौंदर्यवती विद्युन्माला नामक कन्या हुई । सिंहकेतुके साथ उसका विवाह हुआ ॥ १२१-१२४ ॥ वीरदत्त वैश्य मरकर स्वर्गमें चित्रांगद नामका देव हुआ था। सिंहकेतु और विद्युन्माला दोनों क्रीडा करनेके लिये वनमें गये थे। कर्मयोगसे चित्रांगद-देवने उनको देखा । उसकी उन दोनोंको मारनेकी इच्छा थी परंतु सूर्यप्रभदेवने, जो कि चित्रांगदका मित्र था इस कार्यसे चित्रांगदको रोका । तब उसने उन दोनोंको चंपापुरके बनमें रख दिया और स्वयं स्वस्थानको गया ॥१२५-१२६॥ चंपापुरीका राजा चन्द्रकीर्ति पुत्ररहित था। वह उस समय मरगया था और इन दोनोंका हाथीने अभिषेक किया। सिंहकेतुको चंपापुरीका राज्य मिला । सिंहकेतुने चंपापुरीके लोगोंके आगे अपना वृत्तान्त कहा । तदनंतर हर्षयुक्त सिंहकेतु-राजाका लोगोंने आदर किया । मृकण्डूका पुत्र होनेसे सिंहकेतु 'मार्कण्डेय ' नामसे प्रसिद्ध हुआ । उसके हरिगिरि नामक पुत्र हुआ। हरिगिरिको हेमगिरि , हेमगिरिको वसुगिरि इस प्रकार सिंहकेतुके वंशमें अनेक राजा हुए। अनंतर इस वंशमें शूर और वीर ये दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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